Highlights
- शास्त्रीजी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जिले में हुआ था
- वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे
- वे लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे
Lal Bahadur Shastri: लाल बहादुर शास्त्री का नाम लेते ही सादगी और सरलता की प्रतिमूर्ति का चित्रण हो जाता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देश के प्रधानमंत्री होने के बावजूद कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि वे इतने सादगी और सरलता से अपनी जिंदगी गुजारते होंगे। वो देश के प्रधानमंत्री थे, इसके बावजूद उन्होंने सरकार से कर्जा ले रखा था, जोकि उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने चुकाया। इस देश और दुनिया में राजनेताओं की सादगी की जब-जब मिसाल दी जाएगी, तब-तब शास्त्री जी नाम सबसे पहले लिया जायेगा।
वैसे तो उनकी पूरी जिंदगी ही रोचकता और किस्से-कहानियों से भरी हुई है। लेकिन आज उनकी जयंती पर कुछ ऐसे किस्से हैं जो शायद आपने सुने हों। आज पढ़िए उनके जीवन से जुड़े हुए दो किस्से-
भाई, दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ी हो, उनमें से दिखाओ मुझे वही चाहिए
एक बार शास्त्री जी को अपनी पत्नी ललिता शास्त्री के लिए साड़ी खरीदनी थी। वे एक दुकान में गए। दुकान का मालिक शास्त्रीजी को देख बेहद खुश हुआ। उसने उनके आने को अपना सौभाग्य माना और स्वागत-सत्कार किया। शास्त्री जी ने कहा, वे जल्दी में हैं और उन्हें चार-पांच साड़ियां चाहिए। दुकान का मैनेजर शास्त्री जी को एक से बढ़ कर एक साडियां दिखाने लगा, साडियां काफी कीमती और महंगी थी।
उनकी कीमत देखकर शास्त्री जी बोले- भाई, मुझे इतनी महंगी साडियां नही चाहिए कम कीमत वाली दिखाओ। मैनेजर ने कहा सर, आप इन्हें अपना ही समझिए, दाम की तो कोई बात ही नही है यह तो हमारा सौभाग्य है कि आप पधारे। शास्त्रीजी उसका आशय समझ गए उन्होंने कहा- मैं तो दाम देकर ही लूंगा, मैं जो तुमसे कह रहा हूं उस पर ध्यान दो और कम कीमत की साडियां ही दिखाओ और कीमत बताते जाओ। तब मैनेजर ने थोड़ी सस्ती साडियां दिखानी शुरू की। शास्त्रीजी ने कहा ये भी मेरे लिए महंगी ही है, और कम कीमत की दिखाओ।
मैनेजर एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच कर रहा था
मैनेजर एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच कर रहा था। शास्त्रीजी मैनेजर को भांप गए। उन्होंने कहा- दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ी हो, उनमें से दिखाओ मुझे वही चाहिए। आखिरकार मैनेजर ने उनके मन मुताबिक साडियां निकाली शास्त्रीजी ने कुछ उन सबसे सस्ती साड़ियों में से कुछ चुनी और कीमत अदा कर चले गए।
जब शास्त्री जी ने निकलवा दिया अपने डिब्बे से कूलर
यह उस समय की बात है जब शास्त्री जी नेहरु सरकार में रेल मंत्री हुआ करते थे। उन्हें किसी सरकारी कार्य की वजह से अचानक मुंबई जाना था। यात्रा के लिए उन्होंने रेल मार्ग को चुना, रेल अधिकारियों ने उनके सफर के लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा तैयार किया। रेलगाड़ी दिल्ली से रवाना हुई। जब गाड़ी चलने लगी तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि डब्बे में सामान्य पंखों के अलावा कुछ और भी इंतजाम किया गया है। क्योंकि बाहर गर्मी का मौसम था और भयानक लू चल रही थी।
क्या और लोगों को गर्मी नहीं लगती होगी?
उन्होंने इसके बारे में अपने निजी सहयोगी कैलाश बाबू से पूछा। उन्होंने बताया कि, सर इस डिब्बे में आपकी सुविधा और आराम के लिए कूलर लगवाया गया है। शास्त्रीजी ने तिरछी निगाह से कैलाश बाबू की तरफ देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कूलर लगवाया गया है? वो भी बिना मुझे बताए? क्या और लोगों को गर्मी नहीं लगती होगी?
मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवाया गया
शास्त्रीजी ने आगे कहा कि लोगों का सेवक होने के कायदे से तो मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, किन्तु यदि ऐसा नहीं हो सकता है तो जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने कहा आगे जिस भी जगह पर गाड़ी रुके सबसे पहले मेरी बोगी से इस कूलर को निकलवाया जाए।जिसके बाद मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवाया गया। कूलर निकलवाने के बाद ही ट्रेन आगे बढ़ी।