कर्नाटक की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को विपक्षी पार्टियों की ओर से मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। खासकर वक्फ भूमि और कोटा विवादों के बाद सिद्धारमैया सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह मुस्लिमों के प्रति अपनी नीतियों में पक्षपाती है। इसी बीच, सिद्धारमैया सरकार के इस कदम को राजनीतिक रूप से 'डैमेज कंट्रोल' की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। सिद्धारमैया सरकार ने राज्य के हर तीर्थयात्री जो वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जम्मू-कश्मीर जाएंगे, उन्हें 5,000 रुपये की वित्तीय सहायता देने का फैसला किया है।
राज्य के हिंदू मंदिरों के संरक्षण का फैसला
इतना ही नहीं, कर्नाटक सरकार ने राज्य संचालित हिंदू मंदिरों की संपत्तियों की सुरक्षा करने, किसी भी अतिक्रमण को हटाने और उसके रख-रखाव के लिए वत्तीय सहायता प्रदान करने का भी फैसला लिया है। सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि राज्य-प्रबंधित मंदिरों में विभिन्न मुझराई योजनाओं (धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदान) के बारे में साइनबोर्ड लगाए जाएंगे। इसके अलावा मंदिरों में किए जाने वाले नकद दान को केवल उन्हीं मंदिरों के लिए इस्तेमाल करने का स्पष्ट घोषणा बोर्ड भी स्थापित किया जाएगा।
पहले से जारी हैं अन्य तीर्थ यात्रा योजनाएं
ये निर्णय कर्नाटका के मुझराई मंत्री रामलिंगा रेड्डी की अध्यक्षता में हुई राज्या धर्मिका परिषद की एक बैठक में लिए गए। कर्नाटका सरकार पहले ही काशी, गया और दक्षिण भारत के तीर्थ स्थलों की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती आ रही है।
मुसलमानों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव?
इसके अलावा सूत्रों के हवाले से खबर है कि राज्य सरकार ने सार्वजनिक निर्माण कार्यों में मुसलमानों को आरक्षण देने का प्रस्ताव भी रखा है। यह आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों को दिए गए आरक्षण के समान होगा। सूत्रों का कहना है कि यह प्रस्ताव एक करोड़ रुपये तक के निर्माण कार्यों के लिए है।
इससे पहले राज्य सरकार ने सरकार के ठेकों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कुछ पिछड़ी जातियों को 24 प्रतिशत कोटा दिया था। कर्नाटका सरकार के इन कदमों से राज्य में धार्मिक तटस्थता की दिशा में एक राजनीतिक संदेश भेजने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि विपक्ष इसे वोटबैंक की राजनीति के रूप में देख रहा है।
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