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Rajat Sharma’s Blog : अखिलेश-जयंत गठबंधन को लेकर पश्चिमी यूपी में असमंजस !

आमतौर पर नेता और कार्यकर्ता तब तक आपस में लड़ते हैं जब तक टिकट फाइनल नहीं हो जाता लेकिन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होने के बाद बगावत होना अच्छे संकेत नहीं हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : January 21, 2022 16:53 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं। पश्चिमी यूपी में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच सीटों को लेकर हुए समझौते पर भी मुश्किलों के बादल मंडरा रहे हैं। दरअसल,अखिलेश यादव ने जिन सीटों के लिए राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) से समझौता किया था और जिन सीटों पर आरएलडी के लोगों को टिकट दिए, उनमें से कई उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत हो गई है। स्थानीय जाट नेता समाजवादी पार्टी द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारने का विरोध कर रहे हैं। आरएलडी सुप्रीमो जयंत चौधरी के लिए इन उम्मीदवारों को संभालना मुश्किल हो गया है। वहीं एक अन्य घटनाक्रम में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। उधर, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के एक और करीबी रिश्तेदार ने गुरुवार बीजेपी का दामन थाम लिया।

 
सबसे पहले आपको मथुरा की मांट विधानसभा सीट का हाल बताता हूं। सपा और आरएलडी के बीच मतभेदों का जीता-जागता उदाहरण इस सीट पर देखा जा सकता है। यहां समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन का एक उम्मदीवार पहले ही आरएलडी के चुनाव निशान पर पर्चा भर चुका है। अब इसी सीट पर समाजवादी पार्टी के टिकट पर दूसरे उम्मीदवार ने भी नामांकन कर दिया है। इस सीट पर सपा प्रत्याशी संजय लाठर और आरएलडी प्रत्याशी योगेश नौहवार ने पर्चा दाखिल किया है। यह कंफ्यूजन इसलिए हुआ क्योंकि पहले यह सीट आरएलडी को देने का फैसला हुआ था। इसलिए जयंत चौधरी ने योगेश नौहवार को चुनाव निशान एलॉट कर नामांकन दाखिल करने को कहा और योगेश नौहवार ने पर्चा भर दिया। लेकिन बाद में अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी से बात की और यह सीट समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को देने को कहा। अखिलेश की बात जयंत चौधरी मान गए और मांट सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार संजय लाठर ने पर्चा भर दिया।
 
संजय लाठर कह रहे हैं कि उन्हें पूरा भरोसा है कि योगेश नौहवार मान जाएंगे। लेकिन नौहवार अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि वे तभी इस सीट से अपना नामांकन वापस लेंगे जब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी खुद यहां से चुनाव लड़ेंगे। नौहवार का कहना है कि वे केवल 432 वोटों के मामूली अंतर से पिछला चुनाव हारे थे और इस बार इस सीट को नहीं बचा सके तो इसे दुर्भाग्य समझेंगे। योगेश नौहवार अगर किसी दबाव में जयंत चौधरी की बात मानते हुए पर्चा वापस ले लेते हैं तब भी वे  समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के लिए उतनी मेहनत तो नहीं करेंगे जिसकी उम्मीद जयंत चौधरी और अखिलेश यादव को होगी। अब इन दोनों में से जो उम्मीदवार भी मैदान से हटेगा वह दूसरे को जिताने के लिए जमीन पर काम तो नहीं करेगा। ऐसी मुश्किल कई सीटों पर है।
 
मेरठ की सिवालखास विधानसभा सीट को लेकर सपा और आरएलडी के अंदर तीन दिन से जंग छिड़ी हुई है। समाजवादी पार्टी के साथ हुए समझौते के तहत यह सीट आरएलडी को मिली है। लेकिन जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के नेता गुलाम मोहम्मद को आरएलडी का चुनाव चिन्ह दे दिया है। यानि चुनाव निशान राष्ट्रीय लोकदल का लेकिन उम्मीदवार समाजवादी पार्टी का। इस बात से आरएलडी के नेता नाराज हैं।
 
