Highlights
- 1987 में एमजीआर की मृत्यु के बाद अन्ना डीएमके का नेतृत्व संभाला
- आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में 2014 में जेल गईं
- 2014 की ‘मोदी लहर’ में 39 में से 37 सीटें जीती थीं
Birth Anniversary: जयललिता...वो राजनेता जिसने दक्षिण भारत की राजनीति की नई इबारत लिखी। फिल्मी परदे पर प्यार, मोहब्बत के गीतों में अभिनय करने वाली यह शख्सियत जब राजनीति में आई, तो ये प्यार और मोहब्बत उन गरीबों पर भी खूब लुटाई, जिन्होंने उन्हें ‘अम्मा’ दर्जा दे दिया। जयललिता ने राज्य में ‘अम्मा’ ब्रांड खड़ा किया और गरीबों के लिए अम्मा कैंटीन से लेकर अम्मा फार्मेसी तक गरीबों के लिए सबकुछ किया। और...शायद यही कारण था कि गरीबों के दिल में जगह बनाने वाली जयललिता उनकी दुआएं पाकर चुनाव में एकतरफा जीत हासिल करने में कामयाब भी रहीं, और फिल्मों की यह अभिनेत्री तमिलनाडु की सत्ता की सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री बनीं। उनके गुजर जाने के बाद भी उनकी लोकप्रियता आज भी कम नहीं हुई है और शायद कभी कम नहीं होगी। फिल्मी परदे से राजनीति की रपटीली राह का सफर कैसा रहा, उनके जीवन में क्या उतार—चढ़ाव रहे, आज 24 फरवरी को उनके 74वें जन्मदिवस पर जानेंगे उनके जीवन के खास पहलुओं के बारे में।
एमजी रामचंद्रन के साथ 28 हिट फिल्में दीं, वही राजनीति में लेकर आए
24 फरवरी 1948 को जन्मी जयललिता थीं तो अमीर परिवार से, लेकिन परिस्थितियोंवश वे फिल्मों में आईं। दरअसल, एमजी रामचंद्रन दक्षिण भारतीय फिल्मों के बड़े स्टार थे। जल्दी ही वह उनकी जिंदगी में आ गए। एमजीआर के साथ जयललिता ने 100 से भी अधिक फिल्मों में काम किया था। दोनों ने साथ में 28 हिट फिल्में दीं। एमजी बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने और एआईडीएमके सियासी दल के मुखिया भी। दिसंबर 1987 में एमजीआर की मृत्यु के तीन वर्ष बाद उन्होंने एमजीआर की आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का नेतृत्व संभाला और 1991 में गरीबों का समर्थन हासिल कर चुनाव जीता। अगले दो दशकों में जयललिता ने अपने गुरु से भी आगे जाकर लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने राज्य में ‘अम्मा’ ब्रांड खड़ा किया और गरीबों के लिए कई कार्यक्रम चलाए। इनमें अम्मा कैंटीन, अम्मा सब्जियां, अम्मा पेयजल, अम्मा सीमेंट, अम्मा फार्मेसी और जीवन की हर गतिविधि से संबंधित चीजें शामिल थीं। 70 एमएम के पर्दे पर उन्होंने जितना जलवा बिखेरा, राजनीति में भी उसे कायम रखा।
मोदी लहर में भी एकतरफा जीती थीं जयललिता
जयललिता के साथी और विरोधी दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि वह देश की एक ऐसी कद्दावर नेता थीं जिन पर 2014 की ‘मोदी लहर’ का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा और तमिलनाडु लोकसभा की 39 सीटों में से 37 सीटें एआईएडीएमके को दिलाईं। इससे पहले अटलजी की सरकार में भी एनडीए सरकार का एक रिमोट कंट्रोल उनके हाथों में ही था।
सोने-चांदी का लालच महंगा पड़ा, महत्वाकांक्षा ने जेल पहुंचाया
-उनके राजनीतिक कैरियर को अदालतों में आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के कारण कई बार कठिनाई झेलना पड़ी। इसी मामले में वर्ष 2014 में उन्हें जेल भी हुई। मामले की जड़ वर्ष 1996 से जुड़ी हुई थी जब उनके द्वारा पाले गए पुत्र के विवाह में अनाप-शनाप पैसा खर्च किया गया।
उस वक्त वह लोगों के गुस्से का शिकार हुईं और चुनाव भी हारीं।
-वर्ष 1997 में छापे के दौरान पुलिस ने उनके घर से 28 किलो सोना, 750 जोड़ी जूते और 10,000 से अधिक कीमती साड़ियां बरामद की थीं।
-इससे अलावा उन पर 1000 एकड़ की जमीन के दो मामलों से संबंधित शिकायतें भी की गईं जिनके बारे में आरोप थे कि ये उन्होंने 1991-96 की बीच मुख्यमंत्री रहने के दौरान उस वक्त हासिल की जब वह मात्र 1 रुपया वेतन लेती थीं।