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Rajat Sharma’s Blog: गीता प्रेस गांधी शांति पुरस्कार की हक़दार है

जिस गीता प्रेस ने कहा कि वो इस सरकार का प्रशस्ति पत्र तो स्वीकार करेंगे लेकिन 1 करोड़ की राशि नहीं लेंगे, उनकी ऐसी आलोचना का अधिकार जयराम रमेश को किसने दिया?

Written By: Rajat Sharma
Published on: June 20, 2023 16:34 IST
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Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

मुझे इस बात पर हैरानी हुई कि कांग्रेस ने गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने का विरोध किया। इसका विरोध करने वाले जयराम रमेश भूल गए कि नरसिम्हा राव की सरकार ने गीता प्रेस को सम्मानित किया था। गांधी जी की 125वीं जयंती के अवसर पर किया था। जयराम रमेश उस समय सरकार से जुड़े हुए थे, तब उनकी चेतना क्यों नहीं जागी? 100 साल से गीता प्रेस ने श्रीमद्भगवत गीता और रामचरितमानस को जन मानस तक पहुंचाया। गीता प्रेस की मैग्जीन ‘कल्याण’ के लिए महात्मा गांधी लेख लिखते थे, इसके रिकॉर्ड हमने आप को दिखाए हैं। ऐसी गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना कांग्रेस के लिए मजाक कैसे हो सकता है? गीता प्रेस, गोरखपुर न तो चंदा मांगती है, न तो विज्ञापन लेती है। जहां हर दिन की शुरुआत प्रार्थना से होती हो, कोई ऐसी संस्था का विरोध कैसे कर सकता है? गीता प्रेस की किताबों में कवर हाथ से चढ़ाए जाते हैं। कवर चढ़ाने वाले चप्पल उतारकर काम करते हैं कोई भी कागज जमीन पर नहीं रखा जाता। जहां इतनी श्रद्धा से काम होता है, अगर उन्हें भी सम्मानित न करें, तो किसको करें? 100 साल से सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार करने वालों को ये सम्मान बहुत पहले मिलना चाहिए था। जिस गीता प्रेस ने कहा कि वो इस सरकार का प्रशस्ति पत्र तो स्वीकार करेंगे लेकिन 1 करोड़ की राशि नहीं लेंगे, उनकी ऐसी आलोचना का अधिकार जयराम रमेश को किसने दिया? अगर जयराम रमेश से अनजाने में गलती हो गई तो उन्हें भूल स्वीकार करनी चाहिए।

अगर ये उनकी मानसिकता है, उनका सोचा समझा विचार है, तो फिर इसे जनता के फैसले पर छोड़ देना चाहिए। मैं तो जयराम रमेश को धन्यवाद दूंगा, अगर वो गीता प्रेस को पुरस्कार देने का विरोध न करते तो इतना विवाद न होता और हमें भी लोगों को गीता प्रेस, गोरखपुर के बारे में उनके योगदान और श्रद्धा के बारे में इतने विस्तार से बताने का अवसर न मिलता।

आदिपुरूष: दर्शकों की धार्मिक भावनाएं क्यों आहत हुईं?

आदिपुरूष’ फिल्म को लेकर देश के कई शहरों में हिन्दू संगठन सिनेमाघरों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। ‘आदिपुरूष’ बनाने वालों का तर्क है कि वो नई पीढ़ी को रामायण से जोड़ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कुछ प्रयोग किए। लेकिन मुझे लगता है कि ये लचर बहाने है, बाद में सोच कर कही गई बातें है। जनता से मार खाने के बाद अब फिल्म के प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, राइटर सबको समझ में आ गया है कि उनसे कई सारी गलतियां हुई हैं। वे कुछ डायलॉग तो बदल देंगे, लेकिन फिल्म में कई ऐसे सिक्वेंसेज हैं जो लोगों की भावनाओं को आहत करते हैं। फिल्म बनने के बाद इनको बदलना संभव नहीं होगा। अब फिल्म का स्क्रीन प्ले लिखने वाले और फिल्म के डायलॉग लिखने वाले एक दूसरे पर दोष डाल रहे हैं। इस तरह के भावना प्रधान विषय पर फिल्म बनाने से पहले डायरेक्टर और राइटर को सोचना चाहिए था। राम कथा हमारे देश के लोगों के लिए सिर्फ एक कहानी नहीं है। ये लोगों की आस्था और विश्वास से जुड़ा विषय है। गोस्वामी तुलसीदास रामायण को सरल भाषा में लिखकर अमर हो गए। सैकड़ों साल से गली गली में रामायण का मंच सजता है, कई जगह न एक्टर अच्छे होते हैं, न कॉस्ट्यूम सही होते हैं, न साउंड इफेक्टिव होती है, पर लोग घंटों घंटों तक बैठकर पूरी श्रद्धा के साथ रामलीला  देखते हैं। जब रामानंद सागर ने ‘रामायण’ सीरियल बनाया तो लोग सुबह-सुबह नहा धोकर टीवी के सामने अगरबत्ती जलाकर भक्ति भावना के साथ प्रभु राम की कथा देखते थे। देश में कितने सारे राम कथा वाचक हैं - मुरारी बापू से लेकर कुमार विश्वास तक। ये भी जब राम कथा सुनाते हैं तो लोग भक्ति के सागर में डूबकर पूरी श्रद्धा के साथ प्रभु राम की कथा सुनते हैं। रामायण लोगों के लिए पावन सीता माता, आज्ञाकारी और पराक्रमी श्रीराम और अनन्य भक्त हनुमान की वो गाथा है, जिसे देश का बच्चा बच्चा जानता है। इसलिए आदिपुरूष को देखने वाले लोग इतने आहत हुए। डायरेक्टर और राइटर को प्रयोग करने का इतना शौक था, तो उन्हें किसी और विषय का चुनाव करना चाहिए था। इतना सब होने के बाद भी मैं चार बातें कहना चाहता हूं। पहली बात, विरोध प्रकट करने के लिए हिंसा करने वाले भगवान राम के अनुयायी नहीं हो सकते, दूसरी, फिल्म पर प्रतिबंध की मांग भी अनुचित है। तीसरी, रामायण तो सबको अपनी बात कहने का अधिकार देती है। चौथी,  इसी तरह की फिल्म का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए करने वाले राजनेता भी राम भक्त नहीं हो सकते। भारत देश में सबको रामायण से सीखना चाहिए कि ये बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

