Highlights
- हिजाब और खिमार दोनों तरीकों से महिलाओं को शरीर ढकने के लिए कहा गया है
- मोहम्मद साहब के बाद की कई पीढ़ियों में हिजाब अनिवार्य नहीं था
नयी दिल्ली: कर्नाटक में हिजाब का विवाद इतना बढ़ गया कि राज्य सरकार को स्कूल और कॉलेजों को बंद करने का ऐलान करना पड़ा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने राज्य के सभी नागरिकों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की है। हिजाब पहनी लड़कियों को कॉलेज में जाने से रोका गया तो इन लड़कियों ने कॉलेज के बाहर प्रदर्शन भी किया। इस बीच यह मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि पहले मामले की सुनवाई हाईकोर्ट को करने दें। फिलहाल यह मामला कोर्ट के पास है लेकिन हम यहां जानने की कोशिश करते हैं कि कुरान में हिजाब को लेकर क्या कहा गया है।
हिजाब की अवधारणा बहुत पुरानी
कुरान में हिजाब का उल्लेख नहीं बल्कि खिमार का उल्लेख किया गया है। दरअसल हिजाब की अवधारणा बहुत पुरानी है। इस्लाम में महिलाओं के शरीर को ढकने की अवराधारणा छठी शताब्दी की है। हिजाब और खिमार दोनों तरीकों से महिलाओं को अपना शरीर ढकने के लिए कहा गया है। हालांकि इन दोनों तरीकों से शरीर को ढकने के तरीके में थोड़ा सा अंतर है। सूरह अल-अहजाब की आयत 59 में कहा गया है-ऐ पैगम्बर, अपनी पत्नियों, बेटियों और ईमान वालों की महिलाओं से कहा कि वे अपने बाहरी वस्त्रों को अपने ऊपर ले लें। यह ज्यादा उपयुक्त है। न उन्हें पहचाना जाएगा और न उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाएगा। अल्लाह सदैव क्षमाशील और दयावान है।
पर्दा प्रथा पहले से मौजूद
इतिहास पर नजर डालें तो साक्ष्यों से यह पता चलता है कि इस्लाम के अखिरी पैगंबर द्वारा अरब में पर्दा प्रथा की शुरुआत नहीं हुई ती बल्कि यह पहले से ही मौजूद था। पर्दा प्रथा उच्च सामाजिक स्थिति से जुड़ी थी। कुरान के सूरा 33:53 जिक्र किया गया है-और जब तुम (उसकी पत्नियों) से कुछ मांगों तो उन्हें एक विभाजन के पीछे से पूछो। यह तुम्हारे और उसके दिलों के लिए शुद्ध है। 627 सीई में इस्लामी समुदायों में घूंघटदान करने के लिए एक शब्द, दरबत अल-हिजाब का इस्तेमाल किया गया था।
हिजाब और उसकी परंपराओं का प्रसार
इस्लाम में हिजाब और उसकी परंपराओं के प्रसार पर गौर करने पर यह पाया गया कि इस्लाम ने मध्य पूर्व अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों और अरब सागर के आसपास विभिन्न समाजों के बीच अपना प्रचार किया। इस प्रचार के दौरान स्थानी रीति रिवाजों और पर्दा को भी शामिल किया गया। हालांकि मोहम्मद साहब के बाद की कई पीढ़ियों में घूंघट न तो अनिवार्य था और न ही इसे व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था। लेकिन पैगंबर के समतावादी सुधारों के कारण समाज में खोए हुए प्रभुत्व को वापस पाने के लिए कानून विद्वानों ने अपने धार्मिक और राजनीतिक अधिकार का उपयोग करना शुरू कर दिया।
ईरान में हुआ था हिजाब का विरोध
अरब में उच्च वर्ग की महिलाओं ने हिजाब को जल्दी से अपना लिया जबकि गरीबों में इसे अपनाने में देरी हुई। क्योंकि ज्यादातर गरीब महिलाओं खेतों में काम करती थी और वहां काम के दौरान हिजाब से परेशानियां होती थीं। धीरे-धीरे हिजाब एक प्रथा के तौर पर समाज में व्याप्त हो गया। बहुत बाद में 1979 में ईरान में यह कानून बना कि महिलाओं को घर से निकलने पर हिजाब पहनना होगा, तो इसका वहां व्यापक विरोध हुआ था।