Highlights
- उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में है पाताल भुवनेश्वर
- रहस्यमयी दुनिया को समेटे हुए है पाताल भुवनेश्वर
Patal Bhuvneshwar: धरती पर एक जगह ऐसी भी है जहां एक ही स्थान पर पूरी सृष्टि के दर्शन होते हैं। सृष्टि की रचना से लेकर कलयुग का अंत कब और कैसे होगा इसका पूरा वर्णन यहां पर है। ये एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर चारों धामों के दर्शन एकसाथ होते हैं। शिवजी की जटाओं से अविरल बहती गंगा की धारा यहां नजर आती है तो अमृतकुंड के दर्शन भी यहां पर होते हैं। ऐरावत हाथी भी आपको यहां दिखाई देगा तो स्वर्ग का मार्ग भी यहां से शुरु होता है।
सजीव की तरह लगती हैं निर्जीव आकृतियां
सुना या पढ़ा तो आपने भी जरूर होगा कि इस पृथ्वी को शेषनाग ने अपने फन पर उठा रखा है लेकिन वो शेषनाग है कहां ? इसके जवाब में इसका उत्तर समुद्र सुनने को मिलता है। लेकिन यहां आपको शेषनाग के दर्शन भी होते हैं और यहां पर शेषनाग अपने फन पर पृथ्वी को धारण किए दिखाई देता है। ये सब सुनने में किसी कहानी की तरह लगे लेकिन धर्म में अगर आपकी जरा सी भी आस्था है तो इस स्थान पर पहुंचने के बाद आप इन चीजों पर यकीन करने से खुद को चाहकर भी नहीं रोक सकते। इस स्थान पर ऊपर वर्णित आकृतियां भले ही निर्जीव हो लेकिन वास्तव में ये इतनी सजीव लगती हैं कि आप इन्हें चाहकर भी नजरअंदाज नहीं कर सकते।
पिथौरागढ़ जिले में है पाताल भुवनेश्वर
दरअसल, बात हो रही है भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर की। मुझे भी पाताल भुवनेश्वर जाने का मौका मिला। हल्दवानी से अल्मोड़ा, धौलछीना और सेराघाट होते हुए हम राई आगर पहुंचे। राई आगर से एक रास्ता बेरीनाग को जाता है जबकि दूसरा गंगोलीहाट को। गंगोलीहाट पहुंचने से करीब 6 किमी पहले एक रास्ता पाताल भुवनेश्वर को जाता है। पाताल भुवनेश्वर वाले मार्ग में सुनहरी चमक बिखेरती हिमालय की ऊंची चोटियों के मनमोहक दर्शन होते हैं।
प्राचीन और रहस्यमयी गुफा
पाताल भुवनेश्वर दरअसल एक प्राचीन और रहस्यमयी गुफा है जो अपने आप में एक रहस्यमयी दुनिया को समेटे हुए है। गुफा के अंदर कैमरा और मोबाईल ले जाने की अनुमति नहीं है। ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फिट अंदर है। 90 फिट नीचे गुफा में उतरने के लिए चट्टानों के बीच संकरे टेढ़ी मेढ़े रास्ते से ढ़लान पर उतरना पड़ता है। देखने पर गुफा में उतरना नामुमकिन सा लगता है लेकिन गुफा में उतरने पर शरीर खुद ब खुद गुफा के संकरे रास्ते में अपने लिए जगह बना लेता है। करीब 90 फिट नीचे उतरने के बाद आप एक समतल स्थान पर पहुंच जाएंगे।
पृथ्वी को अपने फन पर धारण किए शेषनाग
गुफा में पहुंचने पर एक अलग ही अनुभूति होती है। जैसे हम किसी काल्पनिक लोक में पहुंच गए हों। गुफा में रहस्यमयी आकृतियों का सच हैरान करने वाला है। गुफा में उतरते ही सबसे पहले गुफा के बायीं तरफ शेषनाग की एक विशाल आकृति दिखाई देती जिसके ऊपर विशालकाय अर्द्धगोलाकार चट्टान है जिसके बारे में कहा जाता है कि शेषनाग ने इसी स्थान पर पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया है। गुफा में आगे बढ़ते हुए हम जिस स्थान पर चल रहे थे उसे शेषनाग का शरीर बताया जाता है, जिसकी आकृति सर्प की तरह है।
ब्रह्म कमल से गिरती अमृत की बूंदें