सिवालखास से समाजवादी पार्टी के नेता गुलाम मोहम्मद पिछला चुनाव हार गए थे। सीटों के बंटवारे के तहत अखिलेश यादव ने यह सीट आरएलडी को दे दी। आरएलडी के नेता चाहते थे कि किसी जाट नेता को मैदान में उतारा जाए और राजकुमार सांगवान को टिकट दिया जाए। लेकिन सिवालखास सीट आरएलडी को देने पर गुलाम मोहम्मद ने विरोध कर दिया। तब रास्ता यह निकाला गया कि गुलाम मोहम्मद आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ लें। लेकिन अब आरएलडी में बगावत हो गई। राजकुमार सांगवान के समर्थकों ने जगह-जगह हंगामा शुरू कर दिया। सिवालखास विधानसभा क्षेत्र में कई जगह समाजवादी पार्टी और आरएलडी के कार्यकर्ताओं में भिड़ंत हुई है। आरएलडी के समर्थक गुलाम मोहम्मद के समर्थकों को प्रचार से रोक रहे हैं, गांवों में घुसने नहीं दे रहे हैं।
 
गुलाम मोहम्मद को टिकट देने पर आरएलडी में इस हद तक नाराजगी है कि कई जगह पार्टी सुप्रीमो जयंत चौधरी के खिलाफ नारेबाजी की गई। आरएलडी के झंडे और बैनर तक जलाए गए। उधर, गुलाम मोहम्मद ने कहा कि कोई विरोध नहीं हैं, राजकुमार सांगवान से उनकी बात हो गई है और वो मान गए हैं। हालांकि गुलाम मोहम्मद को टिकट देने से जाटों की उपेक्षा का मैसेज निचले स्तर तक गया है। जाट समर्थकों के बीच यह संदेश गया है कि उनके दावों की अनदेखी की गई है।
 
उधर, गौतमबुद्धनगर जिले की जेवर विधानसभा सीट पर गुर्जर नेता अवतार सिंह भड़ाना ने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि वे कोरोना से पीड़ित होने के चलते चुनाव मैदान से बाहर हो रहे हैं। भड़ाना बीजेपी छोड़कर आरएलडी में शामिल हुए थे। उन्होंने तीन दिन पहले पर्चा भी दाखिल कर दिया था। भड़ाना के इस ऐलान के बाद पार्टी की ओर से एडवोकेट इंद्रवीर भाटी को मैदान में उतारने का फैसला किया गया लेकिन देर रात भड़ाना ने ट्वीट किया कि उनकी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आई है, वह आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे।  सूत्रों के कहना है कि भड़ाना ने अपने विधानसभा क्षेत्र में एक सर्वे कराया था और उसमें यह पाया कि बीजेपी बड़े अंतर से चुनाव जीतने जा रही है। इस वजह से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था लेकिन देर रात उन्होंने अपना मन बदल लिया।
 
उधर, बागपत के पास छपरौली विधानसभा सीट से आरएलडी ने पूर्व विधायक वीरपाल राठी को उम्मीदवार बनाया था जिसका जबरदस्त विरोध हुआ। नाराज लोग दिल्ली में चौधरी जयंत सिंह के घर पहुंच गए और उम्मीदवार बदलने की मांग करने लगे। लोगों ने जयंत चौधरी से यहां तक कह दिया कि अगर छपरौली से उम्मीदवार नहीं बदला गया तो जाट पंचायत बुलाई जाएगी और नए उम्मीदवार को निर्दलीय लड़ाया जाएगा। लोगों के विरोध के बाद जयंत चौधरी ने छपरौली से वीरपाल राठी को हटाकर अजय कुमार को उम्मीदवार बनाया है।
 
आमतौर पर नेता और कार्यकर्ता तब तक आपस में लड़ते हैं जब तक टिकट फाइनल नहीं हो जाता लेकिन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होने के बाद बगावत होना अच्छे संकेत नहीं हैं। इसके दो मतलब हो सकते हैं, पहली बात यह हो सकती है कि पार्टी के बड़े नेताओं अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने तो हाथ मिला लिया लेकिन निचले स्तर पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के दिल नहीं मिल पाए। दूसरी बात यह हो सकती है कि उम्मीदवारों का चयन करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि उनके खिलाफ अपने ही लोग आवाज उठा सकते हैं।
 
अगर पहले फेज से ऐसा माहौल बना तो अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पश्चिमी यूपी में पहले चरण के चुनाव में सपा का सिर्फ आरएलडी के साथ गठबंधन है। लेकिन यूपी के बाकी इलाकों में तो बहुत सारी छोटी-छोटी पार्टियां हैं। सबकी अपनी-अपनी मांग है। इन पार्टियों के नेता काफी मुखर हैं। वे अपनी पार्टी के लिए और अपनी जाति के लिए खुलकर लड़ते हैं। अगर उन सबकी बात मान ली गई तो अखिलेश की अपनी पार्टी के लिए सीटें कम पड़ जाएंगी और अपनी पार्टी के नेता नाराज हो जाएंगे। 
 
