Highlights
- 'लगभग 70 प्रतिशत किसान पराली जलाना बंद कर चुके' - स्थानीय किसान
- 'अवशेषों को पास की एक फैक्टरी को बेच देते हैं' - स्थानीय किसान
- पराली जलने से वायु प्रदूषण के स्तर में होती है खतरनाक वृद्धि
Punjab: पंजाब के कुछ किसानों ने फसलों के अवशेषों का स्थायी तरीके से समाधान करना शुरू कर दिया है चाहे वह प्राकृतिक उवर्रक के तौर पर इसका इस्तेमाल करके हो या ईंधन उत्पादन के लिए इसे बेचकर। आम तौर पर फसलों के अवशेष जला दिए जाते हैं जो वायु प्रदूषण का सबब बनता है। किसान अब पराली में आग लगाने की बजाय इसे प्राकृतिक उर्वरक के रूप में उपयोग कर रहे हैं या ईंधन बनाने के लिए बेच रहे हैं।
प्रदेश के किसानों ने न केवल फसल अवशेषों को मिट्टी में मिला कर उर्वरकों की खपत को कम किया है, बल्कि अन्य उत्पादकों की पराली का प्रबंधन करके इससे पैसा कमाना भी शुरू किया किया है। मोहाली जिले के आखिरी गांव बदरपुर में अपनी लगभग 30 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले भूपिंदर सिंह (59) 2018 से धान की पराली नहीं जला रहे हैं। बजाय इसके वह ‘एमबी हल’ नामक जुताई के एक उपकरण का उपयोग करके इसे मिट्टी में मिला रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद ज़मीन अगली फसल यानी गेहूं बोने के लिए तैयार हो जाती है।’’ उनका कहना है कि मिट्टी में मिलाने के एक सप्ताह के भीतर फसलों के अवशेष खुद-ब-खुद अपघटित होने लग जाते हैं। सिंह ने कहा, ‘‘मिट्टी में पराली के मिल जाने के साथ उर्वरक की खपत कम हो गई है। पहले, हम गेहूं की फसल बोने से पूर्व पोटाश का उपयोग करते थे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘किसान पराली नहीं जलाना चाहते हैं।’’
'लगभग 70 प्रतिशत किसान पराली जलाना बंद कर चुके'
भूपिंदर सिंह के गांव में लगभग 70 प्रतिशत किसान पराली जलाना बंद कर चुके हैं। सिंह को फसल अवशेष के बेहतर प्रबंधन के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। बदरपुर में उत्पादकों ने एक ‘किसान क्लब’ की स्थापना की है जहां से वह किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपकरण मुहैया करवाते हैं। भूपिंदर ने कहा, ‘‘हमारे पास एमबी हल, मल्चर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल ड्रिल जैसी मशीनें हैं, जो आसपास के गांवों के अन्य किसानों को किराए पर दी जाती हैं। हालांकि, इन मशीनों के इस्तेमाल के लिए छोटे किसानों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।’’
'अवशेषों को पास की एक फैक्टरी को बेच देते हैं'
शहीद भगत सिंह नगर जिले के गांव बुर्ज तहल दास के अमरजीत सिंह (48) भी पिछले 15 वर्ष से पराली नहीं जला रहे हैं। वह दूसरों को भी उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मोहाली के थेरी गांव में लगभग 100 एकड़ ज़मीन पर खेती करने वाले अमरजीत सिंह का कहना है कि वह फसल अवशेषों को पास की एक फैक्टरी को बेच देते हैं जो इसे ईंधन में बदलने का काम करती है। वह कुछ अन्य किसानों को पर्यावरण को प्रदूषित करने से रोकने के लिए ‘हैप्पी सीडर’, ‘सुपर सीडर’, हल, ‘मल्चर’ जैसी मशीनें देते हैं। सिंह, तीन अन्य किसानों के साथ, पुआल के प्रबंधन के लिए ‘बेलर’ का उपयोग कर रहे हैं। अवतार सिंह प्रदेश के चार जिलों - फतेहगढ़ साहिब, मोहाली, रूपनगर और मोगा में किसानों के खेतों से पराली इकट्ठा करते हैं। सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों का इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जाता है। इसके बाद इसे डेरा बस्सी में एक धागा बनाने की फैक्टरी और फिरोजपुर में एक बिजली उत्पादक कंपनी को बेच दिया जाता है।
पराली जलने से वायु प्रदूषण के स्तर में होती है खतरनाक वृद्धि
उन्होंने कहा, ‘‘अब हम बिचौलियों के बजाय कंपनियों को सीधे फसल अवशेष बेचने की कोशिश कर रहे हैं। इससे हमें और पैसा मिलेगा।’’ राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में अक्टूबर और नवंबर में वायु प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि के पीछे पंजाब और हरियाणा में धान की पराली जलाना एक प्रमुख कारण है।