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32 साल बाद कश्मीर में लौटी नवरेह की रौनक, अपनी मातृभूमि पर धूमधाम से नववर्ष का पर्व मना रहे कश्मीरी पंडित

कश्मीर में 1990 के बाद पहली बार इतनी संख्या में कश्मीरी पंडित नवरेह का पर्व मनाने के लिए कश्मीर पहुंचे हैं। 32 साल बाद आज उस माहौल को देखकर कश्मीरी पंडितों की उम्मीदें जाग उठी है और यह यकीन हुआ है कि वह दिन अब दूर नहीं जब एक बार फिर कश्मीर में हिंदू, मुस्लिम और सिख एक साथ रहकर यहां की परंपरा और भाईचारे को फिर से कायम करने में सफल हो जाएंगे।

Reported by: Manzoor Mir
Published on: April 02, 2022 17:10 IST
Navreh in Kashmir - India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Navreh in Kashmir

श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर): श्रीनगर के सारिका देवी मंदिर में आज 32 साल पुराना माहौल दिख रहा था और मौका था नए साल के आगाज का। देश के विभिन्न राज्यों से 1990 में कश्मीर से पलायन कर चुके कश्मीरी पंडित इस दिन को सेलिब्रेट करने के लिए कश्मीर पहुंचे। मंदिर में कश्मीरी पंडितों ने विशेष पूजा अर्चना कर खुशगवार माहौल में यह उम्मीद जताई कि बहुत जल्द कश्मीरी पंडित कश्मीर लौटेंगे, क्योंकि अब हालात पहले से बेहतर है।

इंडिया टीवी से बात करते हुए कश्मीरी पंडितों ने कहा, कश्मीर हमारी धरती है। यह जगह जन्नत से कम नहीं है। इस जन्नत को नजर लग गई थी लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से हालात बदल गए हैं। हिंसा और आतंकवाद में भी कमी आई है। कश्मीर के भाईचारे की मिसाल आज भी जिंदा है, आज का माहौल 1990 से पहले जैसे माहौल को दर्शा रहा है। यहां पहुंचे हर कश्मीरी पंडित के चेहरे पर सुकून था। खुशी थी और एक नई उम्मीद क्या अपने घरों को दोबारा वापस लौटेंगे।

नवरेह के इस मौके पर इंडिया टीवी के संवावददाता की मुलाकात एक कश्मीरी पंडित से हुई जो कश्मीर के अब्बा कदल इलाके में रहता था। पेशे से वह एक म्यूजिक टीचर था और कश्मीरी बच्चों को पढ़ाता था, लेकिन 1990 में उसके माता पिता की हत्या कर दी गई थी। वह इन सब यादों को ब्लॉक कर एक नई सुबह की शुरुआत कश्मीर में करना चाहता है। इंडिया टीवी से  बात करते हुए भावुक हुए और कहा कि मेरी आत्मा यहां बस्ती है। यह मेरा वतन है। मैं कभी कश्मीर को छोड़कर नहीं चला गया। इस मंदिर में सुबह शाम में पूजा करता था लेकिन 32 साल बाद आज यहां आकर यह महसूस हो रहा है कि कश्मीर बदल रहा है। आज मंदिर की घंटियां बज रही है। काफी तादाद में लोग इस पर्व को मनाने के लिए यहां पर पहुंचे हुए हैं।

इतना ही नहीं कि सिर्फ यहां से पलायन कर चुके कश्मीरी पंडित अपने घरों को वापस लौटना चाहते हैं बल्कि उनके बच्चे जिन्होंने यहां जन्म तो नहीं लिया, लेकिन अपने माता-पिता से कश्मीर के बारे में सुनकर वह भी यह महसूस करने लगे है कि जो कुछ 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ, उसके बावजूद कश्मीर न सिर्फ धरती पर स्वर्ग का एहसास दिलाता है बल्कि यह तस्वीर भी बयान करती है कि कश्मीर में हालात अच्छे हो रहे हैं। यहां के लोग यहां का वातावरण देश के हर राज्य से बिल्कुल अलग है। माही और रक्षिता का कहना है कि हम खुश है पहली बार नए साल का यह पर्व मनाने का मौका कश्मीर में मिला। इन लोगों का यह भी कहना है कि इस ऐतिहासिक मंदिर में आकर बहुत खुश है क्योंकि जो कुछ इस मंदिर के बारे में सुना था वही इस मंदिर में आज देखने को भी मिल रहा है।

आपको बता दें कि कश्मीर में 1990 के बाद पहली बार इतनी संख्या में कश्मीरी पंडित नवरेह का पर्व मनाने के लिए कश्मीर पहुंचे हैं। 32 साल बाद आज उस माहौल को देखकर कश्मीरी पंडितों की उम्मीदें जाग उठी है और यह यकीन हुआ है कि वह दिन अब दूर नहीं जब एक बार फिर कश्मीर में हिंदू, मुस्लिम और सिख एक साथ रहकर यहां की परंपरा और भाईचारे को फिर से कायम करने में सफल हो जाएंगे।

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