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Rajat Sharma’s Blog: क्या विपक्ष को एकजुट कर सकती हैं ममता?

कांग्रेस जहां नरेंद्र मोदी के खिलाफ गैर-बीजेपी दलों के गठबंधन की बात करती है वहीं ममता बीजेपी के खिलाफ गैर-कांग्रेसी दलों के गठबंधन की बात कर रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठेगा कि गैर-कांग्रेसी गठबंधन यानी तीसरे मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा?

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: December 02, 2021 16:16 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को मुंबई में ऐलान किया कि उन्होंने देश को एक नया और मजबूत विकल्प देने की तैयारी शुरू कर दी है। ममता ने साफ कहा कि अब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकती। अब क्षेत्रीय दलों को मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विकल्प देना होगा। उन्होंने कहा, 'केवल क्षेत्रीय दल ही बीजेपी को हरा सकते हैं।'

 
ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी उनका नाम लिए बिना निशाना साधा।  ममता ने कहा- 'जो ज्यादातर समय विदेश में रहते हैं, वे नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं दे सकते।‘ शिवसेना के नेताओं और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के साथ मुंबई में मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने देश के राजनीतिक भविष्य को लेकर कुछ संकेत दिए। इसमें सबसे बड़ी बात थी उनका राहुल गांधी पर सीधा हमला।
 
ममता बनर्जी से जब एक रिपोर्टर ने यह पूछा कि क्या शरद पवार यूपीए के नेता होंगे, तो ममता के जवाब के समय उनके बगल में शरद पवार खड़े थे। ममता ने कहा, 'अब कहां हैं यूपीए- व्यूपीए? अब यूपीए नहीं है। हम इस पर साथ मिलकर फैसला करेंगे। हमें बीजेपी से मुकाबला करने के लिए व्यापक रणनीति बनानी होगी। हमें एकजुट विपक्ष की जरूरत है। शरद जी से मेरी मुलाकात बीजेपी को हराने के लिए एक्शन प्लान तैयार करने के लिए हुई । मैं उन्हें जानती हूं। मैंने उनके साथ काम किया है।' 
 
दूसरा महत्वपूर्ण संकेत यह था कि शरद पवार ने ममता की बातों का प्रकारान्तर से समर्थन किया। पवार ने माना कि राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प की जरूरत है। ममता बनर्जी और शऱद पवार की मुलाकात के बाद जो बयान आए उससे तमाम सियासी सवाल खड़े हो गए। सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि क्या अब मोदी विरोधी मोर्चे का नेतृत्व ममता करेंगी? क्या ममता, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर राहुल गांधी की दावेदारी को छीन लेंगी? 
 
सच्चाई यह है कि ममता ने मुंबई में शिवसेना और एनसीपी नेताओं से मुलाकात की लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज 'महा विकास अघाड़ी' गठबंधन के कांग्रेसी नेताओं से मिलने से परहेज किया। यह उनके सियासी रुख का स्पष्ट संकेत दे रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर भी तृणमूल कांग्रेस खुद को कांग्रेस से दूर रख रही है। मिसाल के तौर पर जब राज्यसभा के 12 सांसदों  के निलंबन का विरोध शुरू हुआ तो सभी विपक्षी दल कांग्रेस के साथ एकजुट होकर प्रद4शन करने लगे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने अलग से अपना विरोध प्रदर्शन किया। 
 
इससे यह सवाल उठता है कि क्या ममता टीएमसी को राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर पेश करने जा रही हैं? क्या ममता खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के तौर पर पेश कर रही हैं? मुंबई में ममता-पवार मुलाकात के बाद राजनीति के इस नए खेल को समझने के लिए दीदी और शरद पवार की बातों को सुनना और समझना जरूरी है। 
 
ममता की रणनीति बिल्कुल साफ है: कांग्रेस जहां नरेंद्र मोदी के खिलाफ गैर-बीजेपी दलों के गठबंधन की बात करती है वहीं ममता बीजेपी के खिलाफ गैर-कांग्रेसी दलों के गठबंधन की बात कर रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठेगा कि गैर-कांग्रेसी गठबंधन यानी तीसरे मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा? और अगर शरद पवार के साथ खड़े होकर ममता कांग्रेस के खिलाफ बोलें तो फिर महाराष्ट्र में चल रहे गठबंधन पर भी सवाल उठेगा क्योंकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल है। 
 
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने विकल्प से कांग्रेस को बाहर रखेंगी,  ममता बनर्जी ने कहा: 'शरद जी ने जो कहा वह यह है कि लड़ने के लिए एक मजबूत विकल्प होना चाहिए। कोई लड़ नहीं रहा है तो हम क्या करें? हमें लगता है कि सभी को मैदान में उतर कर लड़ना चाहिए।' 
 
