उत्तर प्रदेश में ज़बरदस्त सियासी हलचल दिखाई दी। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक रणनीति बनाने के लिए बैठकों का दौर चलता रहा। दिल्ली में यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। इससे पहले भूपेन्द्र चौधरी और केशव प्रसाद मौर्य से बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्ढा ने अलग अलग मीटिंग की थी। पार्टी हाईकमान ने साफ पैग़ाम दे दिया - फिलहाल यूपी सरकार में कोई नेतृत्व परिवर्तन नहीं होगा, योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने रहेंगे, उनके नेतृत्व को लेकर कोई चर्चा नहीं होगी। दूसरी बात,यूपी में बीजेपी के संगठन में बदलाव हो सकता है, लेकिन दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव के बाद। तीसरी बात, यूपी में पहला लक्ष्य उपचुनाव में दस की दस सीटें जीतना है। इसके लिए सबको एकजुट होकर काम करने को कहा गया है। उधर लखनऊ में योगी आदित्यनाथ उपचुनाव की तैयारियों में लग गए हैं। योगी ने दस सीटों के उपचुनाव में अपने तीस मंत्रियों की ड्यूटी लगाई है। इनमें 13 कैबिनेट और 17 राज्य मंत्री हैं। योगी ने आज इन मंत्रियों की मीटिंग बुलाकर सबको उनकी जिम्मेदारी समझा दी। योगी ने मंत्रियों को हिदायत दी है कि वो चुनाव क्षेत्र में जाएं और हफ्ते में कम से कम दो दिन वहीं रुकें, ज़मीनी स्तर पर काम करें, जनता की समस्याएं सुनें, कार्यकर्ताओं की परेशानियों को दूर करें औऱ हर बूथ को मजबूत करें।। मंत्रियों ने भी योगी को अपने सुझाव दिए। कहा गया कि बाकी सब तो ठीक है, बस उम्मीदवारों का चयन सही होना चाहिए, उसके बाद जीत पक्की है।
एक तरफ जहां दिल्ली और लखनऊ में संगठन को लेकर बातें चल रही है, योगी आदित्यनाथ का फोकस सिर्फ और सिर्फ दस विधानसभा सीटों पर है। योगी ने उन मंत्रियों के साथ लंबी मीटिंग की, जिनकी ड्यूटी इन दस सीटों पर लगाई गई है। इनमें सूर्य प्रताप शाही, सुरेश खन्ना, स्वतंत्र देव सिंह, संजय निषाद, दयाशंकर सिंह, राजीव सचान, लक्ष्मी नारायण चौधरी, अनिल कुमार और अनिल राजभर समेत 29 मंत्री शामिल हुए। इस मीटिंग में मंत्रियों ने योगी आदित्यनाथ को अपना फीडबैक भी दिया। मंत्रियों ने बताया कि ग्राउंड लेवल पर ये बात तो दिख रही है कि कुछ अधिकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की अनदेखी करते हैं, उनकी बात नहीं सुनते। दूसरा सुझाव ये दिया गया कि इस बार उम्मीदवारों का चय़न सावधानी से होना चाहिए। कुछ नेताओं ने तो ये भी कहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी को मुस्लिम उम्मीदवार उतारने पर विचार करना चाहिए। तर्क ये दिया गया कि जब बीजेपी की केन्द्र सरकार में, राज्य सरकारों में मुस्लिम मंत्री हो सकते हैं, तो उम्मीदवार क्यों नहीं हो सकते? मंत्रियों ने कहा कि ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उम्मीदवार का चयन सिफारिश के आधार पर नहीं, ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर हो। बैठक मे इस बात पर विचार किया गया कि लोकसभा चुनाव में जो गलतियां हुई, जिसका फायदा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को हुआ, उन गलतियों को कैसे सुधारा जाए।
