कर्नाटक में जारी अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के वादे को लेकर कांग्रेस फंसती नजर आ रही है । इस चुनाव में बजरंग बली सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में 'बजरंगबली की जय' का जयकारा लगवा रहे हैं और मतदाताओं से कह रहे हैं कि जब वो वोट डालने जाएं तो 'बजरंग बली की जय' बोलकर ही ईवीएम का बटन दबाएं । पूरे चुनाव अभियान का सुर और स्वर बदल चुका है । कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. वीरप्पा मोइली ने स्पष्ट किया कि बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है क्योंकि राज्य सरकार के पास संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार ही नहीं है । वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाना चाहिए । यह सही है कि बजरंगबली और बजरंग दल का आपस में कोई संबंध नहीं है, लेकिन बीजेपी ने इस मसले को ऐसा ट्विस्ट दे दिया है जिसके चक्कर में कांग्रेस में फंस गई है। गलती कांग्रेस से हुई, क्योंकि बजरंग दल कोई आतंकवादी संगठन नहीं हैं। बजरंग दल राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं है। जो लोग नहीं जानते उन्हें बता दूं कि बजरंग दल का गठन 1984 में हुआ था। 1984 में हुई धर्म संसद में राम जन्मभूमि मंदिर के लिए आंदोलन का फैसला हुआ था। तय हुआ कि देशभर में 'राम जानकी रथ यात्रा' निकाली जाएगी। यात्राएं शुरू हुईं तो उन पर पथराव की घटनाएं होने लगीं। सरकार से सुरक्षा की मांग की गई लेकिन सुरक्षा नहीं मिली। फिर विश्व हिन्दू परिषद ने राम जानकी रथ यात्राओं की सुरक्षा के लिए अपने कार्यकर्ताओं की टोलियां बनाईं। चूंकि राम जानकी रथ यात्राएं राम मंदिर निर्माण के लिए हो रही थीं और बजरंगबली प्रभु राम के अनन्य भक्त और योद्धा थे इसलिए यात्रा में चल रहे रामभक्तों की सुरक्षा करने वाली टोलियों को हनुमान जी के नाम पर बजरंग दल कहा गया। बजरंग दल का गठन हिन्दुओं और रामभक्तों की रक्षा के लिए हुआ इसलिए इसे आंतकवादी संगठन कैसे कहा जा सकता है। चूंकि कांग्रेस ने बजरंग दल की तुलना पीएफआई से कर दी इसलिए यह इतना बड़ा मुद्दा बन गया। अपनी सभाओं में पीएम मोदी ने लोगों से कहा कि वो घर-घर जाएं और उनके संदेश को फैलाएं: ईवीएम का बटन दबाते हुए हुए 'बजरंगबली की जय' का नारा लगाएं और कांग्रेस को सबक सिखाएं। कर्नाटक में टक्कर कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है। यह सही है कि कुछ दिन पहले तक कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी। लेकिन पिछले चार दिनों में नरेन्द्र मोदी के धुंआधार प्रचार से हवा बदली है। बीजेपी को अहसास है कि कर्नाटक में मोदी ही नैया पार लगा सकते हैं इसलिए अब मोदी के प्रचार का दायरा बढ़ा दिया गया है। नरेंद्र मोदी बुधवार तक कर्नाटक में 12 जनसभाएं और तीन रोड शो कर चुके हैं। शनिवार (6 मई) को मोदी 37 किलोमीटर का रोड शो भी करेंगे। यह मोदी का अब तक सबसे लंबा रोड शो होगा। इसमें मोदी 17 विधानसभा सीटों को कवर करेंगे। सात मई को कर्नाटक में मोदी चार जनसभाओं को संबोधित करेंगे। बीजेपी के नेताओं को पूरा यकीन है कि मोदी का प्रचार गेम चेंजर साबित होगा।
यूपी निकाय चुनाव में कड़ी मेहनत कर रहे हैं योगी
उत्तर प्रदेश के 37 जिलों में स्थानीय निकायों के लिए पहले चरण का मतदान गुरुवार को हुआ, जबकि दूसरे चरण का मतदान 11 मई को होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगभग सभी जिलों को कवर करते हुए प्रचार में जुटे हुए हैं। बुधवार को उन्होंने मऊ, आजमगढ़, बलिया और संत कबीर नगर में रैलियों को संबोधित किया और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती दोनों पर हमला बोला। उन्होंने मतदाताओं को याद दिलाया कि कैसे सपा और बसपा के शासन में माफिया सरगनाओं और गैंगस्टरों का राज था, लेकिन अब उनमें से ज्यादातर सलाखों के पीछे हैं। वहीं अखिलेश यादव मतदाताओं के सामने स्थानीय मुद्दों को उठा रहे हैं। अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा कि बीजेपी के नेताओं के हैलीकॉप्टर पूरे प्रदेश में घूम रहे हैं। सारे नेता प्रचार कर रहे हैं। यह बीजेपी का डर है। लेकिन सच्चाई यह है कि यूपी की शहरी स्थानीय निकाय में पहले से बीजेपी का कब्जा है। पिछले चुनाव में 16 नगर निगमों में से बीजेपी ने 14 में जीत दर्ज की थी। दो जगह बीएसपी के मेयर बने थे और समाजवादी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था। इसके बाद भी योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ बीजेपी के सभी नेता जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं। सीएम योगी अब तक 28 जनसभाएं कर चुके हैं। दूसरी तरफ, अखिलेश यादव ने प्रचार के नाम पर लखनऊ मेट्रो में सफर किया । वे गोरखपुर, सहारनपुर और कन्नौज गए में सभाओं को संबोधित किया। मायावती तो इस बार बाहर ही नहीं निकलीं। इसलिए लगता है कि योगी की मेहनत का असर 13 मई को शहरी निकायों के नतीजों में दिखाई देगा।
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