शरद पवार सारी बातें अच्छी तरह जानते हैं। पवार की पार्टी एनसीपी महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना और कांग्रेस के साथ गठबंधन में सहयोगी है। इसीलिए ममता बनर्जी की बात खत्म होती, इससे पहले ही शरद पवार ने कहा- 'हमारी सोच आज के लिए नहीं है, बल्कि 2024 के चुनावों के लिए है और हमें इसके लिए एक मंच तैयार करना होगा। और ममता बनर्जी यही काम कर रही हैं। इसी इरादे से वह आई हैं और हमने बहुत सकारात्मक चर्चा की है। किसी को बाहर रखने का सवाल ही नहीं है। जो लोग बीजेपी के खिलाफ हैं और हमारे साथ आते हैं तो उनका स्वागत है... बात सबको साथ लेकर चलने की है..हमारे लिए नेतृत्व अहम सवाल नहीं है। जनता को एक मजबूत और भरोसेमंद मंच उपलब्ध कराना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसका नेतृत्व कौन करेगा यह बाद की बात है।'
 
शरद पवार ने भले ही कांग्रेस का नाम लेने से परहेज किया हो, लेकिन ममता ने पहले ही यशवंतराव चव्हाण केंद्र में आयोजित एक सभा में सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ बातचीत में कांग्रेस का नाम लिया। ममता ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, 'आप ज्यादातर समय विदेश में नहीं रह सकते। राजनीति में निरंतर कोशिश की जरूरत होती है। अगर आप मौज-मस्ती के लिए विदेश जा रहे हैं तो फिर जनता आप पर कैसे भरोसा करेगी। आप विदेश में बैठकर लड़ाई नहीं लड़ सकते। आपको सड़कों पर उतरकर लड़ना होगा। जो लोग अपना आधा समय विदेश में बिताते हैं वे न तो मोदी से लड़ सकते हैं और न ही मोदी को हरा सकते हैं। बीजेपी का मुकाबला वही नेता कर सकते हैं जो जमीनी हकीकत जानते हैं और हमने पश्चिम बंगाल में ऐसा कर दिखाया है। हमने कांग्रेस को सलाह दी थी कि विपक्ष को दिशा देने के लिए सिविल सोसायटी की प्रमुख हस्तियों की एक सलाहकार परिषद होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।'
 
ममता बनर्जी ने यह भी कहा, उनकी पार्टी उन राज्यों में चुनाव नहीं लड़ेगी जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं। उन्होंने कहा, 'अगर सभी क्षेत्रीय दल एकजुट हो जाएं तो बीजेपी को हराना बहुत आसान है। क्षेत्रीय दल मिलकर राष्ट्रीय दल का निर्माण करेंगे। वे अकले बीजेपी को हरा सकते हैं। मैं वोटों का बंटवारा नहीं चाहती, कोई भी दल देश से बड़ा नहीं है।' 
 
इस सभा में सिविल सोसायटी के ज्यादातर वही लोग शामिल थे जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के खिलाफ टीवी और सोशल मडिया पर लगातार कैंपेन चला रहे हैं। इनमें जावेद अख्तर, मेधा पाटकर, स्वरा भास्कर, शोभा डे, महेश भट्ट, मुनव्वर फारूकी जैसे तमाम लोग मौजूद थे। इनमें से ज्यादातर लोगों ने बार-बार कहा कि अब ममता को विरोधी दलों का नेतृत्व अपने हाथ में लेना चाहिए।
 
इसके जवाब में ममता ने कहा कि मैं एक 'मामूली कार्यकर्ता' हूं और कार्यकर्ता के तौर पर ही रहना चाहती हूं। 'पीएम कौन बनेगा, ये फैसला तो बदलते हुए हालात और राज्य तय करेंगे। अहम बात यह है कि बीजेपी को देश के अंदर राजनीतिक रूप से मिटाना है और देश को बचाना है।'
 
केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि देश में यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया 'यूएपीए देश की आंतरिक सुरक्षा और बाहरी ताकतों से सुरक्षा के लिए है। इसका भी दुरुपयोग अन्य चीजों की तरह किया जा रहा है। इनकम टैक्स विभाग, सीबीआई, ईडी का भी दुरुपयोग हो रहा है।'
 
ममता बनर्जी यह जानती हैं कि विपक्षी दलों के समर्थकों का एक बड़ा तबका किसी ऐसे नेता का इंतज़ार कर रहा है जो मोदी को सीधी टक्कर दे सके। इन लोगों ने 2014 और 2019 के चुनावों में राहुल गांधी पर अपनी उम्मीदें टिका रखी थीं। लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को दोनों बार करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद विपक्षी दलों के बीच एक वैकल्पिक नेता की तलाश शुरू हई और अब ममता बनर्जी उस जगह को भरने की कोशिश कर रही हैं। यही वजह है कि आजकल वह पीएम मोदी पर सीधा हमला करती हैं। सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ अपनी मीटिंग में ममता बनर्जी ने कहा कि 'मोदी अजेय नहीं हैं,  मोदी को भी डर लगता है।'
 
