गुजरात में ज़हरीली शराब से मरने वालों की संख्या बुधवार को 40 तक पहुंच गई। इस घटना में पिछले 12 घंटों के दौरान सात और लोगों ने दम तोड़ दिया। अहमदाबाद, बोटाद और भावनगर के अस्पतालों में करीब 50 लोग अब भी अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। मरने वालों में ज्यादातर बोटाद जिले के गांवों से थे, जबकि बाकी अहमदाबाद जिले के धंधुका तालुका के रहने वाले थे।
पुलिस ने इस केस में दस लोगों को गिरफ्तार किया है। अहमदाबाद और बोटाद पुलिस ने लगभग बीस लोगों के खिलाफ हत्या (IPC की धारा 302), ज़हर देकर नुकसान पहुंचाने (धारा 328), और आपराधिक साजिश (धारा 120 बी) के आरोप में 3 FIR दर्ज की हैं। सोमवार तड़के जहरीली शराब पीने वालों को बोटाद और अहमदाबाद के अस्पतालों में भर्ती कराया गया।
गुजरात सरकार ने एक वरिष्ठ IPS अफसर सुभाष त्रिवेदी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है जो मामले की जांच करेगी और 3 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी।
इंडिया टीवी के संवाददाता निर्णय कपूर उस गांव में गए, जहां जहरीली शराब से काफी लोगों की जान गई थी। उन्हें पता चला कि अहमदाबाद के एक गोदाम से जयेश उर्फ राजू नाम के एक गार्ड ने 600 लीटर मिथाइल अल्कोहल या मेथनॉल चुराया था। यह एक जहरीला केमिकल होता है जो कि इंडस्ट्रियल यूज में आता है। जयेश ने वह एथनॉल अपने कजिन संजय को 40,000 रुपये में बेच दिया। संजय ने इस जहरीले केमिकल को बोटाद और उसके आसपास के इलाकों में नकली शराब का धंधा करने वालों को बेचा। उन्होंने मिथाइल अल्कोहल के साथ पानी मिलाया और उसे 20 रुपये प्रति पाउच की दर से लोगों को बेच दिया। इस तरह लगभग 110 लीटर मिथाइल अल्कोहल और पानी को मिक्स करके पाउचों में भरा गया और कई गांवों में लोगों को बेचा गया। पुलिस ने बताया कि गोदाम से चोरी हुए 600 लीटर मिथाइल अल्कोहल में से 490 लीटर बरामद कर लिया गया है।
गुजरात में 1960 से ही शराबबंदी सख्ती से लागू है। यहां ज़हरीली शराब से इतनी बड़ी तादाद में लोगों की मौत होना दुखद और आश्चर्यजनक है। आम तौर पर नकली शराब बेचने वाले एथाइल अल्कोहल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इस घटना में मिथाइल अल्कोहल का इस्तेमाल किया गया। मिथाइल अल्कोहल ज़हरीला होता है, और इसका इस्तेमाल केवल उद्योगों में होता है। सस्ता होने की वजह से नकली शराब के कारोबारी इसका इस्तेमाल करते हैं।
पुलिस के मुताबिक, शराब के नाम पर मिथाइल अल्कोहल की पहली डिलीवरी 22 जुलाई को की गई थी। इसे पहले ड्रम में भरा गया, फिर उसकी 5-5 लीटर की थैलियां बनाई गईं। जिन लोगों ने इसे खरीदा, उन्होंने इसमें पानी मिलाकर फिर इसकी छोटी-छोटी थैलियां बनाईं और देसी शराब कहकर इसे बेचा। मिथाइल अल्कोहल बेहद जहरीला होता है। इसे पीने के 15 मिनट के भीतर किसी इंसान की मौत हो सकती है। यह शरीर में पहुंचने के बाद लिवर को नुकसान पहुंचाता है और इससे मल्टि-ऑर्गन फेल्योर हो सकता है। चूंकि केमिकल में पानी मिला दिया गया था, इसलिए इसका असर 12 से 24 घंटों में नजर आया।
यह पूछे जाने पर कि वहां अवैध शराब कैसे बेची जा रही थी, बोटाद के एसपी ने हमारे संवाददाता से कहा कि आमतौर पर कई गांवों में चोरी-छिपे देसी शराब बनाई और बेची जाती थी। एसपी ने कहा कि चूंकि देसी शराब बनाने में कम से कम 6 दिन का वक्त लगता है, और पुलिस की छापेमारी का डर रहता है, इसलिए अब नकली शराब बेचने वालों ने एक शॉर्टकट तरीका ढूंढ़ा और मिथाइल अल्कोहल का इस्तेमाल किया।
लेकिन बोटाद जिले के रोजिद गांव के सरपंच ने खुलासा किया कि उन्होंने 4 महीने पहले ही पुलिस को लिखित शिकायत दी थी कि उनके इलाके में अवैध शराब बेची जा रही है, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
इस मामले में स्थानीय पुलिस की लापरवाही साफ नजर आती है। बोटाद के एसपी ने हालांकि सरपंच के आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया, लेकिन उन्होंने ये तो माना कि उन्हें इस साल मार्च में सरपंच की चिट्ठी मिली थी। एसपी ने दावा किया कि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की गई और तमाम केस भी दर्ज किए गए थे। उन्होंने कहा कि नकली शराब बनाने वालों ने शॉर्टकट तरीका अपनाते हुए मिथाइल अल्कोहल के साथ पानी मिला दिया।
गुजरात की यह घटना बहुत सारे सवाल खड़े करती है। गुजरात में नकली, जहरीली शराब इसलिए बिकती है क्योंकि वहां शराब पर पाबंदी है, तो क्या शराब से पाबंदी हटा ली जाए? जहरीली शराब का यह कारोबार इंडस्ट्री में काम आने वाले मिथाइल अल्कोहल की वजह से हुआ, तो क्या इंडस्ट्री को मिथाइल एल्कोहल की सप्लाई बंद कर दी जाए? लोग शराब के जहर से मौत की कगार पर आ गए, पर हॉस्पिटल जाने से बचते रहे क्योंकि उन्हें डर था कि पुलिस उन पर केस बना देगी, तो क्या पुलिस ड्राई स्टेट में शराब पीने वालों पर केस बनाना बंद कर दे?
मैं बार-बार कहता हूं, हमेशा कहता हूं कि किसी चीज पर पाबंदी लगाना कोई समाधान नहीं हो सकता। एक तरीका है कि लोगों को जागरूक किया जाए, असली-नकली में फर्क समझाया जाए, इससे शायद इस तरह के हादसे कम हो जाएं। लेकिन ड्राई स्टेट में नकली शराब, कच्ची शराब, जहरीली शराब के कारोबार को रोक पाना मुश्किल है।
जहां तक पुलिस का सवाल है, तो वह ये कहकर नहीं बच सकती कि उसने कच्ची शराब की भट्टियां बंद कर दी थी। मुझे लगता है कि लोकल पुलिस की मिलीभगत के बगैर इस तरह के गलत काम हो ही नहीं सकते। अपराधियों के खिलाफ ऐक्शन के साथ-साथ उन पुलिसवालों की भी पहचान होनी चाहिए जो इस तरह के काले कारनामे करने वालों को संरक्षण देते हैं। हालांकि ये सियासत का मसला नहीं है, लेकिन फिर भी चूंकि यह हादसा गुजरात में हुआ है, और वहां दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए सियासी दलों ने एक दूसरे पर वार-पलटवार करना शुरू कर दिया है। (रजत शर्मा)
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