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Rajat Sharma's Blog | बीबीसी डॉक्यूमेंट्री : भारत को बदनाम करने की कोशिश करने वालों की असली मंशा क्या है?

सवाल सिर्फ मोदी का नहीं है। देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का भी है। देश के आत्मसम्मान का भी है। दंगे आज से 20 साल पहले हुए थ। डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले BBC के लोग देश से बाहर के हैं। यह मामला निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सुना जा चुका है।

Written By: Rajat Sharma
Published : Jan 26, 2023 18:17 IST, Updated : Jan 28, 2023 17:40 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

जामिया मिलिया इस्लामिया और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस में वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा पीएम मोदी पर बनी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री ( इंडिया : द मोदी क्वेश्चन) की स्क्रीनिंग की कोशिश, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को बदनाम करने की मानसिकता के अलावा और कुछ नहीं हैं। CPI-M की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के कार्यकर्ताओं ने बुधवार को छात्रों को जामिया मिलिया इस्लामिया में इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में शामिल होने के लिए कहा था। इसके बाद वहां पुलिस तैनात कर दी गई। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने स्क्रीनिंग की इजाजत देने से इनकार कर दिया। यूनिवर्सिटी में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात कर उसे एक किले में बदल दिया गया और अंत में स्क्रीनिंग की कॉल वापस ले गई। पुलिस ने 13 छात्रों को हिरासत में ले लिया। 

इससे पहले मंगलवार की रात वाम समर्थक कार्यकर्ताओं ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस के अंदर इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की कोशिश की लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बिजली और इंटरनेट सेवा ठप कर दी। इस दौरान पथराव की भी खबरें आईं। एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने पथराव के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) को जिम्मेदार ठहराया। 

एक बात साफ है कि इनका इरादा डॉक्यूमेंट्री देखने का नहीं बल्कि इसे सार्वजनिक तौर पर दिखाकर हंगामा करने का है। इसके पीछे राजनीतिक मकसद साफ नजर आता है।  दरअसल, यह गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश को शर्मिंदा करने की कोशिश है। इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी दिल्ली में मौजूद हैं और वे गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भी हैं। जेएनयू के लिए ऐसे विवाद कोई नए नहीं हैं। यह वामपंथी छात्रों का गढ़ रहा है। यहां मोदी का विरोध होना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं जेएनेयू में तो दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी एक्शन लेना पड़ा था। कई दिनों के लिए कैम्पस को बंद कर दिया गया था।

जब मनमोहन सिंह प्रधामंत्री थे तो उनके खिलाफ भी जेएनयू में नारे लगे थे और प्रदर्शन हुआ था। इतना ही नहीं पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरे का आयोजन भी किया गया था। जेएनयू कैंपस वो जगह है जहां नक्सलवादियों के हमले में शहीद हुए CRPF के जवानों की मौत पर जश्न मनाया गया था। 

यहां अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर जुटे छात्रों ने 'भारत तेरे टुकड़े होंगे..इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह' जैसे देश-विरोधी नारे लगाए थे। इसलिए यहां अगर गुजरात दंगों को लेकर पीएम मोदी पर बनी BBC डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की कोशिश की जाती है तो यह किसी के लिए अचरज की बात नहीं होनी चाहिए।

उधर, सीपीआई (एम) के शासन वाली केरल के अलग-अलग जिलों और यूनिवर्सिटी कैम्पस में वामपंथी स्टूडेंट यूनियन के लोग खुलकर इस डॉक्यूमेंट्री को दिखा रहे हैं। बुधवार को बड़े पैमाने पर इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई। हालांकि, बीजेपी के लोग अपनी तरफ से इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रोकने की कोशिश कर रहे हैं। बुधवार को तिरुवंतपुरम के पूजापोरा इलाके में DYFI कार्यकर्ताओं ने एक कॉलेज कैंपस में इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की। BJP कार्यकर्ता जब इसका विरोध करने पहुंचे तो पुलिस ने कैम्पस के बाहर बैरिकेड लगाकर उन्हें रोक दिया। BJP कार्यकर्ताओं ने जब कैम्पस के अंदर दाखिल होने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। 

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा-' ये डॉक्यूमेंट्री उस देश की संस्था ने बनाई है जिसने हम पर 200 साल राज किया। जिन लोगों ने ये कहा कि भारत के लोग लोकतंत्र के लायक नहीं हैं और अगर अंग्रेज यहां से चले गए तो भारत के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। अब वो देख रहे हैं कि भारत ना सिर्फ एकजुट, आज़ाद और लोकतांत्रिक है बल्कि भारत को अब दुनिया के नेता के तौर पर देखा जा रहा है। इसी वजह से वो हताश हैं और भारत के खिलाफ प्रचार किया जा रहा है।' 

