Highlights
- कानून मंत्री बोले- अदालतों में स्थानीय भाषाओं का हो उपयोग
- "हाईकोर्ट में क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की जरूरत"
- कोर्ट में आम भाषा के उपयोग से कई समस्याएं हल हो सकती हैं
Law Minister Kiren Rijiju: केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजीजू ने अदालतों में स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की पुरजोर वकालत की। कानून मंत्री रिजीजू ने शनिवार को कहा, "अदालत की भाषा अगर आम भाषा हो जाए, तो हम कई समस्याओं को हल कर सकते हैं।" उन्होंने सवाल किया कि अंग्रेजी बोलने वाले वकील की फीस ज्यादा क्यों हो और क्यों उसे ज्यादा इज्जत मिले। मंत्री ने कहा कि मातृभाषा को अंग्रेजी से कमतर नहीं माना जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दिया और कहा कि न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए।
हाईकोर्ट में क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की जरूरत
कानून मंत्री किरण रिजीजू जयपुर में विधिक सेवा प्राधिकरणों (Legal Services Authorities) के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट में तो बहस से लेकर फैसले सब अंग्रेजी में होते हैं। लेकिन हाईकोर्ट को लेकर हमारी सोच है कि उनमें आगे जाकर स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की जरूरत है। कानून मंत्री ने आगे कहा कि कई वकील हैं जो कानून जानते हैं, लेकिन अंग्रेजी में उसे सही ढंग से पेश नहीं कर पाते। तो अदालत में अगर आम भाषा का उपयोग होने लगे तो इससे कई समस्याएं हल हो सकती हैं। अगर कोई वकील अंग्रेजी बोलता है, तो उसकी फीस ज्यादा होती है, ऐसा क्यों होना चाहिए?
अंग्रेजी ज्यादा बोलने वाले वकीलों पर क्या बोले रिजीजू
किरण रिजीजू ने कहा कि अगर मुझे अंग्रेजी नहीं बोलनी आती और मुझे मातृभाषा में बोलना सहज लगता है तो मुझे अपनी मातृभाषा में बोलने की आजादी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, "मैं बिलकुल इस पक्ष में नहीं हूं कि जो वकील अंग्रेजी ज्यादा बोलता है, उसे ज्यादा इज्जत मिले, उसको ज्यादा फीस मिले, उसे ज्यादा केस मिले, मैं इसके खिलाफ हूं। अपनी मातृभाषा को किसी भी रूप में अंग्रेजी से कमतर नहीं मानना चाहिए।" मंत्री ने अपना लगभग पूरा संबोधन हिंदी में दिया। उन्होंने देश की अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए इसे चुनौती बताया।
"अदालतों में लंबित मामलों की संख्या होने वाली है पांच करोड़"
कानून मंत्री रिजीजू ने कहा, "आजादी के अमृत महोत्सव काल में देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग पांच करोड़ पहुंचने वाली है। न्यायपालिका और सरकार के बीच तालमेल होना चाहिए और आवश्यकता अनुसार विधायिका को अपनी भूमिका निभानी चाहिए, ताकि इस संख्या को कम करने के लिए हर संभव कदम उठाए जा सके।"
वकीलों की भारी भरकम फीस पर बोले कानून मंत्री
इस दौरान मंत्री ने कुछ वकीलों की भारी भरकम फीस को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "जो लोग अमीर होते हैं, वे अच्छा वकील कर लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं, जिनकी फीस आम आदमी नहीं दे सकता है। एक-एक केस में हाजिर होने के अगर 10 या 15 लाख रुपये लेंगे, तो आम आदमी कहां से लाएगा?" उन्होंने कहा, "कोई भी अदालत कुछ विशिष्ट लोगों के लिए नहीं होनी चाहिए। आम आदमी को अदालत से दूर रखने वाला हर कारण हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है। मैं हमेशा मानता हूं कि न्याय का द्वार सबके लिए हमेशा व बराबर खुला रहना चाहिए।" रिजीजू ने कहा कि सरकार ने अब तक 1486 अप्रासंगिक कानूनों को रद्द किया है, साथ ही ऐसे और 1824 कानून चिह्नित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार संसद के आगामी सत्र में ऐसे लगभग 71 कानूनों को हटाने को प्रतिबद्ध है।