Sunday, December 22, 2024
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चिदंबरम ने की उपराष्ट्रपति धनखड़ के दावे की आलोचना, कहा- संसद सर्वोच्च नहीं

कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्यसभा के सभापति गलत हैं, जब वह कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है। संविधान सर्वोच्च है। उन्होंने कहा कि यह चेतावनी हो सकती है।

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Jan 12, 2023 12:11 IST, Updated : Jan 12, 2023 12:11 IST
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
Image Source : FILE PHOTO कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के संसदीय वर्चस्व पर जोर देने के एक दिन बाद कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने गुरुवार को कहा कि संविधान सर्वोच्च है और वीपी के विचार एक चेतावनी संकेत हो सकते हैं। चिदंबरम ने कहा, "राज्यसभा के सभापति गलत हैं, जब वह कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है। संविधान सर्वोच्च है।" उन्होंने कहा कि यह चेतावनी हो सकती है, वास्तव में सभापति के विचारों को प्रत्येक संविधान-प्रेमी नागरिक को आने वाले खतरों के प्रति चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।

उन्होंने कहा कि संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर बहुसंख्यकों की ओर से संचालित हमले को रोकने के लिए मूल संरचना सिद्धांत विकसित किया गया था। उन्होंने प्रश्न किया, "मान लें कि संसद, बहुमत से, संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने के लिए मतदान करती है या राज्य सूची को निरस्त करती है और राज्यों की विशेष विधायी शक्तियों को छीन लेती है। क्या ऐसे संशोधन मान्य होंगे?"

'संसद की शक्ति किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन नहीं'

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को दोहराया कि संविधान में संशोधन करने और कानून से निपटने के लिए संसद की शक्ति किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन नहीं है और सभी संवैधानिक संस्थानों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अपने-अपने तक सीमित रखने की आवश्यकता है। वे बुधवार को राजस्थान विधानसभा में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा, "संविधान में संशोधन करने और कानून से निपटने की संसद की शक्ति किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन नहीं है। यह लोकतंत्र की जीवन रेखा है।" उपराष्ट्रपति ने कहा, "जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका संवैधानिक लक्ष्यों को पूरा करने और लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए मिलकर काम करती हैं, तो लोकतंत्र कायम रहता है और फलता-फूलता है। न्यायपालिका उसी प्रकार कानून नहीं बना सकती है, जिस प्रकार विधानमंडल एक न्यायिक फैसले को नहीं लिख सकता है।"

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