नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल में ही चुनावी बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया। साथ ही इसे असंवैधानिक भी बताया। साथ ही अदालत ने स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड का ब्योरा पेश करने का आदेश भी दिया। इस स्कीम के रद्द होने से राजनीति दलों पर बड़ा असर पड़ सकता है। जनता को यह बताना पड़ेगा कि उन्हें चंदा किसने और कितना दिया है। पहले किसी को पता तक नहीं चलता था कि किस पार्टी को कौन और कितना चंदा दे रहा है। क्या चंदे के बदले उसने राजनीतिक पार्टी या उसकी सरकार से कोई फायदा तो नहीं ले रहा। कोर्ट के फैसले के बाद भविष्य में राजनीतिक दलों को दिए जा रहे चंदा की जानकारी जनता को मिल सकती है।
जनता ने दी अपनी राय
चुनावी बॉन्ड स्कीम को रद्द होने से राजनीति दलों पर कितना असर पड़ेगा। इस संबंध में हमने जनता की राय जाननी चाही। इंडिया टीवी के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर हमने जनता से पूछा था कि 'लोकसभा चुनावों से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाना क्या सभी पार्टियों के लिए बड़ा झटका है?'। हमने जनता के सामने 'हां', 'नहीं' और 'कह नहीं सकते' के विकल्प दिए थे। पोल पर कुल 14380 लोगों ने अपनी राय हमसे शेयर की।
क्या सोचती है जनता
इंडिया टीवी के पोल पर 72 प्रतिशत लोगों ने माना कि चुनावी बॉन्ड स्कीम रद्द होने से राजनीतिक दलों को झटका लगेगा। जबकि 24 फीसदी लोगों ने कहा कि इसका असर नहीं होगा। वहीं, चार प्रतिशत ऐसे भी लोग थे जिन्होंने कहा कि कह नहीं सकते कि राजनीतिक दलों के लिए यह झटका है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को दिए ऐतिहासिक फैसले में राजनीतिक दलों का वित्तपोषण करने के लिए शुरू चुनावी बॉन्ड योजना रद्द कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।
चुनावी बॉन्ड है क्या?
चुनावी बॉन्ड वित्तीय तरीका है जिसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार वित्तमंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी। चुनावी बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार चुनावी बॉन्ड के तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार इसमें बॉन्ड के खरीदार या भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है, स्वामित्व की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाती और इसमें धारक (यानी राजनीतिक दल) को इसका मालिक माना जाता है।