दो तरह की तस्वीरें गुरुवार को आईं। एक, वो दिल दहलाने वाली तस्वीर जिसमें राम गोपाल मिश्रा को गोली मारी गई। रामगोपाल पर निशाना लगाकर मारने वाले तालीम और सरफराज़ साफ दिखाई दे रहे हैं। दूसरी तस्वीर, लंगड़ा कर चलते तालीम और सरफराज़ की है जिन्हें एनकाउंटर में यूपी पुलिस ने गोली मारी। हैरानी की बात ये है कि आज भी कुछ लोग हत्यारों की हिमायत करते नजर आए। जो लोग कैमरे पर गोली चलाकर हत्या करते हुए दिखाई दे रहे हैं, उनका समर्थन करते नजर आए। पैर में गोली लगने के बाद दोनों अपराधी कह रहे हैं कि हमने भागने की कोशिश की, इसीलिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी।
लेकिन इसके बावजूद कई राजनीतिक नेताओं ने इसे फर्जी एनकाउंटर करार देने का प्रयास किया। इन लोगों को लगता है कि पुलिस ने हत्या के आरोप में जिन्हें पकड़ा, उन्हें पैर में गोली मारकर पुलिस ने नाजायज़ काम किया। उनका तर्क ये है कि योगी सरकार 'ठोको' की नीति पर काम करती है और ये नीति सिर्फ मुसलमानों के लिए है।
एनकाउंटर की खबर आई, तो सियासत शुरू हो गई। सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार अपनी नाकामी को छुपाने के लिए फर्जी एनकाउंटर करवा रही है। उनकी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी ने कहा कि 'बंटोगे तो कटोगे' कोई नारा नहीं, कोड वर्ड है और उसका क्या मतलब है, ये सबको दिख रहा है। यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि जनता को डराने के लिए इस तरह के नकली एनकाउंटर हो रहे हैं। कांग्रेस के सांसद इमरान मसूद ने कहा कि एकतरफा एक्शन क्यों हो रहा है? जिन लोगों ने दंगा किया, उनका एनकाउंटर कब होगा?
अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम सरवर चिश्ती ने सरफराज़ और तालीम को बेकसूर बता दिया। उन्होंने कहा कि अगर कोई इस्लामिक झंडा उतार कर भगवा लहराएगा तो गोली नहीं चलेगी तो क्या फूल बरसेंगे? लेकिन सरवर चिश्ती ने ये नहीं बताया कि पुलिस पर हमला करने वाले हत्यारों पर क्या पुलिस अफसरों को फूल बरसाने चाहिए?
जब विरोधी दलों के तमाम नेताओं ने सरफराज़ और तालीम के एनकाउंटर को गलत बताया, लेकिन रामगोपाल की हत्या पर कुछ नहीं कहा, तो हैरानी हुई। ये वही लोग हैं, जो किसी धार्मिक यात्रा में हिंसा हो जाए तो कानून और व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं। अगर पुलिस अपराधी को पकड़ने में देरी करे, तो पुलिस पर सवाल उठाते हैं। अगर पुलिस दंगाइयों पर सख्ती करे, तो पुलिस पर नाइंसाफी का इल्जााम लगाते हैं, और अगर पुलिस सरेआम हत्या करने वाले हत्यारों को गोली मारे तो एनकाउंटर को फर्जी बताते हैं।
आखिर इन नेताओं और पार्टियों की मजबूरी क्या है, सबको पता है। अगर आंकड़ें देखें, तो ये कहना गलत होगा कि यूपी में जितने पुलिस एनकाउंटर हुए उसमें सिर्फ मुसलमान अपराधियों पर गोलियां चलाई गईं। योगी आदित्यनाथ के शासन में जिन अपराधियों के साथ एनकाउंटर हुए हैं, उनमें अगर मुस्लिम है तो ब्राह्मण भी है और ठाकुर भी, यादव भी हैं और OBC भी। पुलिस न तो नाम पूछकर गोली चलाती है, और न मजहब देखकर एनकाउंटर करती है। बहराइच में जो हुआ वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। रामगोपाल मिश्रा की हत्या के बाद जिस तरह से लोगों के घर और दुकानें जलाई गईं वो भी दुर्भाग्यजनक था। पुलिस ने अपराधियों को नेपाल सीमा के पास पकड़ा, वे भागने की कोशिश कर रहे थे। उस एनकाउंटर पर सवाल उठाना, किसी भी तरह न्यायोचित नहीं है। मुझे लगता है कि ऐसे मामलों में पुलिस और अदालत को अपना अपना काम करने देना चाहिए। (ऱजत शर्मा)
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