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देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ थे जनरल बिपिन रावत, IMA में मिला था 'सोर्ड ऑफ ऑनर'

जनरल रावत ने जनवरी 1979 में सेना में मिजोरम में प्रथम नियुक्ति पाई थी। उन्होंने कभी नेफा इलाके में तैनाती के दौरान बटालियन की अगुवाई की।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 08, 2021 23:30 IST
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Image Source : PTI FILE भारतीय वायुसेना ने बुधवार को कहा कि हेलीकॉप्टर दुर्घटना में सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 11 अन्य लोगों की मृत्यु हो गई है।

Highlights

  • जनरल बिपिन रावत ने 1 जनवरी 2020 को रक्षा प्रमुख का पदभार ग्रहण किया था।
  • जनरल रावत 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक आर्मी चीफ के पद पर रहे।
  • जनरल रावत का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में एक गढ़वाली राजपूत परिवार में हुआ था।

नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना ने बुधवार को कहा कि कुन्नूर के समीप हुई हेलीकॉप्टर दुर्घटना में सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 11 अन्य लोगों की मृत्यु हो गई है। वायुसेना ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा, ‘बहुत ही अफोसस के साथ अब इसकी पुष्टि हुई है कि दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, श्रीमती मधूलिका रावत और 11 अन्य की मृत्यु हो गई है।’ जनरल रावत भारत के पहले रक्षा प्रमुख या चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) थे। उन्होंने 1 जनवरी 2020 को रक्षा प्रमुख का पदभार ग्रहण किया था। इससे पूर्व वह भारतीय थलसेना के प्रमुख थे। जनरल रावत 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक आर्मी चीफ के पद पर रहे।

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ था जन्म

जनरल रावत का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में एक गढ़वाली राजपूत परिवार में हुआ था। इनके परिवार के लोग कई पीढ़ियों से भारतीय सेना को अपनी सेवाएं देते आए थे। सैणा गांव के रहने वाले इनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत सेना से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए थे। रावत ने देहरादून में कैम्ब्रायन हॉल स्कूल, शिमला में सेंट एडवर्ड स्कूल और देहरादून की भारतीय सैन्य अकादमी से शिक्षा ली थी। आईएमए में उन्हें 'सोर्ड ऑफ ऑनर' भी दिया गया था। रावत ने ग्यारहवीं गोरखा राइफल की पांचवी बटालियन से 1978 में अपने करियर की शुरुआत की थी।

रावत को दिया जाता है उग्रवाद की कमर तोड़ने का श्रेय
उत्कृष्ट सेवा के लिए पहचाने जाने वाले सैन्य कमांडर जनरल बिपिन रावत भू-राजनीतिक उथल-पुथल की अद्भुत समझ के धनी थे। उन्होंने भारत के सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए त्रि-सेवा सैन्य सिद्धांत की रूपरेखा तैयार की। पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद की कमर तोड़ने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है। भारत के पहले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) के रूप में जनरल रावत को तीनों सेवाओं के बीच समन्वय विस्तार और संयुक्तता लाने का काम सौंपा गया था। वह पिछले दो वर्षों से एक सटिक दृष्टिकोण और विशिष्ट समयसीमा के साथ इसे आगे बढ़ा रहे थे।

'त्वरित कार्रवाई' की नीति का किया था पुरजोर समर्थन
स्पष्टवादी और निडर होने के लिए पहचाने जाने वाले जनरल रावत, सेना प्रमुख और सीडीएस के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अपनी उपलब्धियों के साथ साथ कुछ विवादास्पद टिप्पणियों के लिए भी चर्चा में रहे। जब वह 2016 और 2019 के बीच सेना प्रमुख थे, तब उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए 'त्वरित कार्रवाई' की नीति का पुरजोर समर्थन किया था। वर्ष 2017 में डोकलाम गतिरोध से बहुत पहले ही जनरल रावत ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि चीन से भारत के समक्ष प्राथमिक और दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौती सामने आएगी और भारत को इसका सामना करने के लिए अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है।

सर्जिकल स्ट्राइक्स में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
जनरल रावत ने नगा उग्रवादियों के एक बड़े हमले के जवाब में म्यांमार में 2015 के सीमा पार अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह उस योजना का भी हिस्सा थे, जब भारत ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी, जिसमें विरोधी पक्ष को काफी नुकसान हुआ था। भारतीय लड़ाकू विमानों द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट के अंदर घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाये जाने के अभियान में तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष जनरल रावत ने अहम भूमिका निभायी थी और उन्होंने अभियान के लिए महत्वपूर्ण सूचनाएं प्रदान की थीं।

जनरल रावत का 4 दशकों में एक शानदार करियर रहा
CDS के रूप में नियुक्त होने वाले पहले सेनाध्यक्ष जनरल रावत का 4 दशकों में एक शानदार करियर रहा, जिसके दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर सहित कई संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में गौरव के साथ काम किया। वर्ष 2017 में जनरल रावत को उग्रवाद विरोधी अभियानों में प्रयासों के लिए मेजर लीतुल गोगोई को सेनाध्यक्ष के प्रशस्ति कार्ड से सम्मानित करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। गोगोई ने 2017 के श्रीनगर उपचुनाव के दौरान पथराव करने वालों के खिलाफ ढाल के रूप में एक व्यक्ति को अपनी सैन्य जीप से बांध दिया था। वर्ष 2019 के दौरान संशोधित नागरिकता अधिनियम के खिलाफ उनकी टिप्पणियों की आलोचना हुई थी।

1978 में मिजोरम में हुई थी प्रथम नियुक्ति
जनरल रावत को 16 दिसंबर 1978 को '11 गोरखा राइफल्स' की पांचवीं बटालियन में शामिल किया गया था। कर्नल के रूप में उन्होंने किबिथू में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पूर्वी सेक्टर में पांचवीं बटालियन की कमान संभाली। बाद में ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत होकर उन्होंने सोपोर में 'राष्ट्रीय राइफल्स' के 5 सेक्टर की कमान संभाली। इसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत कांगो में एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की भी कमान संभाली। मेजर जनरल के पद पर पदोन्नति के बाद, रावत ने उरी में 19वीं इन्फैंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के रूप में पदभार संभाला। 

2016 में बने थे सेना के उप-प्रमुख
लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में उन्होंने पुणे में दक्षिणी कमान को संभाला। 01 सितंबर 2016 को उन्होंने सेना के उपप्रमुख का पद संभाला था। दिसंबर 2016 में, उन्होंने दो वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल, प्रवीण बख्शी और पी एम हरीज, को पीछे छोड़ते हुए 27वें थल सेनाध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। एक जनवरी 2020 को जनरल रावत देश के पहले सीडीएस बने थे।

DSSC से स्नातक थे जनरल बिपिन रावत
जनरल रावत वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (DSSC) से स्नातक थे और उन्होंने अमेरिका के कैंजास में फोर्ट लीवनवर्थ के यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड ऐंड जनरल स्टाफ कॉलेज से हायर कमांड कोर्स भी किया था। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से डिफेंस स्टडीज में एमफिल, और मैनेजमेंट एवं कम्प्यूटर स्टडीज में डिप्लोमा भी किया है। 2011 में उन्हें सैन्य-मीडिया सामरिक अध्ययनों पर अनुसंधान के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी से सम्मानित किया गया था।

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