अयोध्या में बन रहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य और दिव्य मंदिर में विराजने वाली रामलला की तीन मूर्तियां बनकर तैयार हैं। 29 दिसम्बर को उन तीनों में से एक मूर्ति का चयन होगा जिसे मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। मंदिर का गर्भगृह बनकर तैयार है। पांचों मंडप बन गए हैं। पहली मंज़िल का काम तक़रीबन पूरा हो गया है। गर्भगृह की दीवारों पर नक्काशी और मूर्तियां बनाने का काम खत्म हो गया है। अब रामलला के सिंहासन और गर्भगृह के दरवाजों पर सोने की परत चढ़ाने का काम हो रहा है। अयोध्या में अब आसमान से ही राम मंदिर दिखने लगा है। चूंकि मंदिर का काम प्रथम तल तक तकरीबन पूरा हो गया है, इसलिए मंदिर आकार लेने लगा है, परकोटा बन गया है। ग्राउंड फ्लोर पर सीढियों से लेकर गर्भगृह तक काम पूरा हो गया है। सत्तर एकड़ में फैले मंदिर परिसर में निर्माण का काम सिर्फ इक्कीस एकड़ में हो रहा है। बाकी जगह को पूरी तरह हराभरा रखा गया है। इसमें भी रामलला का मंदिर सिर्फ 2.7 एकड़ में होगा। 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न होने के बाद भक्त राम मंदिर में दक्षिण द्वार से प्रवेश कर पाएंगे। मंदिर परिसर में पहुंचते ही 32 सीढियां होंगी। इन सीढ़ियों से होकर भक्त गर्भगृह की तरफ बढ़ेंगे। सीढियों के ऊपर तीन द्वार है - सिंह द्वार, गज द्वार और हनुमान द्वार। इन दरवाजों के जरिए भक्त भूतल पर मौजूद बरामदे में पहुंचेंगे। यहां पांच मंडप हैं - नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप। इन मंडपों में भक्तों के बैठने का इंतजाम है। मंडपों की दीवारों पर शानदार नक़्क़ाशी की गई है, खंभों पर देवी देवताओं और वैदिक परपंराओं के प्रतीकों को उकेरा गया है। पांच मंडपों को पार करके भक्त गर्भगृह तक पहुंचेंगे, जहां रामलला का विग्रह विराजेगा।
मंदिर का गर्भगृह 20 फीट लंबा और 20 फीट चौड़ा बनाया जा रहा है, इसकी ऊंचाई 161 फीट है। गर्भ गृह को सफेद मकराना संगमरमर से इतना मज़बूत बनाया गया है कि अगले एक हज़ार साल तक उसको खरोंच तक नहीं आएगी। राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने बताया कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने से पहले अयोध्या में एक छोटा राम मंदिर बनाने का ही प्लान था लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में रामलला की जीत हुई, तो मंदिर के मूल डिजाइन में बदलाव किया गया। दिक़्क़त ये थी कि मंदिर बनाने का बहुत सा काम पिछले 10 साल में हो चुका था। पिलर्स तैयार थे। उन पर नक़्क़ाशी की गई थी, मंदिर निर्माण समिति ने तय किया कि तैयार हो चुके पत्थरों का इस्तेमाल भी इस नए मंदिर में किया जाएगा। इनमें से कई पिलर्स ऐसे हैं जिन पर नक़्क़ाशी का काम पंद्रह वर्ष पहले ही हो चुका था। इस वक्त जिस अस्थायी स्थान पर रामलला की मूर्ति की पूजा हो रही है, उसे गर्भगृह में ही स्थापित किया जाएगा, उसकी पूजा अर्चना उसी नियम से होगी, जैसे अभी होती है लेकिन चूंकि यह विग्रह छोटा है, भक्तों को दूर से दर्शन करने में दिक्कत होगी इसलिए अब रामलला की 51 इंच ऊंची मूर्ति गर्भगृह में स्थापित की जाएगी, जिसकी