तिरुवनंतपुरम: केरल के थोडुपुझा के न्यू मैन कॉलेज में मलयालम भाषा पढ़ाने वाले प्रोफेसर टी.जे. जोसेफ एक समय आराम की जिंदगी गुजार रहे थे। यह सब एक सुबह बदल गया जब वह अपने परिवार के साथ 4 जुलाई, 2010 को अपने गृहनगर मुवत्तुपुझा में पास के चर्च में पवित्र रविवार की सेवाओं में भाग लेने के बाद घर लौट रहे थे। एक ओमिनी वैन में सवार 8 लोगों ने उन्हें रास्ते में रोका, कार से खींचकर बाहर निकाला और उसकी दाहिनी हथेली काट दी।
प्रोफेसर पर क्यों किया गया था यह हमला?
दरअसल, प्रोफेसर ने न्यूमैन कॉलेज के बी.कॉम के द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए एक प्रश्न पत्र निर्धारित किया था। इसको लेकर इस्लामवादियों ने दावा किया था कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। कोट्टायम जिले के एराट्टुपेटा में एक अवैध अदालत के कथित फैसले के बाद पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं ने पूरे केरल को झकझोर देने वाले इस कायरतापूर्ण कृत्य को अंजाम दिया था। जोसेफ की मुसीबतों का अंत यहीं नहीं हुआ, उन्हें ईसाई मैनेजमेंट ने कॉलेज से बर्खास्त कर दिया और उनकी पत्नी सलोमी ने 2014 में आत्महत्या कर ली।
इन घटनाओं ने जोसेफ को बुरी तरह तोड़ दिया। अपनी आत्मकथा 'अट्टपोकथा ओरमकल' (न भूलने वाली यादें) में उन्होंने अपने जीवन के पूरे दर्द को उड़ेल दिया और इस किताब ने केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता। इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। पुस्तक का नाम 'ए थाउजेंड कट्स: एन इनोसेंट क्वेश्चन एंड डेडली आंसर' है। केंद्र सरकार द्वारा PFI पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगाने के बाद केरल पुलिस ने इसके दफ्तरों को सील कर दिया और सभी बड़े नेताओं के सलाखों के पीछे कर दिया। जोसेफ ने एक छोटे से इंटरव्यू में अपने दिल की बात कुछ यूं कही:
सवाल: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर भारत सरकार के प्रतिबंध के बारे में आपकी क्या राय है?
जोसफ: मैं 4 जुलाई 2010 को उनकी हरकतों का शिकार हुआ था। आप सभी इस बारे में जानते हैं और जिस पर ये गुजरा हो वह इस मामले में क्या बोलेगा? यदि मैं एक सामान्य नागरिक होता, तो इस पर मेरा स्पष्ट दृष्टिकोण होता। मेरे पास भारत सरकार द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के बारे में टिप्पणी करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। कई बार तो चुप रहना ही बेहतर होता है और पॉपुलर फ्रंट के हमलों के शिकार हुए कई लोग अभी जिंदा भी नहीं हैं। उन लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए मैं भी नहीं बोल रहा हूं।’ वे नहीं बोल सकते और इसी तरह मैं भी चुप हूं। हालांकि यह भारत सरकार का एक सियासी फैसला है, कुछ-कुछ राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ और इस पर नेताओं, संगठनों और अन्य लोगों का बोलना ही बेहतर है।
सवाल: पॉपुलर फ्रंट पर प्रतिबंध लगाने के बाद, केरल और देश के बाकी हिस्सों में एक इकोसिस्टम विकसित हो रहा है कि PFI और RSS एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और RSS पर भी बैन लगना चाहिए। आप इसपर क्या कहेंगे?
जोसेफ: आप RSS जैसे राष्ट्रवादी संगठन की तुलना पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से कैसे कर सकते हैं? RSS एक राष्ट्रवादी संगठन है, जो देश के प्रति अगाध प्रेम रखता है। वही हमारी संस्कृति और हमारे महान राष्ट्र को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक बनाने की भी इच्छा रखता है। पॉपुलर फ्रंट का नजरिया अलग है और हर कोई जानता है कि उन्होंने यहां क्या किया है। बैन के दौरान दी गई चार्जशीट खुद बता देती है कि वे क्या कर रहे थे।
सवाल: आप भारत में नहीं थे और मेरी जानकारी में आप आयरलैंड में थे। वहां क्या कार्यक्रम था?
जोसफ: मैं अपनी बेटी के साथ आयरलैंड में था और कुछ दिन पहले वापस आया। मैंने आयरलैंड में 10 से ज्यादा छोटी सभाओं को संबोधित किया था। दरअसल यह आयरलैंड में केरलवासियों का जमावड़ा था। वापस आते समय मैंने यूनाइटेड किंगडम में भी 5 सभाओं में भाग लिया।
सवाल: क्या आपको लगता है कि PFI पर प्रतिबंध से ऐसे लोगों के चरमपंथी स्वभाव में कमी आएगी?
जोसेफ: भारत सरकार ने उस संगठन को विशिष्ट कारणों से प्रतिबंधित कर दिया है जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हो सकते हैं। अगर सरकार और अन्य एजेंसियां ऐसे लोगों की गतिविधियों पर उचित नजर रखती हैं, तो फिर से संगठित होने की संभावना बहुत कम है।