कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार सोमवार शाम को खत्म होने के साथ राजनीतिक पंडित नतीजों के आकलन में जुट गए हैं। दो हफ्ते पहले जब प्रचार अभियान शुरू हुआ तो विशेषज्ञों ने जो एक आकलन किया था उसके मुताबिक कांग्रेस शुरुआत में आगे चलती नजर आ रही थी। कांग्रेस ने बीजेपी की बोम्मई सरकार पर 40 प्रतिशत कमीशन का मुद्दा सफलतापूर्वक चिपका दिया था। ऐसे में बीजेपी बचाव की मुद्रा में दिखी। बीजेपी के भी कुछ नेता ऐसे थे जो इस तरह का आरोप लगा रहे थे। बीजेपी को दूसरा धक्का तब लगा जब उसने नई पीढ़ी को मौका देने की कोशिश की और पुराने लोगों के टिकट काटे। ऐसे में जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी जैसे पुराने और अनुभवी नेता बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। हवा कांग्रेस के पक्ष में बनने लगी थी। लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने एक के बाद एक, कई गलतियां की। चुनाव घोषणापत्र में पीएफआई और बजरंग दल को एक जैसा बता दिया और मुस्लिम आरक्षण को बहाल करने का वादा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को पकड़ लिया। उन्होंने चुनावी सभाओं में बजरंग बली का जयघोष किया और पासा पलट दिया। तीन दिन तक तो कांग्रेस इसी की सफाई देने के चक्कर में पड़ी रही। इसके बाद कांग्रेस ने एक और गलती की। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हुबली में अपनी जनसभा में कर्नाटक की 'संप्रभुता' की रक्षा करने की बात कही। अमित शाह ने इसे मुद्दा बना दिया और फिर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी। दो हफ्ते पहले तक कांग्रेस आक्रामक थी और बीजेपी बचाव की मुद्रा में थी लेकिन आज स्थिति उलटी है। अब कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में है। शुरुआत में कांग्रेस आगे दिखाई दे रही थी लेकिन पूरे कर्नाटक में नरेंद्र मोदी के तूफानी प्रचार के बाद बीजेपी अब कांग्रेस की बराबरी पर आ गई है। जिस चुनाव में टक्कर जितनी कांटे की होती है, जहां हार जीत के अंतर कम होने के आसार होते हैं, वहां किसी के लिए भी यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है कि सरकार किसकी बनेगी। ऐसे कांटे के टक्कर वाले चुनाव में ज्यादातर ओपिनियल पोल भी गलत साबित हो जाते हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 10 मई को होगी और नतीजे 13 मई को आएंगे।
'द केरल स्टोरी' : प्रतिबंध जायज नहीं
आतंकवाद से जुड़े लव जिहाद पर बनी विवादित फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि तमिलनाडु में थिएटर मालिकों ने फिल्म दिखाने से मना कर दिया है। दूसरी ओर, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकारों ने फिल्म को 'टैक्स फ्री' कर दिया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ इस फिल्म को देखने की योजना भी बनाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में अपनी एक चुनावी रैली में फिल्म की तारीफ करते हुए कहा कि यह 'आतंकवादी साजिशों पर आधारित है और केरल में आतंकवादी साजिशों को उजागर करती है'। इस फिल्म का निर्माण विपुल अमृतलाल शाह ने और निर्देशन सुदीप्तो सेन ने किया है। 'द केरल स्टोरी' उन हिन्दू लड़कियों की कहानी पर आधारित है जिन्हें बहला-फुसलाकर पहले इस्लाम कबूल करवाया गया फिर उनका निकाह मुस्लिम नौजवान से कराया और फिर उन्हें आतंकवादी संगठन ISIS में भर्ती करा दिया गया।
बंगाल तो रचानत्मकता, कला और संस्कृति प्रदेश है। इसलिए वहां फिल्म पर पाबंदी की खबर से आश्चर्य हुआ। क्या ममता बनर्जी को वाकई में लगता है कि थियेटर में लोग फिल्म देख लेंगे तो कानून और व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी या फिर उन्होंने इस फिल्म पर इसलिए प्रतिबंध लगाया क्योंकि कर्नाटक के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ' द केरल स्टोरी' का जिक्र किया और इसे मुद्दा बनाया? फिल्म के विषय पर विवाद हो सकता है, फिल्म की कहानी पर विरोध हो सकता है, लेकिन फिल्म पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। जरूरी नहीं है कि 100 फीसदी लोग फिल्म के विरोध में हों और 100 फीसदी लोग फिल्म के पक्ष में हों। जिसे देखना है देखे, जिसे नहीं देखना है वो न देखे, लेकिन राज्य सरकारों का काम सियासी नफा- नुकसान के हिसाब से अपना फैसला जनता पर थोपना नहीं होता।
