नई दिल्ली: कल्पना कीजिए कि आपके बैंक खाते में एक ही दिन में 20 अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा समान राशि के प्रत्येक लेनदेन के साथ 1.20 करोड़ रुपये का दान दिया मिले तो? निश्चित रूप से, यह आपको जांच एजेंसियों की नज़र में ला देगा लेकिन स्वंभू पर्यावरण कार्यकर्ता मेधा पाटकर के मामले में ऐसा नहीं है, जिनका एनजीओ नर्मदा नवनिर्माण अभियान (एनएनए) इस तरह के संदिग्ध धन प्राप्त करने के बावजूद लॉ एन्फोर्समेंट से 17 साल तक बचा रहा। हालांकि, पाटकर के नेतृत्व वाले पंजीकृत ट्रस्ट के खिलाफ अब प्रवर्तन निदेशालय (ED), राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में अलग-अलग शिकायतें दर्ज की गई हैं।
कहा जा रहा है कि शिकायतों पर फॉलोअप के रूप में केंद्रीय एजेंसियों ने इन लेनदेन की जांच शुरू कर दी है। एनएनए 5 मार्च 2004 को ग्रेटर मुंबई क्षेत्र के चैरिटी कमिश्नर में रजिस्टर्ड एनजीओ है, जिसमें पाटकर सेटलर और मुख्य ट्रस्टी हैं। इस एनजीओ को 18 जून 2005 को उसके बैंक ऑफ़ इंडिया के अकाउंट बेअरिंग नंबर 001010100064503 के बैंक खाते में 1,19,25,880 रुपये का दान मिला था।
वैसे दिलचस्प बात तो ये है कि गठन के एक साल होने के कुछ ही समय बाद एनएनए के बैंक खाते में 20 अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा 18 जून, 2005 को 5,96,294 रुपये के समान ट्रांजेक्शन के साथ यह महत्वपूर्ण राशि प्राप्त हुई। आश्चर्यजनक रूप से इन जमाकर्ताओं में से एक पल्लवी प्रभाकर भालेकर उस समय एक नाबालिग भी थी। इतना ही काफी नहीं था तो इस एनजीओ को मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) से जनवरी 2020 से मार्च 2021 तक अलग-अलग राशि के छह चरणों में लगभग 62 लाख रुपये का दान भी मिला है।
गौरतलब है कि एमडीएल रक्षा मंत्रालय के अधीन केंद्र सरकार का उपक्रम है, जो पहले मझगांव डॉक लिमिटेड के नाम से जाना जाता था। मुंबई के मझगांव में स्थित एक सार्वजनिक क्षेत्र का शिपयार्ड है और भारतीय नौसेना के लिए वॉरशिप्स और सबमरीन्स का निर्माण करता है। यह ऑफशोर प्लेटफार्मों और ऑफशोर तेल ड्रिलिंग के लिए एसोसिएटेड सपोर्ट वेसल्स, टैंकरों, कार्गो बल्क व्हीकल्स, पैसेंजर शिप्स और फेरीस के निर्माण में भी लगा हुआ है। 6 एनईएफटी (नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर) लेनदेन के माध्यम से फंड को मझगांव डॉक के एचडीएफसी बैंक खाते से एनएनए के उसी बैंक ऑफ इंडिया खाता संख्या 001010100064503 में ट्रान्सफर किया गया था।
करोड़ों रुपये के ये लेन-देन स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि पाटकर, जो एक विनम्र और मितव्ययी व्यक्ति हैं वो विभिन्न स्रोतों से आने वाले धन को लेकर अब तक सरकार के ध्यान से बच गए हैं। बता दें कि राष्ट्रीय महत्व की हर परियोजना/नीति का विरोध करने का पाटकर और उनके एनजीओ का इतिहास रहा है चाहे वह सरदार सरोवर परियोजना हो, परमाणु परियोजनाएं हों, कोयला खदान परियोजनाएं हों और हाल ही में सीएए और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून हो।
मझगांव डॉक से इस तरह के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों वाले संगठन को ऐसी बार-बार मिलने वाली फंडिंग बहुत चिंता का विषय है। गाज़ियाबाद के रहने वाले संजीव कुमार झा फरियादकर्ता है। संयोग से, झा वही शिकायतकर्ता हैं जिनकी शिकायत पर मुंबई के क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने के आधार पर पाटकर का पासपोर्ट जब्त कर लिया था। शिकायतकर्ता ने इस तरह के संदिग्ध फंडिंग के पीछे एक "संगठित सिंडिकेट" का आरोप लगाया है।
ये लेन-देन विवरण गंभीर सवाल उठाते हैं कि कैसे 20 अलग-अलग लोगों ने एक ही दिन में एक करोड़ रुपये से अधिक का समान लेनदेन किया? आमतौर पर फंडिंग राउंड फिगर में किया जाता है लेकिन इन डोनर्स को इतने विषम अंकों में पैसा जमा करने के लिए किसने प्रेरित किया यह भी जांच का विषय है। यह एक संगठित सिंडिकेट फंडिंग की ओर भी इशारा करता है क्योंकि इस स्वयंभू एनजीओ पर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया है। फंडिंग का स्रोत और लेन-देन का तरीका और साथ ही इतने बड़े दान के पीछे का उद्देश्य भी स्पष्ट रूप से विस्तृत जांच का विषय है।