प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को करेंगे। रामलला का ये विग्रह 5 वर्ष के बालक का होगा। वाल्मीकि रामायण में प्रभु राम के बाल स्वरूप का जो वर्णन बालकांड में है, उसी के अनुरूप विग्रह तैयार किया गया है। अभी रामलला की तीन मूर्तियां बनाई गई हैं, दो काले पत्थर की और एक सफेद पत्थर की। अब इन तीन मूर्तियों में से किसकी स्थापना होगी, इसका चुनाव ट्रस्ट की कमेटी करेगी। उम्मीद ये है कि जनवरी के पहले हफ्ते में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट इसका ऐलान कर देगा कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए किस मूर्ति का चयन किया गया है। तीनों ही मूर्तियां भगवान के बाल स्वरूप की होंगी। 17 जनवरी को भगवान राम की मूर्ति अयोध्या के नगर भ्रमण के लिए निकलेगी। तब पहली बार भक्त भगवान राम के इस स्वरूप के दर्शन कर सकेंगे।
रामलला की 51 इंच की मूर्ति जिस सिंहासन पर विराजमान होगी, वह तीन फीट ऊंचा और आठ फीट चौड़ा होगा। इससे गर्भगृह के बाहर खड़े भक्तों को रामलला के चरणों से लेकर माथे तक पूरे स्वरूप का दर्शन आसानी से हो सकेगा। मूर्ति का वास्तु इस तरह का है कि हर साल रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें रामलला के मस्तिष्क का अभिषेक करेंगी। रामलला का सिंहासन सोने से मढ़ा जाएगा। फिलहाल करीब 140 वर्गफीट वाले इस सिंहासन पर तांबे के तारों की कसाई हो रही है। इसके बाद तांबे के तारों के ऊपर सोने की परत चढ़ाई जाएगी। रामलला की तीन मूर्तियों में से एक की स्थापना होगी जबकि दूसरे दो विग्रह मंदिर में रहेंगे। एक चल विग्रह होगा जो समय समय पर त्योहारों और पर्वों के मौकों भक्तों के दर्शन के लिए बाहर रखी जाएंगी या नगर में निकलेंगी। बड़ी बात ये है कि रामलला का मंदिर दो हजार वर्ष पुरानी पंचायतन परंपरा के अनुसार हो रहा है, यानि एक ही जगह पर पांच देवी देवताओं की पूजा का स्थान। गर्भगृह के चारों ओर, चार कोनों पर सूर्य, शिव, देवी भगवती और गणपति के चार मंदिर और बने हैं। मंदिर में कुल 118 दरवाज़े होंगे। ये सारे दरवाजे तेलंगाना के सिकंदराबाद में बन रहे हैं, जो एक निजी टिंबर कंपनी बना रही है। सारे दरवाजे महाराष्ट्र से लाई गई सागौन की लकड़ी से बने हैं। इसी कंपनी ने यदाद्रि मंदिर के दरवाज़े बनाए थे। मंदिर के दरवाज़े बनाने के काम में तमिलनाडु के सौ से ज्यादा कारीगर लगे हैं। सारे दरवाज़े पुरानी तकनीक से बनाए जा रहे हैं, इनमें कोई नट-बोल्ट नहीं लगाए जा रहे हैं, ताकि ये हजार साल से ज्यादा तक मजबूत रहें। 118 दरवाजे चार अलग डिजाइनों में बने हैं। मंदिर में प्रवेश के तीन द्वार हैं। इसके अलावा गर्भ गृह का अलग दरवाज़ा है। गर्भ गृह के दरवाजे की ऊंचाई 8 फीट है और चौड़ाई 12 फीट है। ये विशाल द्वार पांच इंच मोटा होगा। गर्भगृह के दरवाजे को भी सोने से मढ़ा जाएगा। भारत में मंदिरों के निर्माण की 16 अलग शैलियां रही हैं, जिनमे तीन प्रमुख हैं, नागर, द्रविड और पगोडा। राम का मंदिर नागर शैली में बन रहा है लेकिन इसमें दक्षिण भारतीय और बेसर शैली की ख़ूबियों को भी शामिल किया गया है।
