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'शादी की वजह से प्राइवेसी का अधिकार बेअसर नहीं हो जाता', कर्नाटक हाई कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी

कर्नाटक हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा है कि शादी से किसी शख्स के निजता के अधिकार खत्म नहीं हो जाते। इस दौरान खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को भी रद्द कर दिया। एकल पीठ के आदेश को केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (यूआईडीएआई) ने चुनौती दी थी।

Edited By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published on: November 28, 2023 14:41 IST
Karnataka High Court- India TV Hindi
Image Source : REPRESENTATIVE PIC कर्नाटक हाई कोर्ट

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा है कि शादी किसी व्यक्ति के उन अधिकारों को खत्म नहीं करती, जो उसे निजी जानकारी प्रकट करने के संबंध में मिले हुए हैं। एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति सुनील दत्त यादव और न्यायमूर्ति विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि आधार अधिनियम की धारा 33 के तहत प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, भले ही जानकारी मांगने वाली पत्नी हो। 

धारा 33 (1) के अनुसार, सूचना प्रकट करने का आदेश पारित करने की शक्ति हाई कोर्ट के न्यायाधीश से कनिष्ठ किसी न्यायालय को नहीं दी गई है। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा है कि एकल न्यायाधीश के आदेश में उससे नीचे के प्राधिकारी को विवरण देने का निर्देश दिया गया था। 

खंडपीठ ने क्या कहा?

खंडपीठ ने कहा, ‘‘विद्वान एकल न्यायाधीश ने सहायक महानिदेशक, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (यूआईडीएआई) को उस व्यक्ति को नोटिस जारी करने का निर्देश देकर पूरी तरह गलत काम किया है जिसके बारे में जानकारी मांगी गई है। यह एक स्थापित सिद्धांत है कि यदि अधिनियम यह प्रावधान करता है कि कोई विशेष कार्य किसी विशेष तरीके से किया जाना है, तो इसे उस तरीके से किया जाना चाहिए या बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए।’’ 

उत्तर कर्नाटक के हुबली की रहने वाली महिला ने अपने पति के आधार कार्ड में दर्ज पते की जानकारी लोक सूचना अधिकारी (यूआईडीएआई) से मांगी थी। वह एक कुटुंब अदालत के माध्यम से प्रयास कर रही थी कि उसके पति को उसे गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया जाए जो फरार था। अधिकारी ने जवाब दिया कि जानकारी देने के लिए उच्च न्यायालय का आदेश जरूरी है, जिसके बाद महिला ने एकल पीठ का रुख किया। 

एकल पीठ के आदेश को केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (यूआईडीएआई) ने चुनौती दी थी। अदालत ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दलीलों को स्वीकार कर लिया। केएस पुत्तस्वामी मामले में शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लेख करते हुए खंडपीठ ने कहा, ‘‘आधार संख्या धारक की निजता के अधिकार में उस व्यक्ति के निजता के अधिकार की स्वायत्तता निहित है।’’ (इनपुट: भाषा)

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