केदारनाथ में सोना: जांच के नतीजे का इंतज़ार करें
श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर कमेटी ने साफ-साफ कहा है कि मंदिर के गर्भगृह में लगे सोने की परत को लेकर कोई घपला नहीं हुआ, कोई गड़बड़ी नहीं हुई, कुछ लोग राजनीतिक साजिश के तहत अफवाह फैला रहे हैं और मंदिर कमेटी को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। मंदिर कमेटी का कहना है कि केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के चारों तरफ जो जलेरी बनी है, उसमें सोने की परत चढ़ी हुई है। लेकिन पूजा करने की वजह से सोना की परत घिस गई थी, इसलिए दोबारा सोने का वर्क चढ़ाया गया है। सोने की परत खराब न हो, उसको फिर से नुकसान न पहुंचे, इसलिए जलेरी के ऊपर अब acrylic की शीट चढ़ाई गई है। दरअसल केदारनाथ धाम के पुरोहित संतोष त्रिवेदी का एक वीडियो पिछले कुछ दिनों से वायरल है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में लगाया गया सोना पीतल में बदल गया है। संतोष त्रिवेदी का कहना है कि गर्भ गृह में सोने की परत लगाने के नाम पर सवा अरब रुपए का घोटाला हुआ है। पुरोहित का कहना है कि  गर्भगृह में तीन महीने पहले सोना लगाया गया लेकिन कुछ महीनों बाद आज जब अंदर गया तो सोना पीतल में बदल गया। आखिरकार क्यों सोने की जांच नहीं हुई, कौन अधिकारी इसका जिम्मेदार है? इस पर मंदिर कमेटी ने कहा कि गर्भगृह की दीवारों और शिवलिंग की जलेरी में सोने की परत चढ़ाने का काम पिछले साल हुआ था। महाराष्ट्र के एक दानदाता ने ये काम करवाया था। मंदिर कमेटी सिर्फ देखरेख कर रही थी। कमेटी का कोई सीधा रोल नहीं था। मंदिर कमेटी का कहना है कि सोने की परत चढ़ाने में सोना और तांबा दोनों का इस्तेमाल हुआ है। कमेटी ने बताया कि गर्भगृह में 23 किलो 777 ग्राम सोना लगाया गया था जिसका बाज़ार भाव करीब 14 करोड़ 38 लाख रुपए है। और सोने के साथ-साथ करीब एक हज़ार किलो तांबे के प्लेट्स का भी इस्तेमाल हुआ, जिसकी कीमत 29 लाख रुपए है। कमेटी के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने कहा कि जो लोग कह रहे हैं कि सोना पीतल में बदल गया, वो गलत आरोप लगा रहे हैं, गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाई गई है और उसमें तांबे का भी इस्तेमाल हुआ है। उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री  सतपाल महाराज ने कहा कि मंदिर के गर्भगृह में कितना सोना लगाया गया, उसमें और क्या-क्या इस्तेमाल किया गया, इसकी जांच हो रही है, सच बहुत जल्द सामने आएगा। केदारनाथ धाम करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है, पवित्र 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक है। उस पवित्र धाम को लेकर ऐसे घपले का आरोप लगना गंभीर है। उत्तराखंड सरकार ये बात अच्छी तरह समझती है। चूंकि मंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि जांच कराई जा रही है, तो ये अच्छा कदम है, लेकिन जांच अच्छी तरह और निष्पक्ष होनी चाहिए और जब तक जांच पूरी नहीं होती तब तक सभी को धैर्य रखना चाहिए। बेहतर होगा कि जांच पूरी होने तक इसे बड़े विवाद का रूप न दिया जाए। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 19 जून, 2023 का पूरा एपिसोड

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