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बच्चों पर यौन हमले की सूचना न देना गंभीर अपराध : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न को लेकर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों के बारे में सुचित नहीं करना भी अपराध ही माना जाएगा। कोर्ट ने साथ ही साथ हाईकोर्ट को भी कठघरे में खड़ा किया है।

Edited By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Published : Nov 02, 2022 23:23 IST, Updated : Nov 02, 2022 23:23 IST
यौन उत्पीड़न
Image Source : TWITTER यौन उत्पीड़न

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि नाबालिग बच्चे के यौन उत्पीड़न की जानकारी होने के बावजूद उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट न करना एक गंभीर अपराध है और अपराधियों को बचाने का प्रयास भी है। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की पीठ ने फैसला सुनाते हुए पिछले साल अप्रैल में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा महाराष्ट्र के चंद्रपुर में एक चिकित्सक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और आरोपपत्र को रद्द करने के फैसले को रद्द कर दिया।

यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट नहीं करना अपराध 

मेडिकल प्रैक्टिशनर के ऊपर आरोप है कि इसके बारे में जानकारी होने के बावजूद एक छात्रावास में कई नाबालिग लड़कियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के बारे में प्राधिकरण को सूचित नहीं किया। साल 2019 में चंद्रपुर स्कूल में आदिवासी मूल की 17 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण की रिपोर्ट नहीं करने के कारण डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई थी।हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, "जानकारी के बावजूद किसी नाबालिग बच्ची के यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट न करना एक गंभीर अपराध है और अक्सर यह अपराधियों को बचाने का एक प्रयास है।"

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार 

पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा, "इस मामले में हाईकोर्ट ने पीड़िताओं और उनके शिक्षक के बयान लिए, फिर भी प्रतिवादी को अपराध में फंसाने के लिए सबूत नहीं खोज पाना बिल्कुल अस्वीकार्य है।"पीठ ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 59 के आलोक में प्रतिवादी के लिए कार्यवाही को अचानक समाप्त करना हाईकोर्ट के लिए उचित नहीं था। कक्षा 3 और 5 में पढ़ने वाली लड़कियों के बीमार पड़ने के बाद यौन शोषण का पता चला और उन्हें सामान्य अस्पताल ले जाया गया था।

हाईकोर्ट कठघरे में
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि 17 पीड़िताओं में से कुछ ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान दिए हैं और कुछ अन्य धारा 164 सीआरपीसी के तहत, विशेष रूप से यह कहते हुए कि प्रतिवादी को बच्चियों पर यौन हमले के बारे में सूचित किया गया था।पीठ ने कहा, "जब यह स्थिति हो, तो हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाईकोर्ट ने जांच शुरू करना जरूरी नहीं समझा। विशेष रूप से पीड़िताओं और उनके शिक्षक के दर्ज बयानों को देखकर प्रतिवादी के खिलाफ सबूत जुटाने के बारे में राय बनानी चाहिए थी।"

पीड़िता और आरोपी की मेडिकल जांच से मिलेंगे सुराग 
पीठ ने कहा, "स्वीकृत उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध की रिपोर्टिग के लिए एक कानूनी दायित्व एक व्यक्ति पर इसके तहत निर्दिष्ट संबंधित अधिकारियों को सूचित करने के लिए डाला जाता है, जब उसे पता होता है कि अधिनियम के तहत अपराध किया गया है। इस तरह की बाध्यता उस व्यक्ति की भी हो जाती है, जिसे आशंका हो कि किया गया अपराध इस अधिनियम के तहत आ सकता है।"

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति रविकुमार ने कहा कि पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध की त्वरित और उचित रिपोर्टिग अत्यंत महत्वपूर्ण है और उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि किसी के कमीशन के बारे में जानने में इसकी विफलता इसके तहत अपराध अधिनियम के उद्देश्य को विफल कर देगा।पीठ ने कहा, "हम इसके तहत विभिन्न प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए ऐसा कहते हैं। पीड़िता और आरोपी की मेडिकल जांच से पॉक्सो अधिनियम के तहत आने वाले मामले में कई महत्वपूर्ण सुराग मिलेंगे।"

पीड़िता ने किया खुलासा 
इस मामले में छात्रावास के अधीक्षक और चार अन्य को गिरफ्तार कर आरोपी बनाया गया है। जांच के दौरान यह पाया गया कि 17 नाबालिग लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया और पीड़ित लड़कियों को छात्रावास में रह रहीं लड़कियों के इलाज के लिए नियुक्त एक चिकित्सक के पास ले जाया गया था।जांच से पता चला कि डॉक्टर को घटनाओं के बारे में पीड़िताओं से जानकारी मिली थी, जैसा कि पीड़ित लड़कियों ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज अपने बयानों में खुलासा किया है।

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