आरिफ मोहम्मद खान ने कहा-'मैं तो भारत के उन लोगों के बारे में सोचकर हैरान हूं जो इस ओपिनियन को इतनी अहमियत दे रहे हैं। विदेशी लोगों की डॉक्यूमेंट्री को ज्यादा अहमियत दी जा रही है.. और ये वो लोग हैं जिन्होंने भारत को उपनिवेश बनाकर रखा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ज्यादा अहमियत विदेशियों की ओपनियिन को दी जा रही है। मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे को ज्यादा तूल देने की जरूरत है।'

बुधवार को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ए. के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के ही कार्यकर्ताओं ने इस डॉक्यूमेंट्री का विरोध करने की वजह से अनिल एंटनी को गालियां दी थीं। अनिल एंटनी ने इस डॉक्यूमेंट्री को ‘भारत की संप्रभुता का उल्लंघन’ करार दिया था। उन्होंने मंगलवार को ट्वीट किया था कि कांग्रेस जिस तरह एक BBC को भारत की सर्वोच्च संस्थाओं की राय से भी ज्यादा अहमियत दे रही है, वह गलत है। उन्होंने ‘नफरत से भरी फोन कॉल्स और गालियों’ का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस ने अनिल एंटनी को अपना ट्वीट डिलीट करने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

इस्तीफा देने के बाद अनिल एंटनी ने कहा, ‘मैं कई मुद्दों पर बीजेपी का विरोध करता हूं। मैंने अब तक बीजेपी का विरोध किया है, लेकिन बात जब देशहित की हो, संप्रभुता की हो, देश की सुरक्षा की हो, स्ट्रैटजिक इंट्रेस्ट की हो, तब मुझे लगता है कि हमें ऐसे लोगों के हाथों नहीं खेलना चाहिए जिससे आने वाले समय में हमें नुकसान हो। यही वजह है कि मैंने BBC की डॉक्यूमेंट्री को लेकर ये कहा कि इसके पीछे एजेंडा हो सकता है, इसलिए हमें (कांग्रेस) इसे लेकर थोड़ा सतर्क रहने की जरूरत है।’

अनिल एंटनी के पिता एके एंटनी करीब छह दशक से कांग्रेस में हैं। वे केरल के मुख्यमंत्री रहे, देश के रक्षा मंत्री रहे और नेहरू-गांधी परिवार के वफादार भी हैं। ऐसे में अगर उनके बेटे को कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ा है तो पार्टी को इस पर सोचना चाहिए। लेकिन कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा है। राहुल गांधी तो खुलकर BBC की डॉक्यूमेंट्री को सपोर्ट कर रहे हैं। राहुल गांधी का कहना है कि सरकार चाहे जितने बैन लगा ले लेकिन सच सामने आ ही जाता है। बुधवार को उन्होंने कहा-टअगर आप हमारे शास्त्रों, भगवत गीता और उपनिषद पढ़ेंगे तो उनमें लिखा है, सच्चाई छिपाई नहीं जा सकती। सच्चाई हमेशा सामने आ जाती है। आप बैन कर सकते हैं, संस्थाओं को कंट्रोल कर सकते हैं, CBI, ED का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन सच तो सच होता है। सच्चाई चमकती है, सच की आदत होती है किसी भी तरह सामने आने की।'

सवाल सिर्फ नरेंद्र मोदी का नहीं है। देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का भी है। देश के आत्मसम्मान का भी है। दंगे आज से 20 साल पहले हुए थ। डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले BBC के लोग देश से बाहर के हैं। यह मामला निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सुना जा चुका है। जो लोग इस डॉक्यूमेंट्री में फीचर हुए हैं, उनके विचार भी अदालत के फैसले के बाद बदल चुके हैं।

ज़माना बदल गया, मामला खत्म हो गया, लेकिन जो लोग सच देखना नहीं चाहते, सच सुनना नहीं चाहते, सुप्रीम कोर्ट की बात मानना नहीं चाहते, उनका कोई कुछ नहीं कर सकता। जो लोग मोदी को अब तक चुनाव में हरा नहीं पाए, उन्हें बदनाम करके खुश हो लेते हैं।

BBC की इस डॉक्यूमेंट्री की पब्लिक स्क्रीनिंग कराने की कोशिश के पीछे वही लोग हैं जो CAA के प्रोटेस्ट के पीछे थे। ये वही लोग हैं जो किसान आंदोलन को हवा देने में लगे थे। इनका अपना एक इकोसिस्टम है, जिसकी गूंज JNU से लेकर पश्चिम बंगाल के जादवपुर यूनिवर्सिटी तक सुनाई देती है। बाहर के मुल्कों में भी इन्हें सपोर्ट करने वाले बहुत लोग हैं।

इस पूरे विवाद की टाइमिंग पर ध्यान देना जरूरी है। भारत को G-20 की अध्यक्षता मिली है। गणतंत्र दिवेस का मौका है। गणतंत्र दिवस की परेड में मिस्र के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि हैं। इसलिए इस तरह की डॉक्यूमेंट्री के नाम पर प्रोटस्ट और हंगामे की योजना बनाई गई। यह तो सिर्फ शुरुआत है। पिक्चर अभी बाकी है। (रजत शर्मा )

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 25 जनवरी, 2023 का पूरा एपिसोड

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