भारतीय राजनीति में ऐसे कम ही राजनेता हुए हैं, जिन्होंने जीवनपर्यंत अपने सिद्धांतों का पालन किया। ऐसे ही एक राजनेता थे मोरारजी देसाई। मोरारजी सिद्धांतों के लिए किसी से भी लड़ जाते। फिर चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। प्रशासनिक नौकरी को छोड़कर राजनीति में शामिल होने वाले मोरारजी देसाई का आज जन्मदिन है। राज्य मंत्रिमंडल से लेकर केंद्र सरकार तक अलग-अलग समयों पर उन्होंने अलग-अलग और अहम जिम्मेदारियों को निर्वहन किया। एक समय ऐसा भी आया जब मोरारजी देश के प्रधानमंत्री बनें।
सरकारी नौकरी छोड़ आजादी की लड़ाई में कूदे मोरारजी
29 फरवरी 1895 को मोरारजी देसाई का जन्म भदैली (बम्बई प्रेसीडेंसी) में हुआ था। साल 1917 में उनका चयन बंबई की प्रांतीय सिविल सेवा में हुआ। 1927-28 में उनकी गोधरा में बतौर डिप्टी कमिश्नर के तौर पर तैनाती के दौरान दंगे हुए। इसके बाद इससे नाराज मोरारजी देसाई ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। दरअसल उनपर तरफदारी करने के आरोप लगे थे। इसके बाद मोरारजी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। इस दौरान कई बार उन्हें जल जाना पड़ा। आजादी के बाद साल 1952 में वो बम्बई के मुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस में शामिल हुए मोरारजी देसाई
इसके बाद साल 1956 से लेकर 1969 तक वो कांग्रेस में रहे और राज्य तथा केंद्र सरकार में अलग-अलग पदों पर रहे और कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। हालांकि उन्हें इस दौरान उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया। जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया तो एक बार फिर मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद के दावेदर बने। लेकिन इस दौरान बाजी इंदिरा गांधी ने मार ली।
कांग्रेस का विभाजन
साल 1969 तक केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और आखिरी के दो सालों में उपप्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उनकी उपस्थिति बनी रही। साल 1969 में कांग्रेस में विवाद बढ़ने लगा और कांग्रेस दो धड़े में बंट गई। इसके बाद मोरारजी देसाई (ओ) पाले में चले गए और कई सालों तक वो विपक्ष में रहे। इसके बाद अगले 8 साल तक उन्होंने राजनीतिक संघर्ष किया। हालांकि इसी दौरान देश में इमरजेंसी लागू कर दिया गया और मोरारजी देसाई को फिर 19 महीने तक जेल में रहना पड़ा।
मोरारजी देसाई बने प्रधानमंत्री
कांग्रेस में जब मोरारजी देसाई और चंद्रशेखर थे, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद जरूर था। साल 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद दोनों ही विरोधी खेमें में पहुंच गए थे। लगातार प्रधानमंत्री के प्रमुख दावेदार के रूप में वो सबसे चर्चित चेहरे माने जाते लेकिन हर बार कोई दूसरा ही प्रधानमंत्री बन जाता। लेकिन साल 1977 में ऐसा नहीं हुआ। साल 1977 में जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और फिर मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया। इस दौरान मोरारजी देसाई को चुनौती मिली जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह से। बता दें कि मोरारजी देसाई की छवि एक जिद्दी और अडियल नेता के रूप में थे। ऐसे में चुनाव के दौरान ऐसा लग रहा था कि जगजीवन राम प्रधानमंत्री बन सकते हैं। लेकिन इस समय मोरारजी का साथ दिया उनके सहयोगी चौधरी चरण सिंह ने। मेजादर बात ये है कि मोरारजी की सरकार में रहते हुए चौधरी चरण सिंह की कभी उनसे पटी नहीं।