Wednesday, November 20, 2024
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Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: आज ही के दिन हुआ था लाल बहादुर शास्त्री का निधन, रहस्य बनकर रह गई थी मौत

पंडित नेहरू के निधन के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने शपथ ली। कुछ महीनों बाद पाकिस्तान से जंग हो गया। शास्त्री इसी जंग के समझौते के कारण ताशकंद गए थे।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Updated on: January 11, 2023 8:36 IST
लाल बहादुर शास्त्री- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO लाल बहादुर शास्त्री

नई दिल्ली: देश के दूसरे कद्दावर पीएम लाल बहादुर शास्त्री साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति थे। जितनी सादगी उनके व्यक्तित्व में थी उतनी ही उनकी भाषा भी मीठी थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू के देहांत के बाद शास्त्री जी करीब डेढ़ साल भारत के प्रधानमत्री रहे। उसके बाद उनकी रहस्यमयी तरीकों से मौत हो गई। आसान नहीं थी पंडित नेहरू के बनाए गए छवि को मैच करना। नेहरू का कद इतना बड़ा था कि उसे हर कोई उस कद को मैच कर सके। लेकिन लाल बहादुर शास्त्री बखूबी अपनी काबिलियत को दुनिया के सामने साबित किया। यह अलग बात है कि पीएम रहते ही उनकी मौत हो गई और ये हमारे देश का दुर्भाग्य था। 11 जनवरी यानी आज ही दिन उज़बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में उनकी मौत हुई थी। उनकी रहस्यमयी मौत को लेकर दो कहानियां हैं। एक कहा जाता है कि उन्हें हार्ट अटैक आया था और दूसरा कि उन्हें जहर दिया गया था। आइए जानते हैं कि उस दिन शास्त्री जी के साथ क्या क्या घटनाएं घटी थी। 

1965 की जंग

जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। बता दें कि शास्त्री लगभग 18 महीने ही देश के प्रधानमंत्री रहे। शास्त्री जी के ही कार्यकाल के दौरान भारत ने 1965 की जंग जीती थी। उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे। नेहरू के इंतकाल के बाद पाकिस्तान ने 1964 में शास्त्री जी के साथ एक बैठक की। बैठक के बाद शास्त्री से अयूब खान की मुलाकात भी हुई थी। इस मुलाकात में अयूब खान ने शास्त्री की सादगी देख सोचा कि हम कश्मीर को जबरन हासिल कर सकते हैं। यहीं अयूब खान गलती कर गए और कश्मीर हथियाने अगस्त 1965 में घुसपैठियों को भेज दिया। शास्त्री के सादगी से धोखा खाए अयूब को यह जंग भारी पड़ गया। जब पाकिस्तानी आर्मी ने चंबा सेक्टर पर हमला बोल दिया तो जवाहर लाल शास्त्री ने भी पंजाब में भारतीय सेना से मोर्चा खुलावा दिया। नतीजा ये हुआ कि भारतीय सेना लाहौर कूच कर गई और सैकड़ों एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया। अब अयूब खान को गलती का एहसास हुआ। फिर UN के पहल पर 22 सिंतबर को जंग रूका।

ताशकंद की कहानी

इसी के बाद ताशकंद की कहानी शुरू होती है। 1965 की इस जंग के बाद भारत और पाकिस्तान की कई दफा बातचीत को बाद एक दिन और जगह चुना गया ताशकंद। सोवियत संघ के तत्‍कालीन पीएम एलेक्‍सेई कोजिगिन ने समझौते की पेशकश की थी। इस समझौते के लिए ताशकंद में 10 जनवरी 1966 का दिन तय हुआ। इस समझौते के तहत 25 फरवरी 1966 तक दोनों देशों को अपनी-अपनी सेनाएं बार्डर से पीछे हटानी थीं। समझौते पर साइन करने के बाद 11 जनवरी की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में लाल बहादुर शास्‍त्री का निधन हो गया।

मौत से जुड़े राज

इस समझौते के बाद शास्‍त्री दबाव में थे। जानकार बताते हैं कि पाकिस्‍तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस देने की वजह से देश में शास्त्री की आलोचना हो रही थी। तब सीनियर जर्नलिस्ट कुलदीप नैयर उनके मीडिया सलाहकार थे। नैयर ने ही शास्‍त्री के मौत की खबर उनके परिजनों को बताई थी। बीबीसी को दिए इंटरव्‍यू में उन्‍होंने कहा था कि हाजी पीर और ठिथवाल को पाकिस्‍तान को दिए जाने से शास्‍त्री की पत्‍नी खासी नाराज थीं। यहां तक उन्‍होंने शास्‍त्री से फोन पर बात करने से भी मना कर दिया था। इस बात से शास्‍त्री को बहुत चोट पहुंची थी। अगले दिन जब शास्‍त्री के मौत की खबर मिली तो पूरे देश के साथ वह भी हैरान रह गई थीं। कई लोग जहां दावा करते हैं कि शास्‍त्री जी को जहर देकर मारा गया। तो, वहीं कुछ लोग कहते हैं उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई।

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