Thursday, December 19, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog | चुनावों में हार: कांग्रेस अब सामूहिक निर्णय वाले रास्ते पर चले

Rajat Sharma’s Blog | चुनावों में हार: कांग्रेस अब सामूहिक निर्णय वाले रास्ते पर चले

सिद्धू का इस्तीफा तो फिर भी समझ आता है, लेकिन उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की क्या गलती थी?

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : March 17, 2022 17:39 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on G23, Rajat Sharma Blog on Congress
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

ग्रुप ऑफ 23 (जी-23) के नाम से मशहूर कांग्रेस पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की बुधवार को गुलाम नबी आजाद के घर पर दिल्ली में बैठक हुई। इस बैठक में इन नेताओं ने कहा कि 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण पैदा हुए वर्तमान संकट से आगे बढ़ने का यही रास्ता है कि सामूहिक और समावेशी नेतृत्व की व्यवस्था हो।

बैठक के बाद एक बयान जारी किया गया, इसमें कहा गया : ‘कांग्रेस पार्टी के हम सभी सदस्यों ने विधानसभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन तथा नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा पार्टी छोड़ने से उत्पन्न स्थिति पर विचार विमर्श किया। हमारा मानना है कि कांग्रेस के लिए आगे बढ़ने का यही तरीका है कि सामूहिक और समावेशी नेतृत्व की व्यवस्था अपनाई जाए और हर स्तर पर निर्णय लेने का प्रबंध हो। भाजपा का विरोध करने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी को मजबूत किया जाए। हम मांग करते हैं कि कांग्रेस समान विचारधारा वाली सभी ताकतों के साथ संवाद की शुरुआत करे ताकि 2024 के लिए  विश्वसनीय विकल्प पेश करने के लिए एक मंच बन सके। इस संबंध में अगले कदमों की घोषणा जल्द की जाएगी।’

इस बयान पर गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, पृथ्वीराज चव्हाण, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा, अखिलेश प्रसाद सिंह, राज बब्बर, शंकर सिंह वाघेला, मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर, पीजे कुरियन, एमए खान, राजिंदर कौर भट्टल, संदीप दीक्षित, कुलदीप शर्मा, विवेक तन्खा और परनीत कौर ने साइन किया। इनमें मणिशंकर अय्यर और शशि थरूर दशकों से गांधी परिवार के वफादार रहे हैं, लेकिन अब ये भी बगावती तेवर वाले नेताओं में शामिल हो गए हैं।

मैं तो गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के सब्र की दाद देता हूं कि कांग्रेस के एक के बाद एक चुनाव हारते जाने के बावजूद उन्होंने आलाकमान के खिलाफ बगावत नहीं की। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह और कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेताओं ने थक हारकर कांग्रेस छोड़ दी, लेकिन इन नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस को अब भी फिर से खड़ा किया जा सकता है।

इन नेताओं को यह भी पता है कि उनके कुछ कहने या न कहने से सोनिया गांधी को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह किसी भी तरह से राहुल गांधी को अपनी विरासत सौंपना चाहती हैं, और उन्हें कांग्रेस का अगला अध्यक्ष बनाना चाहती हैं। न सोनिया गांधी को, न राहुल गांधी को और न ही प्रियंका को ये लगता है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार उनकी वजह से हुई।

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने कहा था कि वह और उनका परिवार पार्टी को मजबूत करने के लिए 'किसी भी बलिदान के लिए तैयार' है, लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, लगभग 5 घंटे के विचार-विमर्श के बाद, कार्य समिति ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में एक बार फिर अपना विश्वास जताया और माना कि ‘रणनीति में कमियां’ थीं। बजट सत्र के बाद एक और 'चिंतन शिविर' आयोजित करने का निर्णय लिया गया। CWC ने सोनिया गांधी को ‘राजनीतिक परिवर्तनों को पूरा करने के लिए संगठन में व्यापक बदलाव’ करने के लिए अधिकृत किया। इसके एक दिन बाद, सोनिया गांधी ने उन पांच राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों के इस्तीफे मांग लिए जहां हाल ही में चुनाव हुए थे।

अब कांग्रेस नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। पंजाब के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा, पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ‘एक बोझ थे जिनके लालच ने पार्टी को डूबो दिया।’ अंबिका सोनी का नाम लिए बिना जाखड़ ने ट्वीट किया: ‘ चन्नी एक एसैट हैं - क्या (आप) मजाक कर रहे हैं? भगवान का शुक्र है कि उन्हें CWC में पंजाब की उस महिला ने ‘नेशनल ट्रेजर’ घोषित नहीं किया, जिन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था। उनके लिए वह एक एसैट हो सकते हैं लेकिन पार्टी के लिए वह केवल एक बोझ हैं। शीर्ष पदाधिकारियों ने नहीं, बल्कि उनके अपने लालच ने उन्हें और पार्टी को नीचे ला दिया।’ जाखड़ ने अपने ट्वीट के साथ चन्नी की एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें लिखा था, 'ईडी ने चन्नी के भतीजे से 10 करोड़ रुपये जब्त किए, सीएम ने साजिश की बात कही।’