राहुल गांधी के सलाहकारों के कोर ग्रुप का हिस्सा माने जानेवाले अधीर रंजन चौधरी और के.सी. वेणुगोपाल जैसे कांग्रेस नेताओं को ममता बनर्जी की यह बात चुभ गई। उन्होंने ममता के उस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिसमें उन्होंने कहा कि 'कोई यूपीए नहीं है।' वेणुगोपाल ने कहा, 'भारतीय राजनीति की हकीकत हर कोई जनता है। यह सोचना कि बिना कांग्रेस के कोई बीजेपी को हरा सकता है, यह केवल एक सपना है।'
 
अधीर रंजन चौधरी ने कहा, 'क्या ममता नहीं जानती हैं कि यूपीए क्या है? मुझे लगता है कि उन्होंने पागलपन शुरू कर दिया है। उन्हें लगता है पूरे देश ने ममता-ममता चिल्लाना शुरू कर दिया है। लेकिन भारत का मतलब बंगाल नहीं है और अकेले बंगाल का मतलब भारत नहीं है। पिछले चुनावों (बंगाल) में उनकी रणनीति धीरे-धीरे उजागर हो रही है। बंगाल में बीजेपी के साथ उन्होंने जो साम्प्रदायिक खेल खेला वह अब साफ हो चुका है।' 
 
कुल मिलाकर मुझे लगता है कि चाहे ममता बनर्जी हों या शरद पवार, सब जानते हैं कि उनके लिए अपने दम पर मोदी को हराना संभव नहीं है। इसलिए सभी विपक्षी दलों को साथ आना पड़ेगा। 
 
दूसरी बात, दोनों यह मानते हैं कि न तो राहुल गांधी नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सकते हैं और न ही कांग्रेस बीजेपी का एकमात्र विकल्प हो सकती है। लेकिन कांग्रेस का मानना है कि उसके अलावा कोई मजबूत विकल्प नहीं बन सकता। कांग्रेस को अलग रखकर विपक्ष खड़ा नहीं हो सकता। राहुल गांधी मानते हैं कि सिर्फ एक वही हैं जो मोदी को चैलेंज कर सकते हैं, क्योंकि वो मानते हैं कि बाकी सब नेता मोदी से डरते हैं। लेकिन ममता बनर्जी जमीन की राजनीति को अच्छी तरह समझती हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल में बीजेपी को बुरी तरह मात दी है, साथ ही बंगाल मे वामपंथी शासन के दौरान राजनीतिक संघर्ष करने का उनका एक लंबा रिकॉर्ड  रहा है। 
 
इसीलिए अब ममता बनर्जी को लगता है कि कांग्रेस का साथ लेकर कोई मजबूत विकल्प नहीं बन पाएगा। इसीलिए उन्होंने खुद नेतृत्व संभालने का फैसला किया है। ममता को लगता है कि अगर क्षेत्रीय ताकतें इक्कठी हो जाएं, जैसे महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना, यूपी में समाजवादी पार्टी, बिहार में आरजेडी, यानी जो पार्टी जहां मजबूत है उस राज्य में वो लीड करे तो एक राष्ट्रीय विकल्प बन सकता है। ममता चाहती हैं कि यह मजबूत राष्ट्रीय विकल्प बीजेपी को टक्कर दे इसीलिए उन्होंने कहा कि 'अब यूपीए नहीं रहा' और ‘राहुल गांधी राजनीति को लेकर गंभीर नहीं हैं’।
 
वैसे राहुल गांधी के बारे में यह बात सबसे पहले शरद पवार ने कही थी। हालांकि उस वक्त महाराष्ट्र में एनसीपी कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल नहीं थी। लेकिन अब शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की सरकार है इसीलिए शरद पवार खामोश रहे। उन्होंने सिर्फ ममता का समर्थन किया लेकिन कांग्रेस पर कटाक्ष नहीं किया। ममता की सोच सही है लेकिन सभी क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाना आसान काम नहीं है। 
 
सभी क्षेत्रीय नेताओं की अपनी-अपनी आकांक्षाएं और अपनी-अपनी जरूरतें होती हैं। इसीलिए इन सबको एक गठबंधन में बांधना मुश्किल काम है। लेकिन आज देश में जो राजनीतिक स्थिति नज़र आ रही है उसमें अगर कोई यह काम कर सकता है, तो वो ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। अब तक तो बीजेपी ही 'कांग्रेस मुक्त भारत' की बात करती थी लेकिन अब ममता बनर्जी ने 'कांग्रेस मुक्त विपक्ष' की बात कह दी है। मुंबई में उन्होंने जो कुछ किया वो अभी एक शुरुआत भर है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 01 दिसंबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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