भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए टिकटों का बंटवारा शुरू कर दिया है। समिति ने 172 सीटों पर उम्मीदवारों के नामों पर मुहर लगा दी है, लेकिन मकर संक्रांति के कारण इसका ऐलान नहीं किया गया। जिन लोगों के नाम फाइनल हैं, उनमें मथुरा से मंत्री श्रीकांत शर्मा, नोएडा से पंकज सिंह, सरधना से संगीत सोम और मुजफ्फरनगर से सुरेश राणा शामिल हैं। समाजवादी पार्टी और जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल ने गुरुवार की शाम को अपने 29 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी। इस बीच, बीजेपी के 2 और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। पिछले 3 दिनों में बीजेपी के 3 मंत्री और 10 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं। इन सभी को समाजवादी पार्टी की ओर से टिकट का आश्वासन दिया गया है।
बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह को अतरौली से, सुनील बराला को मेरठ शहर से, सोमेंद्र तोमर को मेरठ दक्षिणी से, दिनेश खटीक को हस्तिनापुर से, सत्यवीर त्यागी को किठौर से, अमित अग्रवाल को मेरठ कैंट से, मृगांका सिंह को कैराना से और तेजेंद्र सिंह को शामली से मैदान में उतारा है।
बीजेपी ने अभी तक जिन उम्मीदवारों का टिकट फाइनल किया है उनमें 11 जाट, 5 गुर्जर और 9 ठाकुर हैं। इसके अलावा पार्टी की लिस्ट में 7 ब्राह्मण और 4 वैश्य समुदाय के उम्मीदवार हैं। निषाद और त्यागी समुदाय के भी एक-एक प्रत्याशी को टिकट दिया गया है। पार्टी ने जाटव समाज के 5 और वाल्मीकि समुदाय के 2 उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।
समाजवादी पार्टी ने जिन 29 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें से 19 सीटें राष्ट्रीय लोकदल को दी हैं। ये सारी सीटें पश्चिमी यूपी के 11 जिलों की हैं जहां पहले चरण में मतदान होना है। सपा गठबंधन के 29 उम्मीदवारों में से 9 मुस्लिम हैं। इनमें कैराना से समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक नाहिद हसन का नाम भी शामिल हैं। बीजेपी से सपा में आए अवतार सिंह भड़ाना को भी टिकट दिया गया है। RLD ने हापुड़ से गजराज सिंह को टिकट दिया है, जो गुरुवार को इस्तीफा देने के बाद जयंत चौधरी की पार्टी में शामिल हो गए थे।
अखिलेश यादव की रणनीति साफ है। वह अपनी लिस्ट में सभी प्रमुख जातियों और समुदायों को शामिल करके एंटी-बीजेपी वोटों के बंटवारे को रोकना चाहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले इलेक्शन में राष्ट्रीय लोकदल का खाता भी नहीं खुला था, इसके बावजूद अखिलेश यादव ने जिन 29 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें से 19 सीटें RLD को दी हैं। ऐसा करने के पीछे एक ही मकसद है और वह है जाट और मुस्लिम वोटबैंक को मजबूत करना। पिछले चुनावों में जाटों का एकमुश्त वोट बीजेपी को मिला था, लेकिन इस बार किसान आंदोलन की वजह से हालात बदले हुए नजर आ रहे हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अखिलेश यादव ने जाट उम्मीदवारों को टिकट देकर राष्ट्रीय लोकदल में जान फूंकने की कोशिश की है। अखिलेश यादव इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को तोड़ने के 'मिशन' पर हैं। समाजवादी पार्टी के नेता टिकट देकर बीजेपी के ज्यादा से ज्यादा नेताओं को अपने खेमे में लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल होने वाले 3 मंत्रियों और 10 विधायकों में से ज्यादातर पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि एक विधायक ब्राह्मण है और एक दलित।
दूसरी ओर, बीजेपी ने अन्य पिछड़े वर्गों को बड़े पैमाने पर लामबंद करके इसका जवाब दिया है। बीजेपी ने निषाद समुदाय के नेता संजय निषाद के साथ सीट बंटवारे के सौदे को अंतिम रूप दे दिया है। संजय ने अपने समुदाय के लिए 18 सीटों की मांग की थी, लेकिन बीजेपी उन्हें 10 से 12 सीटें देने पर राजी हुई है, जबकि बाकी सीटों पर निषाद उम्मीदवार बीजेपी के चुनाव चिह्न पर ताल ठोक सकते हैं।
बीजेपी के साथ इस समय सबसे बड़े फायदे की बात यह है कि योगी आदित्यनाथ का सभी जातियों के लोगों के साथ जुड़ाव है। वह सबके लिए काम करने वाली शख्सियत के रूप में उभरे हैं। मोदी और योगी की जोड़ी जातिगत समीकरणों और व्यक्तिगत उम्मीदवारों से ज्यादा मायने रखती है। (रजत शर्मा)
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