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मोहन भागवत का बड़ा बयान, "अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दिन देश की सच्ची स्वतंत्रता प्रतिष्ठित हुई"

मोहन भागवत ने कहा कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 'प्रतिष्ठा द्वादशी' के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी।

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Jan 14, 2025 12:04 IST, Updated : Jan 14, 2025 12:07 IST
मोहन भागवत
Image Source : PTI मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को इंदौर में एक समारोह के दौरान कहा कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 'प्रतिष्ठा द्वादशी' के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय को इंदौर में ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान करते समय आया। उन्होंने कहा, "यह दिन अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण और भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन गया है।" भागवत ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश को ब्रिटिश शासन से राजनीतिक स्वतंत्रता मिली, लेकिन उस स्वतंत्रता की दिशा और उसका असली उद्देश्य संविधान के गठन के समय स्पष्ट नहीं हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान राम, कृष्ण और शिव जैसे देवी-देवता भारतीय जीवन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो देश के 'स्व' (स्वतंत्रता) का हिस्सा हैं, और यह केवल उन्हीं लोगों तक सीमित नहीं है जो उनकी पूजा करते हैं।

भागवत ने कहा कि आक्रांताओं ने देश के मंदिरों के विध्वंस इसलिए किए थे कि भारत का ‘‘स्व’’ मर जाए। भागवत ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन किसी व्यक्ति का विरोध करने या विवाद पैदा करने के लिए शुरू नहीं किया गया था। संघ प्रमुख ने कहा कि यह आंदोलन भारत का ‘स्व’ जागृत करने के लिए शुरू किया गया था, ताकि देश अपने पैरों पर खड़ा होकर दुनिया को रास्ता दिखा सके। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन इसलिए इतना लंबा चला, क्योंकि कुछ शक्तियां चाहती थीं कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर उनका मंदिर न बने। 

"लोग पवित्र मन से प्राण प्रतिष्ठा के पल के गवाह बने"

मोहन भागवत ने कहा कि पिछले वर्ष अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश में कोई कलह या झगड़ा नहीं हुआ और लोग ‘‘पवित्र मन’’ से प्राण प्रतिष्ठा के पल के गवाह बने। संघ प्रमुख ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उस वक्त हुई अपनी एक मुलाकात का जिक्र भी किया, जब घर वापसी (धर्मांतरित लोगों का अपने मूल धर्म में लौटना) का मुद्दा संसद में गरमाया हुआ था। उन्होंने कहा,‘‘इस मुलाकात के दौरान मुखर्जी ने मुझसे कहा कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष संविधान है और ऐसे में दुनिया को हमें धर्मनिरपेक्षता सिखाने का भला क्या अधिकार है। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि 5,000 साल की भारतीय परंपरा ने हमें धर्मनिरपेक्षता ही सिखाई है।’’

प्रणब मुखर्जी​ से मुलाकात के दौरान हुई बातों का किया जिक्र

भागवत के मुताबिक, मुखर्जी उनसे मुलाकात के दौरान 5,000 साल की जिस भारतीय परंपरा का जिक्र कर रहे थे, वह राम, कृष्ण और शिव से शुरू हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान 1980 के दशक में कुछ लोग उनसे ‘‘रटा-रटाया सवाल’’ करते थे कि जनता की रोजी-रोटी की चिंता छोड़कर मंदिर का मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है? भागवत ने कहा,‘‘मैं उन लोगों से पूछता था कि 1947 में आजाद होने के बाद समाजवाद की बातें किए जाने, गरीबी हटाओ के नारे दिए जाने और पूरे समय लोगों की रोजी-रोटी की चिंता किए जाने के बावजूद भारत 1980 के दशक में कहां खड़ा है और इजराइल व जापान जैसे देश कहां से कहां पहुंच गए हैं?’’ (भाषा इनपुट के साथ)

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