Karnataka News: कर्नाटक में बेलगावी जिले के एक गांव में कोई भी मुस्लिम परिवार नहीं होने के बावजूद इस साल भी मंगलवार को रस्मी तौर पर मुहर्रम मनाया गया और स्थानीय हिंदुओं ने इसका नेतृत्व किया। यह परंपरा सालों से चलती आ रही है। उत्तरी कर्नाटक के कई गांवों में भी यह परंपरा है जहां मुस्लिम और हिंदू मिलकर रस्मी तौर पर मुहर्रम मनाते हैं। इसे धार्मिक सद्भावना और भाइचारे के तौर पर देखा जाता है।
मुस्लिम परिवार नहीं होने के बावजूद कई वर्षों से परंपरा कायम
स्थानीय निवासियों के मुताबिक, बेलगावी जिले के सौनदत्ती तालुक के हिरेबिदानपुर गांव जैसे कई गांव हैं जहां कोई मुस्लिम परिवार नहीं होने के बावजूद कई वर्षों से इस परंपरा को कायम रखा गया है। यहां से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित करीब तीन हजार की आबादी वाले हिरेबिदानपुर गांव में ‘फकीरेश्वर स्वामी’ की एक दरगाह है जिसे ग्रामीण पवित्र मानते हैं। एक हिंदू शख्स अपनी धार्मिक परंपराओं के मुताबिक, हर दिन दरगाह पर प्रार्थना करता है।
दरगाह पर हर दिन प्रार्थना करने वाले यल्लाप्पा नाइकर के परिवार के एक सदस्य ने बताया, “ अन्य दिनों में हम (उपासना) करते हैं जबकि मोहर्रम पर नज़दीकी बेविनकत्ती गांव के एक मौलवी इस्लामी रिवायतों के मुताबिक, दुआ करते हैं और मज़हबी रस्में अदा करते हैं।” गांव निवासी उमेश्वर मरगल ने पीटीआई-भाषा से कहा कि फकीरेश्वर दरगाह में धार्मिक चिन्ह ‘पंजा’ स्थापित करना और पांच दिन तक मोहर्रम मनाना वर्षों से चला आ रहा है।
इसी महीने हुई थी पैगंबर इमाम हुसैन की मौत
बता दें कि मुहर्रम को रमजान के बाद इस्लामिक कैलेंडर का दूसरा सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने के पहले दिन को हिजरी या अरबी नव वर्ष भी कहा जाता है। मुहर्रम का मुस्लिम समुदायों में बहुत महत्व है और इसे शोक और अत्यधिक शोक की अवधि के रूप में मनाया जाता है। इस साल मुहर्रम 2022 का महीना शुरू हो गया है भारत रविवार, 31 जुलाई को। ऐसा कहा जाता है कि कर्बला की लड़ाई में पैगंबर इमाम हुसैन की मौत इसी महीने हुई थी। उनकी मृत्यु को मुर्राह, शोक और शोक की अवधि के रूप में मनाया जाता है।