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मुस्लिम पत्नी ने तलाक के बाद पति से मांगा था भरण-पोषण, केरल हाई कोर्ट ने सुनाया यह बड़ा फैसला

केरल हाई कोर्ट ने तलाक और भरण-पोषण के मामले में एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई मुस्लिम महिला अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं तो वह भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Oct 11, 2023 17:27 IST, Updated : Oct 11, 2023 17:27 IST
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Image Source : REPRESENTATIONAL IMAGE केरल हाई कोर्ट ने ‘खुला’ तलाक को लेकर अहम फैसला सुनाया है।

तिरुवनंतपुरम: केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि 'खुला' के तहत तलाक लेने वाली मुस्लिम महिला इसके प्रभावी होने के बाद अपने पति से भरण-पोषण या ‘मेनटेनेंस’ का दावा नहीं कर सकती। बता दें कि मुस्लिम समुदाय में 'खुला' सहमति से दिए तलाक को कहा जाता है। इस तरह के तलाक में पत्नी शादी से अलग होने के लिए पति से सहमति जताती है। जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि एक मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत दोबारा अपनी शादी होने तक भरण-पोषण का दावा कर सकती है।

अदालत ने फैसले में कही ये बात

जस्टिस बदरुद्दीन ने अपने फैसले में आगे कहा कि लेकिन(CrPC) की धारा 125 के खंड 4 में कहा गया है कि यदि कोई मुस्लिम महिला अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं तो वह भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जब पत्नी अपने पति से मुक्ति पाने के लिए 'खुला' के जरिए से तलाक लेती है, तो वास्तव में यह पत्नी द्वारा अपने पति के साथ रहने से इनकार करने के बराबर है।

2018 से अलग-अलग रह रहे थे पति-पत्नी
जज ने अपने फैसले में कहा कि यदि वह पत्नी, जिसने अपनी इच्छा से 'खुला' द्वारा तलाक लेकर स्वेच्छा से अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया है, तो वह 'खुला' की तारीख से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। हाईकोर्ट ने यह फैसला तब सुनाया जब एक शख्स ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी और बेटे को हर महीने 10 हजार का भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने मामले और उसके रिकॉर्ड पर गौर करते हुए पाया कि दोनों पक्ष 31 दिसंबर 2018 से अलग-अलग रह रहे थे।

अदालत ने मामले को बंद कर दिया
हाईकोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि उनके बीच मुकदमा 2019 में शुरू हुआ था। अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि पत्नी के पास अपना और अपने बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए कोई स्थायी इनकम या रोजगार नहीं था। हालांकि अपने फैसले में अदालत ने कहा कि 'खुला' के तहत विवाह समाप्त होने तक पत्नी और बेटे को गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए और मामले को बंद कर दिया। (IANS)

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