Friday, November 22, 2024
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PM Narendra Modi govt 8 years: '13वीं सदी से चल रही थी ट्रिपल तलाक की कुप्रथा, पीएम मोदी ने समाज सुधारक बनकर इसे रोका', जानें आरिफ मोहम्मद खान ने और क्या कहा

PM Narendra Modi govt 8 years: ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर आरिफ खान ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा, 'एक राजनेता के माध्यम से वो काम हुआ है, जो पहले समाज सुधारक करते थे।'

Written by: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Updated on: May 30, 2022 13:23 IST
 Arif Mohammad Khan in IndiaTV Samvaad 2022- India TV Hindi
 Arif Mohammad Khan in IndiaTV Samvaad 2022

Highlights

  • इंडिया टीवी संवाद कार्यक्रम में आरिफ मोहम्मद खान ने तीन तलाक पर अपनी बात रखी
  • कहा- भारत में 13वीं सदी से ये कुप्रथा जारी थी, इसके खत्म होने से परिवार बच गए
  • कहा- एक राजनेता के माध्यम से वो काम हुआ, जो पहले समाज सुधारक करते थे

PM Narendra Modi govt 8 years: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने India TV Samvaad महासम्मेलन के मंच पर ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, 'भारत में 13वीं सदी से ये कुप्रथा जारी थी जबकि सारे मुस्लिम देशों ने इसे खत्म कर दिया था। इस कुप्रथा के भारत में खत्म होने से 90 फीसदी तलाक की दरों में कमी हुई है। इससे परिवार और बच्चे बच गए हैं।'

आरिफ खान ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा, 'एक राजनेता के माध्यम से वो काम हुआ है, जो पहले समाज सुधारक करते थे।' उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक को अवैध बनाना एक ऐतिहासिक फैसला है। हमने आखिरकार कुछ ऐसा करना बंद किया है, जो 13वीं सदी से महिलाओं को सता रहा था।'

आर्टिकल 370 पर आरिफ ने कही ये बात

आरिफ मोहम्मद खान ने कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने पर भी बयान दिया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में धारा 370 अपने मूल रूप में मौजूद नहीं थी, लेकिन केवल धारा 370 की उपस्थिति, आतंकवाद को बढ़ावा देने और प्रचारित करने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन अब इसे हटा दिया गया है। इस मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझा लिया गया है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, था और रहेगा। 

उन्होंने कहा कि आप लोगों तक तथ्य पहुंचा सकते हैं, लेकिन आप उन्हें समझदारी नहीं सिखा सकते। जो लोग समझना ही नहीं चाहते उनको आप क्या करेंगे? हर किसी की एक ही सोच नहीं है। 1986 में भी शाहबानो केस को लेकर 322 से ज्यादा लोगों ने साइन करके तत्कालीन प्रधानमंत्री को दिए थे और उसमें पहला दस्तखत था बदरुद्दीन तैयब का। उसमें आईएएस, आईपीएस और 200 से ज्यादा प्रोफेसर्स थे कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने की कोशिश न करे।

बहुमत पर हुए फैसले 'रूल ऑफ लॉ' के खिलाफ

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में धर्म का अधिकार, व्यक्ति का अधिकार है न कि किसी समूह का। ऐसा क्यों नहीं है? क्योंकि यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है। अगर सरकार किसी के विचार को स्वीकृति देकर उसके आधार पर कानून बनाएगी, तो दूसरे के अधिकारों का हनन हो जाएगा। अगर बहुमत के ही आधार पर फैसले होने हैं, और बहुमत यदि होगा तो ही सही है, तो यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत 'रूल ऑफ लॉ' के खिलाफ जाएगा।

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