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चार धाम यात्रा: 25 अप्रैल को खुलेंगे केदारनाथ मंदिर के कपाट, 27 अप्रैल से होंगे बद्रीनाथ के दर्शन

केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल से खुल जाएंगे और भक्त भगवान का दर्शन कर सकेंगे। आज विधिवत इसका ऐलान किया गया। बद्रीनाथ धाम मंदिर के कपाट 27 अप्रैल से खुल जाएंगे।

Edited By: Kajal Kumari
Published : Feb 18, 2023 10:49 IST, Updated : Feb 18, 2023 11:47 IST
Doors of the Kedarnath Temple to be open on April 25
Image Source : FILE PHOTO 25 अप्रैल को खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट

उत्तराखंड: Char Dham Yatra: चारधामों में से एक केदारनाथ धाम मंदिर के कपाट खोलने की तारीख तय कर दी गई है। केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham Temple) के कपाट इस साल 25 अप्रैल को खुलेंगे। केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने इसकी जानकारी दी है। इससे पहले  बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीख 26 जनवरी को ही तय कर दी गई थी। बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham temple) के कपाट 27 अप्रैल की सुबह 7.10 बजे खोल दिए जाएंगे। मंदिर के कपाट खोलने से पहले गाड़ू घड़ा तेल कलश की यात्रा 12 अप्रैल से शुरू होगी। 

श्री बद्री-केदार मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया था कि, 26 जनवरी (बसंत पंचमी) को राजदरबार नरेंद्र नगर में धार्मिक समारोह में राजपुरोहित आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल ने पंचांग की मदद से बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तारीख निकाली और महाराजा मनुजयेंद्र शाह ने कपाट खुलने की तारीख की घोषणा की। उसी समय कहा गया था कि महाशिवरात्रि (18 फरवरी) पर केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीख तय की जाएगी। हर साल अक्षय तृतीया पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खोले जाते हैं। इस बार अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को है।

शीतकाल में बंद हो जाते हैं चारों धाम के मंदिर 

बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, चारों धाम के मंदिर शीतकाल में भक्तों के लिए बंद कर दिए जाते हैं, क्योंकि यहां बर्फबारी के कारण ठंड काफी अधिक बढ़ जाती है। ठंड का मौसम बीतने पर  इन चारों मंदिरों के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं।

कहा जाता है कि जब धाम के कपाट खुले रहते हैं, तब यहां नर यानी रावल पूजा करते हैं और बंद होने के बाद यहां नारद मुनि पूजा-पाठ का दायित्व संभालते हैं। इस मंदिर के पास ही लीलाढुंगी में नारद जी का प्राचीन मंदिर है। भगवान विष्णु ने यहां तपस्या की थी। उस समय महालक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णुजी को छाया प्रदान की थी। लक्ष्मीजी के इस सर्मपण से भगवान प्रसन्न हुए थे और इस जगह को बद्रीनाथ नाम दिया था।

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