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Places of Worship Act: मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी मस्जिद को हटाने की मांग पर कोर्ट में लगी है याचिका, जानिए क्या है कहता है पूजास्थल कानून?

मथुरा की एक अदालत में श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है। जानिए places of worship act क्या है?

Edited by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: May 12, 2022 14:14 IST
Places of Worship Act- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Places of Worship Act

Places of Worship Act: मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। अब 19 मई को अदालत अपना फैसला सुनाएगी। दरअसल, मथुरा की एक अदालत में श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है। ऐसे मामलों में हमेशा एक खास एक्ट का जिक्र आया है, वो है places of worship act का। आखिर क्या है यह कानून, जो धार्मिक जगहों को लेकर बनाया गया। साथ ही जानिए इस कानून के बारे में एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

कानून के बारे में सुप्रीम कोर्ट के वकील व 'अयोध्याज राम टैम्पिल इन कोर्ट्स' के लेखक की क्या है राय?

  • इस कानून की संक्षेप में व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील और 'अयोध्याज राम टैम्पिल इन कोर्ट्स' पुस्तक के लेखक विराग गुप्ता ने इंडिया टीवी को बताया कि धार्मिक स्थानों की स्थिति 15 अगस्त 1947 के अनुसार सुनिश्तित करने के लिए संसद ने सन् 1991 में कानून बनाया था। उसमें अयोध्या के रामजन्मभूमि मन्दिर को शामिल नहीं किया था, जिसकी वजह से बाबरी मस्जिद विवाद का अंत हो सका। 
  • कानून की धारा 3 के अनुसार कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्थानों में बदलाव नहीं कर सकता। कानून की धारा-4 (3) (बी) के अनुसार धार्मिक स्थानों के बारे में चल रहे सभी वाद, अपील और विधिक कार्यवाहियों का अदालतों या न्यायाधिकरणों से इस कानून के अनुसार फैसला होगा। 
  • कानून की धारा-6 के अनुसार जो भी व्यक्ति धारा-3 का उल्लघंन करे उसे 3 साल की सजा या  जुर्माना हो सकता है। मथुरा या अन्य धार्मिक स्थानों पर चल रहे विवादों का अन्त करने के लिए अदालती आदेश के पहले संसद के कानून में बदलाव जरूरी है।

इस कानून में तीन साल की सजा का प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के अनुसार प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अगर कोई भी इस कानून का उल्लघंन करता है तो उसे तीन साल की सजा निर्धारित की गई है। कानून की धारा 4 (3) के अनुसार कोई भी वाद अपील या अन्य विधिक कार्यवाही इस कानून के अनुसार निर्धारित होगी और इस कानून के उल्लंघन करने पर सेक्शन 6 के अनुसार 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। 

अयोध्या से मथुरा कोर्ट तक इस कानून की गूंज

places of worship act का जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि विवाद का फैसला सुनाते वक्त भी किया था। पांच जजों की बेंच ने 1045 पेजों के फैसले में इसके बारे में कहा था कि यह भारत के सेक्यूलर चरित्र को मजबूत करता है। 30 सितंबर 2020 को को मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान से सटी ईदगाह को हटाने के केस को खारिज करते हुए सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट ने भी इस कानून का जिक्र किया था। कोर्ट का कहना था कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत सभी धर्मस्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली रखी जानी है। इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामले को अपवाद रखा गया था।

क्यों बनाना पड़ा यह कानून?

इस कानून के पीछे बड़े विवादों से बचने की एक मंशा थी। बात 1991 की है, जब बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद अपनी ऊंचाई पर था। विश्व हिंदू परिषद और दूसरे हिंदू धार्मिक संगठनों का कहना था कि सिर्फ रामजन्मभूमि ही नहीं, 2 और धार्मिक स्थलों से मस्जिदों को हटाने का काम किया जाएगा। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह। हालांकि कुछ हिंदू संगठन लगातार यह बात भी कहते रहते थे कि देशभर में ऐसी जितनी भी जगहें हैं, सबको मस्जिदों से आजाद कराया जाएगा।

ऐसे माहौल में केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव की सरकार हरकत में आई। सितंबर 1991 में एक खास कानून लाया गया। इसमें हर धार्मिक स्थल को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में ही बनाए रखने की व्यवस्था की गई। इस कानून से अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद को इसलिए भी अलग रखा गया, क्योंकि यह केस लंबे वक्त से कोर्ट में था और दोनों ही पक्षों से बातचीत करके मसले का हल निकालने की भी कोशिशें हो रही थीं।

बिल पास करते वक्त क्या-क्या कहा गया?

उस समय की नरसिम्हा राव सरकार ने इस कानून को बनाने की पीछे मंशा धार्मिक सद्भाव बरकरार रखना और सेक्युलर स्वभाव को जिंदा रखना बताया। तत्कालीन गृह मंत्री एस.बी चाव्हाण ने लोकसभा में 10 सितंबर 1991 को अपने वक्तव्य में कहा था कि हम इस बिल को देश में प्यार, भाईचारे और सद्भाव की महान परंपरा को आगे बढ़ाने वाले एक कदम की तरह देखते हैं। कांग्रेस ने 1991 के चुनाव घोषणापत्र में भी ऐसा कानून बनाने की बात कही थी। उस वक्त संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इस बिल का जिक्र आया था।

भाजपा ने किया था इस कानून का कड़ा विरोध

उस वक्त भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी और उसने इस कानून का काफी विरोध किया था। उसके अनुसार, यह राज्यों के अधिकार में दखलंदाजी का मामला था। तब केंद्र सरकार ने अपनी खास ताकतों के इस्तेमाल करने की बात कह दी थी।

 

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