कुछ आगे बढ़ने पर आदि गणेश के दर्शन होते हैं जिस पर ब्रह्म कमल से अमृत की बूंदे गिरती दिखाई देती हैं। यहीं पर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ धाम के दर्शन होते हैं तो कालभैरव भी यहीं पर विराजमान हैं। कुछ आगे बढ़ने पर पाताल चंडिका के दर्शन होते हैं और चारों द्वार- पाप द्वार, रण द्वार, धर्म द्वार और मोक्ष द्वार भी यहां पर दिखाई देते हैं। कहते हैं कि त्रेता युग में रावण के अंत के साथ ही पाप द्वार बंद हो गया था जबकि महाभारत के युद्ध के बाद रण द्वार भी बंद हो गया था। धर्म और मोक्ष द्वारा का रास्ता यहां से जाता हुआ दिखाई देता है। आगे बढ़ने पर समुद्र मंथन से निकला पारिजात का पेड़ नज़र आता है तो ब्रह्मा जी के पांचवें मस्तक के दर्शन भी यहां पर होते हैं। गुफा के ऊपर से नीचे की ओर आती शिवजी की विशाल जटाओं के साथ ही 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शन भी इस स्थान पर होते हैं। शिव की जटाओं से बहती गंगा का अदभुत दृश्य मन को मोह लेता है।
टेढ़ी गर्दन वाले हंस की आकृति
गुफा के दाहिनी ओर इसके ठीक सामने ब्रह्मकपाल और सप्तजलकुंड के दर्शन होते हैं जिसकी बगल में टेढ़ी गर्दन वाले एक हंस की आकृति दिखाई देती है।मानस खंड में वर्णन है कि हंस को कुंड में मौजूद अमृत की रक्षा करने का कार्य दिया गया था लेकिन लालच में आकर हंस ने खुद ही अमृत को पीने की चेष्टा की जिससे शिव जी के श्राप के चलते हंस की गर्द हमेशा के लिए टेढ़ी हो गयी।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश के एक साथ दर्शन
गुफा में चार कदम आगे बढ़ने पर पाताल भुवनेश्वर- ब्रह्मा, विष्णु और महेश के एक साथ दर्शन होते है। गुफा में दाहिनी ओर कुछ ऊपर चढ़ने पर पांड़वों के दर्शन होते हैं। इसके पास से ही रामेश्वरम की गुफा का मार्ग और सबरीवन द्वारिका का रास्ता दिखाई देता है। साथ ही कुछ दूर पर काशी और कैलाश का मार्ग भी गुफा में नजर आता है। दाहिनी ओर बढ़ते हुए जब हम गुफा में आगे बढ़ते हैं तो एक स्थान पर चारों युग- कलयुग, सतयुग, द्वापर और त्रेता युग के लिंग के दर्शन होते हैं और इनके ऊपर समय चक्र दिखाई पड़ता है। इस चारों युगों के लिंग में कलयुग का लिंग सबसे बड़ा है। कहते हैं कि जिस दिन कलयुग का लिंग उसके ठीक ऊपर स्थापित समय चक्र को स्पर्श कर लेगा उस दिन प्रलय आ जाएगी और कलयुग का अंत हो जाएगा। कहा ये भी जाता है कि कलयुग का लिंग हजारों साल में तिल की आकृति के बराबर बढ़ता है।
ऐरावत हाथी के एक हजार पांवों के दर्शन
वापस जाने पर जब हम गुफा के प्रारंभ में पहुंचते हैं तो गुफा के बांयी तरफ गुफा की छत से नीचे को लटकते ऐरावत हाथी के एक हजार पांवों के दर्शन होते हैं। इसके साथ ही यहां पर मनोकामना कमंडल भी स्थापित है और मान्यता है कि मनोकामना कमंडल को छू कर सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना जरुर पूर्ण होती है।
स्कन्द पुराण में पाताल भुवनेश्वर गुफा का वर्णन
कुल मिलाकर 160 मीटर लंबी पाताल भुवनेश्वर गुफा एक ऐसा स्थान है जहां पर एक ही स्थान पर न सिर्फ 33 करोड़ देवताओं का वास है बल्कि इस गुफा के दर्शन से चारों धाम- जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, द्वारिकी पुरी और बद्रीनाथ धाम के दर्शन पूर्ण हो जाते हैं। पाताल भुवनेश्वर गुफा का विस्तृत वर्णन स्कन्द पुराण के मानस खंड के 103 अध्याय में मिलता है। पाताल भुवनेश्वर अपने आप में एक दैवीय संसार को समेटे हुए है। धर्म में अगर आपकी जरा सी भी आस्था है तो आप भी जीवन में एक बार पाताल भुवनेश्वर गुफा के दर्शन अवश्य कीजिएगा।
इस ब्लॉग के लेखक दीपक तिवारी इंडिया टीवी में कार्यरत हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।