
जयपुर: राजस्थान में सरकार से वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में 'कुलपति' का पदनाम अब 'कुलगुरु' होगा। विधानसभा ने इस संबंध में एक प्रस्ताव बृहस्पतिवार को पारित कर दिया। राजस्थान के उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने राजस्थान के विश्वविद्यालयों की विधियां (संशोधन) विधेयक, 2025 पर चर्चा के बाद जवाब देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लगातार महत्वपूर्ण निर्णय ले रही है। उन्होंने कहा कि वंचित वर्गों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध करवाना राज्य सरकार का ध्येय है।
पुराना गौरव लौटाने के लिए कृत संकल्पित
शिक्षा मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा लगातार कॉलेज शिक्षकों की भर्ती की जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत देश प्राचीन काल में ज्ञान एवं शिक्षा का वैश्विक केंद्र रहा है, राज्य सरकार शिक्षा के माध्यम से भारत का पुराना गौरव लौटाने के लिए कृत संकल्पित है। संशोधन के अनुसार राज्य के 33 वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में कुलपति एवं प्रतिकुलपति के पदनामों में बदलाव कर इन्हें क्रमशः कुलगुरु एवं प्रति कुलगुरु किया गया है।
महान शिक्षा व्यवस्था की पुनर्स्थापना का प्रयास
डॉ.बैरवा ने कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय औपचारिक प्रक्रिया ना होकर एक महान शिक्षा व्यवस्था की पुनर्स्थापना का प्रयास है। उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे विश्वविद्यालयों को पुनः श्रद्धा का केंद्र बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है। इससे भारत की महान गुरु शिष्य परंपरा का पुनर्जागरण होगा।’’
क्या होता है कुलपति
बता दें कि यूनिवर्सिटी के प्रमुख को कुलपति कहा जाता है। इस पर नियुक्त व्यक्तित एक प्रशासक साथ-साथ शिक्षा के प्रमुख के रूप में कार्य करता है, जो संस्थान के शैक्षिक और प्रशासनिक मामलों की देखरेख करता है। कुलपति के अधिकार और जिम्मेदारियां विश्वविद्यालय या महाविद्यालय के नियमों पर आधारित होती हैं।
कुलपति के अधिकार
- कुलपति यूनिवर्सिटी या कॉलेज की शैक्षिक नीतियों का निर्धारण करता है।
- कुलपति संस्थान के प्रशासनिक मामलों में फैसले लेता है।
- कुलपति यूनिवर्सिटी के बजट का प्रबंधन करता है।
- शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति की जिम्मेदारी कुलपति की होती है।
- कुलपति छात्रों की शिकायतों का समाधान भी करता है।