जो लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि फिल्म में जो दावे किए गए वो गलत हैं। लव जिहाद के कुछ ही मामले हुए, कुछ ही लड़कियों को सीरिया भेजा गया लेकिन ऐसा दिखाया जा रहा है कि हजारों लड़कियों को सीरिया भेज दिया गया। मेरा कहना है कि एक लड़की को भेजा गया हो या एक हजार लड़कियों को, लड़कियों की संख्या से मामले की गंभीरता कम नहीं होती। दूसरी बात कोई फिल्म ये दावा नहीं करती कि वो पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है। फिल्म एक विषय पर बनती है, तथ्यों पर नहीं। लव जिहाद जमीनी हकीकत है। इस पर किसी प्रोड्यूसर ने फिल्म बनाई तो गलत क्या है? चूंकि बीजेपी के नेता फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए 'द केरल स्टोरी' का विरोध किया जा रहा है। फिल्म पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। जो लोग यह इल्जाम लगा रहे हैं कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी है और 'द केरल स्टोरी' के जरिए मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश हो रही है इसलिए बीजेपी इस फिल्म को प्रमोट कर रही है। ऐसे नेताओं को यूपी के मुसलमानों की बात सुननी चाहिए। क्योंकि यूपी के मुसलमानों ने कहा कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी फिल्म आई और कौन सी फिल्म गई। किसने फिल्म का समर्थन किया और किसने विरोध किया। वो सिर्फ सरकार के काम देखते हैं। बीजेपी ने यूपी शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में बिजनौर, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, कानपुर, वाराणसी और लखनऊ में 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इनमें से करीब 90 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं। इन मुस्लिम उम्मीदवारों ने योगी और बीजेपी के बारे में जो कहा उससे मैं हैरान रह गया। योगी आदित्यनाथ अपनी सभी रैलियों में मतदाताओं से कहते रहे हैं कि कल्याणकारी उपायों का लाभ सभी वर्गों तक पहुंच रहा है।
क्या वसुंधरा ने गहलोत सरकार को बचाया?
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने धौलपुर में एक जनसभा में दावा किया कि 2020 में जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों के एक गुट ने विद्रोह कर दिया था तब बीजेपी नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने उनकी सरकार बचाई थी। गहलोत ने आरोप लगाया कि उस वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने हमारे विधायकों को 10 से 20 करोड़ बांटा। गहलोत ने कहा कि वह पैसा अमित शाह को वापस लौटा देना चाहिए। सीएम गहलोत ने कहा कि उस वक्त वसुंधरा राजे सिंधिया और कैलाश मेघवाल ने कहा था हमारी कभी परंपरा नहीं रही है कि चुनी हुई सरकार को हम पैसे के बल पर गिराएं। इन्होंने सरकार गिराने वालों का साथ नहीं दिया जिस कारण हमारी सरकार बची रही। उधर, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि गहलोत जो राग अलाप रहे हैं उसका कोई सबूत हो तो दिखाएं। अगर उनको पता है कि पैसे दिए गए हैं और भ्रष्टाचार हुआ है तो उसकी शिकायत दर्ज कराएं। उन्होंने मामले की सीबीआई से जांच कराने की चुनौती दी।
वसुन्धरा राजे ने कहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2023 में होने वाली हार से डरकर होकर झूठ बोल रहे हैं। राजे ने कहा कि रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध हैं,यदि उनके विधायकों ने पैसा लिया है तो एफआईआर दर्ज करवाएं। वसुंधरा राजे ने ने कहा कि विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त की जहां तक बात है तो इसके महारथी तो स्वयं अशोक गहलोत हैं जिन्होंने 2008 और 2018 में अल्पमत में होने के कारण ऐसा किया था। उस वक्त न भाजपा को बहुमत मिला था और न ही कांग्रेस को। उस समय चाहते तो हम भी सरकार बना सकते थे पर यह भाजपा के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ था। इसके विपरीत गहलोत ने अपने लेन-देन के माध्यम से विधायकों की व्यवस्था कर दोनों समय सरकार बनाई थी।
गहलोत ने जो बयान दिया उसके पीछे की राजनीति समझने की कोशिश करनी चाहिए। सार्वजनिक तौर पर उन्होंने अमित शाह का नाम लिया लेकिन जिस शख्स को वह निशाना बना रहे थे वह कोई और नहीं बल्कि सचिन पायलट थे। यह 'कहीं पे निगाहे, कहीं पे निशाना' वाला मामला है। गहलोत ने अमित शाह के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने के लिए एक सार्वजनिक मंच का सहारा लिया लेकिन उनकी यह चाल शायद ही काम आए। उधर, मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत पर तंज कसते हुए कहा कि 'अशोक गहलोत की नेता वसुंधरा राजे हैं, सोनिया गांधी नहीं'। आनेवाले दिनों में राजस्थान कांग्रेस का घमासान और गहराने के आसार हैं। (रजत शर्मा)
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