मंदिर में परकोटा भी बनाया गया है जबकि आम तौर पर उत्तर भारत के मंदिरों में परकोटे नहीं होते। मंदिर के चारों तरफ़ जो परकोटा होगा, उसमें भी छह मंदिर बनाए जा रहे हैं। ये मंदिर, सूर्य भगवान, शंकर भगवान, माता भगवती, विनायक, हनुमान जी और माता अन्नपूर्णा के होंगे। ये सारे मंदिर परकोटे में ही बनाए जाएंगे जो भारत के मंदिर निर्माण की पंचायतन परंपरा का हिस्सा होंगे। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि मंदिर के परकोटे के बाहर भी सात और मंदिरों का निर्माण होगा। मंदिर प्रांगण में जटायु की मूर्ति भी स्थापित की गई है। मंदिर के हरेक खंभे और हर दीवार पर नक़्क़ाशी की जा रही है। चूंकि प्राण प्रतिष्ठा में अब 25 दिन बाकी है, इसलिए काम में तेजी लाई गई है। इस वक्त चार हजार मजदूर दिन रात तीन शिफ्ट में चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। नृपेंद्र मिश्र ने बताय़ा कि मंदिर बनाने का काम आसान नहीं था। जब सरकार ने ट्रस्ट का गठन किया और मंदिर निर्माण के लिए पहली मीटिंग हुई, तो पता चला कि जिस जगह पर मंदिर बनना है, वो ज़मीन सख़्त नहीं है। आज जहां मंदिर बन रहा है, पहले वहां सरयू नदी बहा करती थी। ऐेसे में मंदिर की नींव मजबूत नहीं होती। रामलला का यह मंदिर जब पूरी तरह बन कर तैयार हो जाएगा तो ये दुनिया का सबसे खूबसूरत, भव्य और दिव्य मंदिर होगा। यह पूरी दुनिया के रामभक्तों की आस्था का केन्द्र होगा, भक्ति और शक्ति का प्रतीक होगा, सनातन की अनंत और अमिट परंपराओं का वाहक होगा। तमाम देशों से लोग अपनी श्रद्धा के हिसाब से उपहार भेज रहे हैं। कंबोडिया, श्रीलंका, मॉरीशस, सूरीनाम से लेकर नेपाल और भूटान से रामलला के लिए उपहार भेजे जा रहे हैं।
नेपाल में जनकपुर के लोग खुद को माता सीता का परिवार मानते हैं। जनकपुर से रामलला की मूर्ति को स्नान कराने के लिए तीस पवित्र नदियों का जल, वस्त्र, आभूषण और मेवा उपहार स्वरूप भेजे गए हैं। जनकपुर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन दीपोत्सव मनाया जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा के यज्ञ के लिए जोधपुर से देसी घी भेजा गया है, हल्दी कंबोडिया से आई है। पुणे की महिलाएं रामलला को पहनाने के लिए सोने के धागों से कढ़ाई किये गये वस्त्र भेज रही हैं। मुझे याद है जब 1992 में कार सेवा शुरू हुई थी, उस वक्त देशभर में घर-घर से राम शिलाएं अयोध्या के लिए निकली थीं। वैसा ही सहयोग अब फिर दिखने लगा है। लेकिन उस वक्त के माहौल और आज के वातावरण में अंतर है। उस वक्त आंदोलन की शुरूआत थी, अनिश्चितता थी, माहौल में गर्मी थी, विद्वेष का भाव था, लोगों में भक्ति के साथ साथ गुस्सा था लेकिन आज आंदोलन की परिणति की वेला है, एक नई शुरूआत की घड़ी है। अब कोई अनिश्चितता नहीं है, कोई विद्वेष नहीं है। अब सिर्फ भक्ति है, शान्ति है, सद्भाव है, ये बड़ा फर्क है। उस वक्त भी लोग भक्ति रस में डूबे थे। आज भी भक्ति में भाव विभोर हैं। उस वक्त भी गांव-गांव से, घर-घर से रामशिलाएं आ रही थी। आज भी घर-घर से राममंदिर के लिए सहयोग और समर्पण का भाव है, उपहार आ रहे हैं। दक्षिण में राम मंदिर के दरवाजे बन रहे हैं, गुजरात के शिल्पकार है, उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक