Highlights
- सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा को रिहा करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई
- माओवादियों से साईबाबा का संबंध होने का है गंभीर आरोप
- दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा की बढ़ी मुश्किलें
Supreme Court News:सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने साईबाबा की मुश्किल बढ़ा दी है। इससे अभी साईबाबा को जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ेगा। एक मामले में साईबाबा की ओर से दायर याचिका पर बाम्बे हाईकोर्ट ने साईबाबा पर लगे आरोपों के संबंध में पर्याप्त सुबूत नहीं होने पर उनके समेत अन्य को भी बरी कर दिया था। मगर मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो देश की शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को बदल दिया। इससे साईबाबा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि साईबाबा ने ऐसा क्या कर दिया कि ये मामला कोर्ट तक पहुंच गया तो आइए आपको बताते हैं कि पूरा मामला क्या है।
दरअसल यह मामला शिरडी वाले साईंबाबा का नहीं है, बल्कि एक प्रोफेसर से जुड़ा है, जिनका नाम जीएन साईबाबा है। माओवादियों से संबंध होने के आरोप में साईबाबा जेल की सजा काट रहे हैं। इस मामले में शुक्रवार को हाईकोर्ट ने साईबाबा समेत अन्य को बरी कर दिया था। मगर अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पलट दिया है। इससे साईबाबा को अभी जेल की सलाखों के पीछे ही रहना होगा।
सु्प्रीम कोर्ट ने रद्द किया हाईकोर्ट का आदेश
उच्चतम न्यायालय ने माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को शनिवार को निलंबित कर दिया। उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को साईबाबा तथा अन्य को बरी किया था। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने साईबाबा के इस अनुरोध को भी खारिज कर दिया कि उनकी शारीरिक अक्षमता और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उन्हें घर में नजरबंद किया जाए। पीठ ने गैर-कामकाजी दिन भी इस मामले की सुनवाई की।
कोर्ट ने आरोपियों की रिहाई पर लगाई रोक
शीर्ष अदालत की पीठ ने मामले में साईबाबा समेत सभी आरोपियों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने साईबाबा, अन्य से उन्हें बरी करने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर जवाब मांगा है। बंबई उच्च न्यायालय ने माओवादियों से कथित जुड़ाव के मामले में डीयू के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को गिरफ्तारी के करीब आठ साल बाद शुक्रवार को बरी कर दिया था।
अदालत ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध’’ था। साईबाबा (52) शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेते हैं।