Punjab Farmers: पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने पर दिल्ली में प्रदूषण की चिंताओं के बीच अब किसान फसलों का सही और स्थाई तरीके से निपटान के बारे में विकल्प तलाशने लगे हैं। दरअसल, किसान हर साल पराली जलाते हैं तो देश की राजधानी में पर्यावरण बुरी तरह प्रदूषित हो जाता है। इस पर कई बार किसानों को स्पष्ट दिशा निर्देश भी दिए जा चुके हैं। इसी बीच अब किसान पराली जलाने के विकल्प तलाशने लगे हैं ताकि प्रदूषण की नौबत न आ पाए। जानिए क्या है पूरा मामला।
पंजाब के कुछ किसानों ने फसलों के अवशेषों का स्थायी तरीके से निपटान करना शुरू कर दिया है चाहे वह प्राकृतिक उवर्रक के तौर पर इसका इस्तेमाल करके हो या ईंधन उत्पादन के लिए इसे बेचकर। आमतौर पर फसलों के अवशेष जला दिए जाते हैं जो वायु प्रदूषण का सबब बनता है। किसान अब पराली में आग लगाने की बजाय इसे प्राकृतिक उर्वरक के रूप में उपयोग कर रहे हैं या ईंधन बनाने के लिए बेच रहे हैं। प्रदेश के किसानों ने न केवल फसल अवशेषों को मिट्टी में मिला कर उर्वरकों की खपत को कम किया है, बल्कि अन्य उत्पादकों की पराली का प्रबंधन करके इससे पैसा कमाना भी शुरू किया किया है।
‘एमबी हल’ बना किसानों के लिए फायदेमंद
मोहाली जिले के आखिरी गांव बदरपुर में अपनी लगभग 30 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले भूपिंदर सिंह (59) 2018 से धान की पराली नहीं जला रहे हैं। बजाय इसके वह ‘एमबी हल’ नामक जुताई के एक उपकरण का उपयोग करके इसे मिट्टी में मिला रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘इसके बाद ज़मीन अगली फसल यानी गेहूं बोने के लिए तैयार हो जाती है।’ उनका कहना है कि मिट्टी में मिलाने के एक सप्ताह के भीतर फसलों के अवशेष खुद-ब-खुद अपघटित होने लग जाते हैं। सिंह ने कहा, ‘मिट्टी में पराली के मिल जाने के साथ उर्वरक की खपत कम हो गई है। पहले, हम गेहूं की फसल बोने से पूर्व पोटाश का उपयोग करते थे।’ उन्होंने कहा, ‘‘किसान पराली नहीं जलाना चाहते हैं।’
'किसान क्लब' में मुहैया कराए जा रहे फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपकरण
भूपिंदर सिंह के गांव में लगभग 70 प्रतिशत किसान पराली जलाना बंद कर चुके हैं। सिंह को फसल अवशेष के बेहतर प्रबंधन के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। बदरपुर में उत्पादकों ने एक ‘किसान क्लब’ की स्थापना की है जहां से वह किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपकरण मुहैया करवाते हैं। भूपिंदर ने कहा, ‘हमारे पास एमबी हल, मल्चर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल ड्रिल जैसी मशीनें हैं, जो आसपास के गांवों के अन्य किसानों को किराए पर दी जाती हैं। हालांकि, इन मशीनों के इस्तेमाल के लिए छोटे किसानों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।’
फैक्टरी को बेच देते हैं फसल के अवशेष
शहीद भगत सिंह नगर जिले के गांव बुर्ज तहल दास के अमरजीत सिंह (48) भी पिछले 15 वर्ष से पराली नहीं जला रहे हैं। वह दूसरों को भी उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मोहाली के थेरी गांव में लगभग 100 एकड़ ज़मीन पर खेती करने वाले अमरजीत सिंह का कहना है कि वह फसल अवशेषों को पास की एक फैक्टरी को बेच देते हैं जो इसे ईंधन में बदलने का काम करती है। वह कुछ अन्य किसानों को पर्यावरण को प्रदूषित करने से रोकने के लिए ‘हैप्पी सीडर’, ‘सुपर सीडर’, हल, ‘मल्चर’ जैसी मशीनें देते हैं।