के मूर्तिकार और मजदूर हैं। पूरे देश के लोगों का दान है। मुस्लिम भाइयों ने भी मंदिर के लिए दिल खोलकर दान दिया है। ये प्रभु राम की सार्वभौमिकता का प्रमाण है। अयोध्या में बन रहा राम मंदिर देश की एकता का प्रतीक है। इसलिए प्राण प्रतिष्ठा के इस समारोह को उसी भावना से लेना चाहिए। लेकिन दुख की बात है कि कुछ नेता, कुछ पार्टियों इस मौके पर भी राजनीति कर रही है। कांग्रेस के नेताओं को रामभक्ति में डूबे लोग पसंद नहीं आ रहे हैं।
कांग्रेस के नेता सैम पित्रोदा ने कहा कि राम मंदिर से देश का भला नहीं होगा, इससे आधुनिक भारत को कुछ नहीं मिलेगा, मंदिर बनने से महंगाई, बेरोजगारी या प्रदूषण खत्म नहीं हो जाएगा। इतनी भूमिका बांधने के बाद सैम का असली दर्द सामने आया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मंदिर मंदिर क्यों घूमते रहते हैं, प्रधानमंत्री सारा काम छोड़कर धर्म के काम में लगे रहते हैं, ये सही नहीं है। सैम पित्रोदा ने देश के लोगों से कहा कि अब ये तय करने का वक्त आ गया है कि राम मंदिर चाहिए या रोजगार। सैम पित्रोदा एक जमाने में राजीव गांधी के बहुत करीबी हुआ करते थे। आज कल राहुल गांधी के करीबी हैं, उनके सलाहकार हैं, इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। राहुल के सारे विदेशी दौरे सैम ही करवाते हैं। असल में सैम की समस्या राम मंदिर से नहीं है। उनकी समस्या है कि राम मंदिर की निर्माण का श्रेय नरेंद्र मोदी को मिल रहा है। सैम पित्रौदा भूल गए कि जब राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया था तो उन्हें भी इसका श्रेय मिला था। अब मोदी के प्रयास से अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर मिल रहा है, तो मोदी को चुनाव में फायदा तो होगा। पर सैम पित्रोदा से कोई ये पूछे कि अगर मंदिर में जाने से तरक्की रुकती है, अगर नेताओं का मंदिर जाना गुनाह है, तो चुनाव से पहले राहुल गांधी जनेऊ पहनकर मंदिर-मंदिर क्यों जाते हैं? असल में सैम पित्रोदा ने कांग्रेस के लिए पहली बार मुश्किल खड़ी नहीं की है। ये वही सैम पित्रोदा हैं जिन्होंने 1984 के सिख विरोधी दगों के बारे में पूछे जाने पर कहा था कि “हुआ सो हुआ”, इसके बाद कांग्रेस मुश्किल में फंसी। सैम को माफी मांगनी पड़ी। फिर पुलावामा में हमला हुआ, भारत ने बालाकोट पर एयर स्ट्राइक की, तो सैम ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई ठीक नहीं, पुलवामा आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं। सैम पित्रोदा ने 26/11 के मुंबई हमले में भी पाकिस्तान को क्लीन चिट दे दी थी। और अब सैम राम मंदिर पर सवाल उठा रहे हैं, रामभक्ति को गुनाह बता रहे हैं। मुझे लगता है कि ये सैम पित्रोदा की नासमझी है, नादानी है। न वो इस देश को जानते हैं, न इस देश के मिज़ाज को जानते हैं, न इस देश की भक्ति की शक्ति को पहचानते हैं। इसीलिए उन्होंने प्रभु राम के बारे में, राम मंदिर के बारे में ऐसी बात कही। सैम के बयान पर कांग्रेस की खामोशी भी हैरान करने वाली है और ये खामोशी कांग्रेस को मंहगी पड़ सकती है। (रजत शर्मा)
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