उत्तर प्रदेश में एक बार फिर एनकाउंटर में मारे गए अपराधी की जाति पर सियासत हुई। सुल्तानपुर में डकैती का आरोपी अनुज प्रताप सिंह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। उस पर एक लाख रुपये का इनाम था। पुलिस ने लूट का माल भी बरामद कर लिया है। कुल 14 में से दो डकैत मारे जा चुके हैं, नौ जेल में हैं, तीन फरार हैं। इस केस में पहला एनकाउंटर मंगेश यादव का हुआ था, तो अखिलेश यादव ने कहा था कि मंगेश यादव था, इसलिए पुलिस ने उसे मार डाला। सोमवार को अनुज सिंह का एनकाउंटर हुआ, अनुज राजपूत समुदाय से था तो अखिलेश यादव की पार्टी ने कहा कि अब योगी सरकार एनकाउंटर में जाति का संतुलन बैठाने में लगी है। अखिलेश ने ट्वीट किया, 'किसी का भी फर्ज़ी एनकाउंटर नाइंसाफी है'। सोमवार को ही महाराष्ट्र के बदलापुर में नर्सरी में पढ़ने वाली बच्चियों के साथ गलत हरकत करने वाले आरोपी ने पुलिस वैन के अंदर पुलिस की रिवॉल्वर छीनकर फायर किया। जवाबी फायरिंग में उसकी मौत हो गई।
यूपी एनकाउंटर
ये बहस तो अनंतकाल से चल रही है कि क्या किसी अपराधी का एनकाउंटर करना सही है? लेकिन अखिलेश यादव ने इसमें एक नया एंगल जोड़ दिया है। वो पूछते हैं कि अगर अपराधी यादव है या मुसलमान है तो ही उसका एनकाउंटर क्यों होता है? दूसरी जाति के अपराधी को पुलिस की गोली क्यों नहीं लगती है? सवाल जायज़ है। इसी पृष्ठभूमि में सोमवार को जब अनुज प्रताप सिंह की एनकाउंटर में मौत हुई, उसके पिता का एक वाक्य 'अब तो अखिलेश यादव के कलेजे को ठंडक पहुंच गई होगी' बहुत कुछ कहता है। मैं तो मानता हूं कि अपराधी की न कोई जाति होती है और न कोई मजहब। किसी जाति में , किसी धर्म में ये नहीं सिखाया जाता कि गुंडागर्दी करो, लूटपाट करो, किसी की जान लो लेकिन चूंकि पिछले कुछ हफ्तों में बार-बार एनकाउंटर में मारे जाने वालों की जाति पूछी गई तो मैंने अपने रिपोर्टर से कहा कि मार्च 2017 में जब योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने थे, उसके बाद से अब तक के आंकड़े निकालें। पता चला कि 7 साल में यूपी में 207 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए। इन अपराधियों में 67 मुस्लिम, 20 ब्राह्मण, 18 ठाकुर, 17 जाट और गुर्जर, 16 यादव, 14 दलित, तीन ट्राइबल, दो सिख, 8 ओबीसी और 42 दूसरी जातियों के थे। इसलिए ये कहना तो गलत होगा कि यूपी की पुलिस जाति देखकर एनकाउंटर करती है। लेकिन राजनीति के मैदान में ये सब नहीं देखा जाता। सब लोग जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर सियासत करते हैं। इसीलिए ये मसला तो बार-बार बनेगा, बार-बार उठेगा।
महाराष्ट्र में एनकाउंटर
महाराष्ट्र में भी एक एनकाउंटर हुआ। बदलापुर में नाबालिग बच्चियों से रेप का आरोपी अक्षय शिंदे मारा गया। क्राइम ब्रांच की टीम मुंबई की तलोजा जेल से उसे बदलापुर लेकर जा रही थी। अक्षय ने एक पुलिस वाले की बंदूक छीनकर तीन राउंड फायरिंग की। जवाब में वैन में मौजूद दूसरे पुलिसकर्मी ने अक्षय पर फायर किया। अक्षय को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। अक्षय शिन्दे को बदलापुर के एक स्कूल में नर्सरी में पढ़ने वाली बच्चियों के साथ गलत हरकतें करने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था। बाद में अक्षय की पत्नी ने भी उस पर सेक्सुअल असॉल्ट का केस दर्ज करवाया था। इसी केस में पुलिस पूछताछ के लिए उसे जेल से बदलापुर थाने ले जा रही थी। अब इस एनकाउंटर को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। शरद पवार, नाना पटोले, सुप्रिया सुले ने एनकाउंटर पर शक जताया और उसकी जांच कराये जाने की मांग की। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि पहले विपक्ष के यही नेता आरोपी को फांसी देने की मांग कर रहे थे और अब वही नेता एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे हैं। फडणवीस ने कहा कि पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी, इस पर सियासत करना ठीक नहीं हैं। मुंबई पुलिस के लिए एनकाउंटर कोई नई बात नहीं है। एक ज़माने में तो मुंबई पुलिस में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हुआ करते थे लोकिन वो सारे ऑपरेशन माफिया के खिलाफ होते थे। बदलापुर का केस एक अलग तरह का है। एक तो एनकाउंटर में मारे जाने वाले अक्षय के खिलाफ नाबालिग बच्चियों से बलात्कार का आरोप था जिसको लेकर इस इलाके के लोगों में बहुत गुस्सा था। दूसरी बात अक्षय शिंदे पर और भी कई सारे केस थे, इसीलिए पुलिस की बात सच लगती है कि अक्षय ने बंदूक छीनकर फायरिंग की होगी। असलियत तो जांच में सामने आएगी लेकिन चूंकि महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले हैं, इसीलिए इस मुद्दे पर सियासत तो होगी। जब ये केस हुआ था तो अपराधी को फांसी देने की मांग की गई थी। अब वो एनकाउंटर में मारा गया तो भी सरकार की नीयत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ये बयानबाजी राजनैतिक है और दोनों तरफ से इसी तरह की बातें सुनने को मिलेंगी। कम से कम ये कोई नहीं कहेगा कि यहां जाति के आधार पर मारा गया क्योंकि मुख्यमंत्री शिंदे हैं और जिसका एनकाउंटर हुआ वो भी शिंदे है। (रजत शर्मा)
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