भारतीय राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि गठबंधन बनाना आसान होता है लेकिन चलाना बहुत मुश्किल। इसी तरह से परिवार के नाम पर राजनीति करना आसान होता है लेकिन पूरे परिवार को साथ लेकर चलना मुश्किल होता है। अखिलेश की लीडरशिप में मुलायम सिंह यादव का परिवार टुकड़ों में बिखर रहा है।
 
गुरुवार को मुलायम सिंह यादव के नजदीकी रिश्तेदार प्रमोद गुप्ता ने भी समाजवादी पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। गुप्ता औरैया जिले की बिधूना सीट से सपा के विधायक रह चुके हैं। वे मुलायम सिंह की पत्नी साधना गुप्ता के जीजा लगते हैं। पांच साल पहले विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। जिसके बाद प्रमोद गुप्ता अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। अब जबकि अखिलेश के चाचा सपा गठबंधन में शामिल हो गए तब प्रमोद गुप्ता को बिधूना सीट से टिकट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन बिधूना से बीजेपी विधायक विनय शाक्य और उनके भाई के सपा में शामिल होने के बाद समीकरण पूरी तरह से बदल गए। लिहाजा, टिकट न मिल पाने पर गुप्ता बीजेपी में शामिल हो गए और उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश 'वन मैन शो' चला रहे हैं और अपने पिता की भी नहीं सुन रहे हैं। गुप्ता ने आरोप लगाया कि अखिलेश अपने परिवार के एक-एक रिश्तेदार को दरकिनार कर रहे हैं।
 
अखिलेश ने गुरुवार को कहा कि वे अपने परिवार में 'वंशवादी राजनीति को खत्म' करने के लिए बीजेपी के आभारी है। यह बात गौर करनेवाली है कि जब मंत्री और नेता बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहेथे तो अखिलेश खुशी से माला पहनाकर उनका स्वागत कर रहे थे।  ठीक उसी उत्साह से बीजेपी के नेता भी मुलायम सिंह परिवार से बीजेपी में आनेवाले लोगों को भगवा पट्टे पहनाकर स्वागत कर रहे हैं।
 
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अखिलेश मुलायम सिंह के अपने इलाके में दबदबे का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं। गुरुवार को समाजवादी पार्टी की ओर से यह ऐलान किया गया कि अखिलेश मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। मैनपुरी से ही मुलायम सिंह लोकसभा के सांसद हैं। मुलायम सिंह की प्रारंभिक शिक्षा करहल में ही हुई थी। उन्होंने जैन इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी की और उसी कॉलेज में लेक्चरर बने थे।
 
मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत मैनपुरी से ही की थी। उन्होंने मैनपुरी, आजमगढ़ और इटावा में कड़ी मेहनत की और अपना जनाधार बनाया। उन्होंने लगातार इन इलाकों के गांवों की यात्रा की और समाजवादी पार्टी की स्थापना की। इस इलाके में मुलायम सिंह के प्रभाव की बड़ी वजह यह भी है कि यहां यादव और मुसलमान एकजुट हैं, और दोनों के बीच सह-अस्तित्व की भावना है। इलाके के यादव और मुसलमान मुलायम सिंह और उनके परिवार का काफी सम्मान करते हैं। करहल से चुनाव लड़ना राजनीतिक तौर पर अखिलेश यादव के लिए प्लस प्वाइंट है। वहीं समाजवादी पार्टी के इस फैसले पर बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक ने कहा कि हार के डर से अखिलेश ने अपने पिता के चुनाव क्षेत्र की सुरक्षित सीट चुनी है।
 
बीजेपी के नेता चाहे जो भी कहें लेकिन वर्ष 2002 को छोड़कर कई दशकों से करहल की सीट समाजवादी पार्टी के लिए एक सुरक्षित सीट रही है। 2002 में इस सीट से जीत हासिल करनेवाले बीजेपी उम्मीदवार भी बाद में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर की तरह मैनपुरी को भी समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी की चार में से तीन विधानसभा सीटें जीती थी। इस बीच गुरुवार को भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद 'रावण' ने भी ऐलान कर दिया कि वह गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। चुनाव का नतीजा क्या होगा, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 20 जनवरी, 2022 का पूरा एपिसोड

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