उत्तराखंड में, कांग्रेस के एक नेता रंजीत रावत ने आरोप लगाया कि हरीश रावत ने टिकट के लिए लोगों से पैसे लिए और अब वे अपना पैसा वापस पाने के लिए उन्हें खोज रहे हैं। इन आरोपों पर हरीश रावत ने तुरंत जवाब दिया और आलाकमान से कहा कि वह उन्हें पार्टी से निकाल दें। हरीश रावत ने ट्वीट किया: ‘टिकट और पद बेचने के आरोप बहुत गंभीर हैं, और यदि ये आरोप एक ऐसे व्यक्ति पर लगाये जा रहे हों,  जो मुख्यमंत्री रहा है, जो पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहा है, जो पार्टी का महासचिव रहा है और कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य है, तो उसे निष्कासित किया जाना चाहिए।’

कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर जो भी व्यक्ति सवाल करता है, उसे पार्टी विरोधी या बीजेपी का एजेंट घोषित कर दिया जाता है। कांग्रेस के सीनियर नेता कपिल सिब्बल ने यही गलती की थी। उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था, ‘आज कम से कम मैं 'सब की कांग्रेस' चाहता हूं, लेकिन कुछ लोग हैं जो 'घर की कांग्रेस' चाहते हैं। मैं निश्चित रूप से 'घर की कांग्रेस' नहीं चाहता  मैं अपनी आखिरी सांस तक 'सब की कांग्रेस' के लिए संघर्ष करूंगा।’

इसके तुरंत बाद कपिल सिब्बल को मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी और अशोक गहलोत जैसे कांग्रेस नेताओं के हमले झेलने पड़े। लेकिन कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण, मणिशंकर अय्यर, शंकर सिंह वाघेला और पीजे कुरियन जैसे नेता राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं और उन्हें पता है कि कब क्या करना चाहिए। यही वजह है कि बुधवार की रात गुलाम नबी आजाद के घर हुई जी-23 नेताओं की बैठक से कांग्रेस में बेचैनी थी।

जब मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेता कहते हैं कि 5 राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों के इस्तीफे पार्टी की कमजोरियों को दूर करने के लिए लिए गए हैं, तो कहने वाले ये भी कह रहे हैं कि इस वक्त पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी तो राहुल गांधी हैं, फिर उनकी जिम्मेदारी क्यों नहीं तय की जा रही? पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू का तो समझ में आता है कि उनके और चरणजीत चन्नी के बीच चले कोल्ड वॉर से कांग्रेस को नुकसान हुआ, लेकिन सिद्धू को शह किसने दी? राहुल और प्रियंका ने ही सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ हथियार बनाया और अब जब हार हो गई है तो सिद्धू को किनारे लगाने के लिए ‘यूज एंड थ्रो’ की पॉलिसी अपना ली।

खैर, सिद्धू का इस्तीफा तो फिर भी समझ आता है, लेकिन उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की क्या गलती थी? उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सारा काम तो प्रियंका गांधी ही देख रही थीं, अजय कुमार लल्लू तो बस नाम के अध्यक्ष थे। इसी तरह उत्तराखंड में गणेश गोदियाल से तो इस्तीफा ले लिया गया, लेकिन अभी हरीश रावत की जिम्मेदारी तय नहीं की गई, जो कांग्रेस के कैंपेन की अगुवाई कर रहे थे और अपनी सीट भी हार गए।

साफ शब्दों में कहें तो कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्षों को बलि का बकरा बना दिया। अब लोग खुलेआम पूछ रहे हैं कि सिद्धू को पार्टी में कौन लाया, किसने उन्हें आगे बढ़ाया और किसने सिद्धू के ऊपर चन्नी को बिठाया? उत्तराखंड में हरीश रावत को किसने जिम्मेदारी दी? लिस्ट जारी होने के बाद उम्मीदवार क्या गणेश गोंडियाल ने बदले थे? उत्तर प्रदेश में क्या कमान अजय सिंह लल्लू के हाथ में थी या प्रियंका गांधी के हाथ में थी?

ये कुछ ऐसे कठिन सवाल हैं जिनका सामना कांग्रेस आलाकमान के प्रभारी, गांधी परिवार को करना होगा। ये जितनी जल्दी हो, उतना ही बेहतर रहेगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 16 मार्च, 2022 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement
detail