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Rajat Sharma’s Blog | जोशीमठ आपदा : ये आरोप-प्रत्यारोप वाली राजनीति का वक्त नहीं है

फिलहाल लोगों को जोशीमठ से सुरक्षित बाहर निकालना ही एकमात्र उपाय है। हालांकि लोग आसानी से अपना घर-बार छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वे विरोध कर रहे हैं। उनकी भावनाएं समझी जा सकती हैं क्योंकि जहां पीढ़ियों से रह रहे हैं।

Written By: Rajat Sharma
Published : Jan 10, 2023 19:40 IST, Updated : Jan 11, 2023 6:13 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

उत्तराखंड के जोशीमठ में एनडीआरएफ की एक और एसडीआरएफ की 8 टीमों ने मंगलवार को मोर्चा संभाल लिया। शहर की असुरक्षित घोषित की जा चुकी 678 इमारतों को गिराने की कार्य योजना पर काम शुरू हो गया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें इस संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने  और इस पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले पर 16 जनवरी को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि हालात से निपटने के लिए लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई संस्थाएं हैं और वे इस मामले पर गौर करेंगी, इसलिए तत्काल सुनवाई की जरूरत नहीं है। यह याचिका स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दाखिल की थी।

सबसे पहले जोशीमठ में दो होटल माउंट व्यू और मलारी को स्थानीय प्रशासन द्वारा ढहा दिया जाएगा। दोनों इमारतें एक-दूसरे पर इस तरह से झुकी हुई हैं कि आसपास के करीब एक दर्जन घरों पर खतरा पैदा हो गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दोनों इमारतों को जल्द ही मैकेनिकल तरीके से हटाया जाएगा । ये इमारतें काफी धंस चुकी हैं। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट, रूड़की की एक टीम ने दोनों इमारतों का सर्वे किया ताकि इन्हें इस तरह से गिराया जाए कि जानमाल का कोई नुकसान न हो। 

जोशीमठ में जहां एक ओर घरों, सड़कों और अन्य इमारतों में दरारें बढ़ती जा रही हैं वहीं अधिकारियों ने असुरक्षित घोषित किए जा चुके घरों पर 'लाल X निशान' लगाना शुरू कर दिया है। जिन घरों पर लाल निशान लगा होगा उन्हें ढहा दिया जाएगा। 81 से ज्यादा पीड़ित परिवारों ने अपना घर खाली कर दिया है और राज्य सरकार ने उन्हें अस्थायी शिविर में रखा है।

हर पहलू पर विचार-विमर्श के बाद राज्य सरकार ने आखिरकार यह फैसला किया कि लोगों की जान बचाने का एकमात्र उपाय है कि खतरे वाले इलाकों में रहनेवाले तमाम लोगों के घर खाली कराए जाएं। जोशीमठ के चार वार्डों से लोगों को घर खाली करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहत उपायों पर लगातार नजर रखे हुए हैं। जोशीमठ नगर के पास  1,191 लोगों के रहने के लिए 213 कमरों के इंतजाम किए गए हैं। वहीं पीपलकोटी में 2,205 लोगों के रहने के लिए 491 कमरों के इंतजाम किए गए हैं। खाद्य पदार्थों के 63 किट के अलावा 53 कंबल भी पीड़ितों को दिए गए हैं।

इस बीच लोगों का गुस्सा भी फूट पड़ा। छावनी बाजार में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। लोगों का कहना था कि रहने के लिए आवास की उचित व्यवस्था किए बिना लोगों को घरों से नहीं निकाला जाना चाहिए। खतरनाक इमारतों को गिराने का काम पूरा होने के बाद जोशीमठ के करीब 30 हजार लोग बेघर हो जाएंगे। इस शहर के धंसने के सही कारणों का पता लगाने के लिए दिल्ली से आई एक टीम पहले ही इलाके का सर्वे कर चुकी है।

सोमवार को सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट (CBRI) की टीम ने शहर का दौरा किया और उन इमारतों की पड़ताल की जिनमें बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं। बेघर हो चुकी महिलाएं, पुरुष, नौजवान, बच्चे और बजुर्ग भीगी आंखों से अपने घरों को देख रहे हैं, जो कुछ दिन में उजड़ने वाले हैं। जोशीमठ की सभी दुकानों और व्यवसायिक संपत्तियों का पूरा ब्योरा न होने से प्रशासन के सामने बड़ी समस्या आ रही है। एक बार जब इन संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया जाएगा तो फिर मुआवजे का आकलन करने के लिए संपत्तियों के रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेजों की जरूरत होगी। वहीं मौजूदा संकट के बीच बर्फबारी और बारिश का खतरा भी मंडरा रहा है।

जोशीमठ को प्रसिद्ध चार धाम तीर्थ का प्रवेश द्वार माना जाता है। स्वाभाविक रूप से, हिंदू संत और मठों के मालिक चिंतित हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि जोशीमठ के नाम से एक नया शहर बसाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने पनबिजली परियोजना और ऑल वेदर रोड के चल रहे सभी कामों को तत्काल रोकने की मांग की।

जोशीमठ बड़ा पर्यटन स्थल है और उससे भी ज्यादा धार्मिक आस्था का केन्द्र है। रामायण में जिस द्रोण पर्वत से संजीवनी बूटी लाने का जिक्र है वह द्रोण पर्वत जोशीमठ में ही है। चार धामों की स्थापना करने वाले आदि शंकाराचार्य ने जोशीमठ में ही तपस्या की थी। उन्होंने यहां एक मठ भी स्थापित किया था। जोशीमठ में ही नरसिंह का मंदिर है। सर्दियों में जब बद्रीनाथ धाम बंद हो जाता है तो भगवान बद्री विशाल को यहीं लाया जाता है। इस वक्त बद्री विशाल जोशीमठ में ही निवास कर रहे हैं इसलिए लोग भगवान बद्रीविशाल से प्रार्थना कर रहे हैं। 

हालांकि, जो हालात हैं उनमें फिलहाल लोगों को जोशीमठ से सुरक्षित बाहर निकालना ही एकमात्र उपाय है। हालांकि लोग आसानी से अपना घर-बार छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वे विरोध कर रहे हैं। उनकी भावनाएं समझी जा सकती हैं क्योंकि जहां पीढ़ियों से रह रहे हों, जो घर जिंदगी की जमा पूंजी लगाकर बनाया हो, उसे छोड़कर सरकारी छत के नीचे रहने को मजबूर होना पड़े तो कोई भी विरोध करेगा। लेकिन जोशीमठ के लोग भी खतरे को देख रहे हैं, समझ रहे हैं, इसलिए वे मान जाएंगे। 

जहां तक सियासत का सवाल है तो ये वक्त आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का नहीं हैं। क्योंकि अगर इस वक्त इस तरह की बातें होंगी तो फिर पुरानी बातें भी सामने आएंगी। जोशीमठ में पहली बार दरारें 1970 में दिखी थीं। उसके बाद 1976 में वी. सी. मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट भी आई थी। लेकिन उस रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए मैंने कहा कि फिलहाल आरोप-प्रत्यारोप का वक्त नहीं है। इस वक्त सभी राजनीतिक दलों और सिविल सोसायटी को मिलकर जोशीमठ के लोगों की मदद के लिए कोशिश करनी चाहिए। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 09 जनवरी, 2023 का पूरा एपिसोड

 

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