पूरा देश आज कारगिल विजय दिवस मना रहा है। कारगिल विजय दिवस के आज 25 साल पूरे हो गए हैं। 26 जुलाई को कारगिल पर भारतीय सेना के जवानों ने जिस साहस और पराक्रम के साथ तिरंगा लहराया वह आज भी लोगों के जहन में समाया हुआ है। परिस्थितियों और हालातों से लड़ते हुए सेना के जवानों ने जिस तरह से कारगिल की सबसे ऊंची चोटी पर तिंरगा फहराया उसे आज पूरे देश सलाम कर रहा है। इस युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया था। आज कारगिल विजय दिवस के मौके पर रिटायर्ड सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने युद्ध से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से सुनाए।
तोलोलिंग पर हासिल की जीत
रिटायर्ड सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने उस दिन को याद करते हुए बताया कि 'हमें आदेश मिला कि द्रास पहुंचना है, उस समय मैं शादी करने गया था। जब मैं वापस पहुंचा तो उस समय हमारी पलटन द्रास सेक्टर के तोलोलिंग टॉप पर थी। वहां दुश्मन ऊपर था, लेकिन कमांडिंग ऑफिसर कर्नल खुशाल सिंह ने अच्छी लीडरशिप के साथ अपनी पलटन को चढ़ने का आदेश दिया। 22 दिन तक हम लड़ते रहे और पहाड़ी पर चढ़ते रहे। इस दौरान हमने 2 ऑफिसर, 2 जूनियर कमीशन ऑफिसर और 21 जवानों को खोया, तब जाकर 12 जून 1999 को हिंदुस्तान की सेना ने एक बार फिर तोलोलिंग वापस से प्राप्त किया था। हालांकि इस जीत के बाद पलटन का मोराल काफी हाई था, इसे देखते हुए हायर कमांडर ने टाइगर हिल को कैप्चर करने के लिए चुना जो कि द्रास की सबसे ऊंची चोटी थी।'
टाइगर हिल पर शुरू हुई चढ़ाई
टाइगर हिल पर चढ़ाई के बारे में बताते हुए योगेंद्र सिंह यादव ने कहा कि 'टाइगर हिल को कैप्चर करने के लिए जवानों को चुना गया। इस दौरान सिर्फ रात में चढ़ाई की जाती थी, दिन में पहाड़ियों के बीच छिपकर रहना पड़ता था। उस समय रात का तापमान माइनस 20 तक चला जाता था और चेहरे से खून टपकता था। उस रात का मंजर आज भी आंखों के सामने रहता है। उस दिन 90 डिग्री की सीधी चट्टान पर जैसे ही चढ़ना शुरू किया तभी दुश्मनों ने फायरिंग करनी शुरू कर दी। इसके बाद जवानों की टीम में सिर्फ सात जवान ही ऊपर चढ़ सके। पांच घंटे तक लड़ते-लड़ते ऐसी परिस्थिति आई कि अगर आगे बढ़ते तो भी और पीछे हटते तो भी सिर में गोली लगती।'
शहीद होते गए साथी लेकिन कम नहीं हुई ताकत
उन्होंने कहा कि 'मुझे वो पल भी याद है कि जब मैं सिर से लेकर धड़ तक लहूलुहान था और फर्स्ट एड कर रहे साथी के सिर में गोली लग गई। इसके थोड़ी ही देर बाद एक और साथी के सीने में गोली लग जाती है। ऐसे ही एक-एक करके तमाम साथी शहीद होते गए। उनकी नजर में मैं भी शहीद था। लेकिन उनके कमांडर ने कहा कि सभी को चेक करो कोई जिंदा तो नहीं है। उन्होंने गोली तक मारी, लेकिन उस पीड़ा को मैं सहता रहा ताकि उन्हें यकीन हो जाए कि कोई जिंदा नहीं है। गोली मारने के बाद भी उनकी मानवीय क्रूरता खत्म नहीं हुई। बहुत देर तक ये तांडव चलता रहा। इसके बाद उसने अपने सैनिकों से एमएमजी पोस्ट पर हमला करने को कहा। मेरे कानों में आवाज गई तो मैंने ऊपर वाले से यही कहा कि मुझे इतनी ताकत दे कि मैं अपने साथियों तक ये सूचना दे सकूं।'
सिक्कों ने बचाई जान
आगे उन्होंने बताया कि 'जब पाकिस्तानी सेना ने लास्ट गोली मेरे सीने पर चलाई तो पर्स में कुछ सिक्के थे, लेकिन कुछ सिक्कों से गोली लगने की वजह से मैं बच गया। तब अंदर से आवाज आई कि योगेंद्र अब तक नहीं मरा तो अब मरेगा भी नहीं। उस समय ना हाथ काम कर रहा था और ना ही पैर, लेकिन मैं मारता गया। इसी बीच जब पीछे से टीम आ गई तो वह भागने लगे। मैं पांच किलोमीटर तक खदेड़ता गया। इसके बाद मैं वापस अपने साथियों के पास आया तो देखा किसी का सिर अलग है, किसी का पैर अलग है। इसके बाद 500 मीटर तक पहाड़ी से लुढककर नीचे आया और अपनी बटालियन को इसकी सूचना दी।'
टाइगर हिल फतह करने का सुकून
कारगिल विजय के बारे में उन्होंने बताया कि 'तीन दिन बाद मैं श्रीनगर अस्पताल में था, जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि ऊपर पंखा चल रहा है और वहीं पर मुझे सूचना मिली कि हमने कारगिल फतह कर ली है। बड़ा फक्र होता है कि हमारी बटालियन जिसने इस युद्ध को शुरू किया और हमने ही इसे खत्म भी किया। उस समय एक सुकून तो था, लेकिन जो हमारे साथी शहीद हुए उनको लेकर गम भी हुआ कि जिनके साथ मैं एक-दो दिन पहले बात कर रहा था वो आज हमारे बीच नहीं रहे।'
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