असल में यूपी में जिन दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वो बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल सीटें हैं। क्योंकि पिछले चुनावों में इन दस में से पांच सीटें पांच समाजवादी पार्टी ने जीतीं थी, तीन बीजेपी ने और एक-एक सीटें निषाद पार्टी और RLD ने जीती थीं। इन सीटों में अखिलेश यादव की करहल सीट है जो 1993 से समाजवादी पार्टी के पास रही है। अयोध्या की मिल्कीपुर से 9 बार के विधायक अवधेश प्रसाद सिंह फैजाबाद से सांसद बन गए हैं, इसलिए ये सीट खाली हुई है। इन सीटों में मुरादाबाद की कुंदरकी सीट भी है, जो बीजेपी ने पिछली बार इक्तीस साल पहले 1993 में जीती थी। इस सीट पर 65 परसेंट वोट मुसलमानों के हैं, हिन्दू सिर्फ 35 परसेंट है। इसलिए बीजेपी के लिए चुनौती तो बड़ी है। मिर्ज़ापुर की मझवां सीट पर भी उप-चुनाव होना हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां से निषाद पार्टी के विनोद बिंद जीते थे। अब वो भदोही से सांसद बन गए हैं। 2017 में मझवां सीट बीजेपी ने जीती थी, इसलिए, बीजेपी यहां से अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है लेकिन निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने आज बड़े ही कायदे से कह दिया कि बीजेपी सहयोगी दलों का पूरा सम्मान करती है, जो जिस सीट पर जीता हो, वो सीट उसी को मिलती है। इसलिए कम से कम एक सीट तो निषाद पार्टी को मिलेगी। लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ा उलटफेर यूपी में हुआ, बीजेपी को सबसे तगड़ा झटका लगा और समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। इसलिए लोकसभा चुनाव के नतीजों का सबसे ज्यादा असर यूपी में ही दिख रहा है।
पिछले एक महीने से लगातार ये हवा बनाई जा रही थी कि अब योगी की कुर्सी जाएगी लेकिन आज बीजेपी हाई कमान ने ये संकेत दे दिए कि यूपी में योगी का कोई विकल्प नहीं है, यूपी को योगी ही चलाएंगे, यूपी में योगी को अब पहले से ज्यादा फ्री हैंड दिया जाएगा, उम्मीदवारों का चयन भी योगी करेंगे, उपचुनाव की रणनीति भी योगी बनाएंगे। जे पी नड्डा ने केशव प्रसाद मौर्य को भी बता दिया है कि संगठन ही सबसे बड़ा है,संगठन में ही शक्ति है, ये सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा, इसका पालन भी करना होगा, सबको मिलकर, सबको साथ लेकर चलना होगा, इसलिए कोई नेता ऐसी बयानबाज़ी न करें जिससे कार्यकर्ताओं में किसी तरह की गलतफहमी पैदा हो। जहां तक उपचुनाव का सवाल है, दस सीटों के चुनाव बीजेपी के लिए जितनी बड़ी चुनौती है, उससे कम अखिलेश यादव के लिए भी नहीं है, क्योंकि जिन सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से पांच सीटें तो समाजवादी पार्टी जीती थी। बीजेपी ने 2022 में इनमें से सिर्फ तीन सीटें जीती थीं। करहल सीट अखिलेश यादव की अपनी सीट है। तीस साल से ये सीट समाजवादी पार्टी के पास है, इसलिए इस सीट को बचाना अखिलेश के लिए चुनौती है। चूंकि इस बार बीजेपी फैजाबाद अयोध्या में लोकसभा चुनाव हारी है, फैजाबाद से जीते अवधेश प्रसाद को अखिलेश यादव पोस्टर ब्वॉय बना रहे है, इसलिए अयोध्या जनपद में पड़ने वाली अवधेश प्रसाद पासी की मिल्कीपुर सीट को जीतकर बीजेपी अयोध्या में हार का बदला लेना चाहती है। ये योगी के लिए बड़ी चुनौती है, और योगी ने यह चुनौती स्वीकार कर ली है। (रजत शर्मा)
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