Highlights
- साझा विपक्ष के उम्मीदवार हैं यशवंत सिन्हा
- द्रोपदी मुर्मू हैं NDA की उम्मीदवार
- भाजपा के पूर्व सदस्य रहे हैं यशवंत सिन्हा
President Election: राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने आज अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। नामांकन कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिका अर्जुन खडगे, एनसीपी के प्रमुख शरद पवार, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी और नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारुख अब्दुल्ला समेत कई विपक्षी दलों के नेता मौजूद रहे। लेकिन इस नामांकन कार्यक्रम में शिवसेना की तरफ से कोई भी नेता मौजूद नहीं रहा। वहीं इससे पहले NDA की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू ने भी शुक्रवार 24 जून को अपना नामांकन दाखिल किया था। उनके नामांकन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत NDA के घटक दलों के कई नेता मौजूद रहे थे।
बतौर आईएएस शुरू किया था कैरियर
आपको बता दें कि यशवंत सिन्हा ने अपने कैरियर की शुरुआत आईएएस से की थी। सिन्हा 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्त्वपूर्ण पदों पर असीन रहते हुए सेवा में 24 से अधिक वर्ष बिताए। 4 वर्षों तक उन्होंने सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के रूप में सेवा की। बिहार सरकार के वित्त मंत्रालय में 2 वर्षों तक अवर सचिव तथा उप सचिव रहने के बाद उन्होंने भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में उप सचिव के रूप में कार्य किया।
1984 से आये सक्रिय राजनीति में
यशवंत सिन्हा ने 1984 में प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में राजनीति में आ गए। 1986 में उनको पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में वे राज्यसभा पहुंचे। 1989 में जनता दल के गठन होने के बाद उनको पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने चन्द्रशेखर की सरकार में नवंबर 1990 से जून 1991 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
1996 में बीजेपी में शामिल हुए
जून 1996 में वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। मार्च 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। जिसपर वह साल 2002 तक रहे। इसके बाद उन्हें जुलाई 2002 में विदेश मंत्री बना दिया गया। विदेश मंत्रालय का कार्यभार उन्होंने मई 2004 तक रहा। 2004 के लोकसभा चुनावों में वे हजारीबाग से चुनाव हार गए। इसके बाद अटल सरकार के जाने के बाद वो संगठन में आ गए और उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। लेकिन साल 2009 उन्होंने भाजपा छोड़ दी और सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली। लेकिन साल 2021 में वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने सक्रिय राजनीति में फिर से वापसी की।