इंफाल: मणिपुर में हालात बेहद नाजुक है। सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए हैं। राज्य में आर्टिकल 355 भी लागू कर दिया गया है यानी राज्य की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी अब केंद्र सरकार ने अपने हाथ में ले ली है जिसके बाद आर्मी और असम राइफल्स की 55 टुकड़ियों को तैनात कर दी गई हैं। इनके अलावा गृह मंत्रालय ने रैपिड एक्शन फोर्स की भी पांच कंपनियों को मणिपुर भेजा है। इसके बावजूद हिंसा और बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजधानी इंफाल में बीजेपी के विधायक वुंगजागिन वाल्टे पर भी गुस्साई भीड़ ने हमला कर दिया। ये हमला उस समय हुआ जब वह मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से मुलाकात कर विधायक राज्य सचिवालय से लौट रहे थे।
10 हजार से ज्यादा लोगों को राहत कैंपों में किया शिफ्ट
सुलगते मणिपुर को शांत कराने के लिए केंद्र मिलिट्री और पैरामिलिट्री फोर्स की कई कंपनियों को उतार दिया है। आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच भड़के दंगे को काबू में करने के लिए 8 जिलों में सैना फ्लैग मार्च कर रही है। गृहमंत्री अमित शाह हॉटलाइन पर इम्फाल में अफसरों को निर्देश दे रहे हैं। अब तक की हिंसा में कई लोगों की जान चली गई है, सैंकड़ों जख्मी हुए हैं। उपद्रवियों ने कई घरों और गाड़ियों को फूंक दिया है। लोग घर बार छोड़ कर भाग रहे है। करीब 10 हजार लोगों को राहत कैंपों में शिफ्ट किया गया है। चारों तरफ हाहाकार मचा है।
गृहमंत्री अमित शाह की हालात पर नजर
दंगों की आग में मणिपुर जल रहा है। एक जिले से उठी चिंगारी आठ जिलों तक फैल गई है जिसमें मकान, दुकानें सब जल रही हैं। हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि सेना को बुलाना पड़ा है। दंगाईयों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी करना पड़ा है। हिंसा प्रभावित कई इलाकों में धारा 144 लगाई गई है। अगले 5 दिनों तक इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई है तो कुछ इलाकों में कर्फ्यू भी लगाया गया है। दिल्ली से गृहमंत्री अमित शाह लगातार हालात पर नजर रखे हुए हैं। मुख्यमंत्री और राज्यपाल लोगों से शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं लेकिन हालात नाजुक बने हुए हैं।
आदिवासी और गैर-आदिवासियों के बीच नफरत की वजह क्या?
दरअसल, आदिवासी समुदाय अपनी रैली में उस मांग का विरोध कर रहा था जिसमें ये डिमांड की जा रही थी कि गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को शेड्यूल ट्राइब का दर्जा दिया जाए। मणिपुर में 53 फिसदी से ज्यादा मैतेई आबादी है जो 10 साल से ST स्टेटस की डिमांड कर रही है। गैर-आदिवासी समुदाय के इस मांग का आदिवासी समाज विरोध कर रहे हैं।
'कब्जे की जंग' है बवाल की जड़?
बता दें कि मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं। वहीं, नागा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं, जो राज्य का 90 फीसदी इलाका है। मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते। जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं। मैतेई और नागा-कुकी के बीच विवाद की यही असल वजह है इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी।
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हालांकि सीएम एन. बीरेन सिंह दावा कर रहे हैं कि दोनों समुदायों के बीच जो गलतफहमियां है उसे बातचीत से दूर किया जा सकता है लेकिन हालात को देखते हुए नहीं लगता कि ये नफरत की आग इतनी जल्द बुझनेवाली है।