Justice U. U. Lalit: न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश हैं, उनका कार्यकाल 74 दिन का होगा, वह इसी साल नौ नवंबर को 65 वर्ष के होने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे जैसे वाक्य दो दिन से सुर्खियों में हैं लेकिन राष्ट्रपति भवन में देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के बाद उन्होंने जिस तरह अपने पिता के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया तो पता चला कि अन्य बहुत सी खूबियों के साथ ही वह एक बहुत अच्छे और विनम्र पुत्र भी हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद और गोपनीयता की शपथ दिलाए जाने के बाद न्यायमूर्ति ललित की सादगी ने वहां मौजूद तमाम लोगों का दिल जीत लिया। उन्होंने रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए और राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा, ‘बधाई हो’ कहने पर हाथ जोड़ते हुए झुक कर उन्हें धन्यवाद कहा। उसके बाद वह अपनी बाईं और चल दिए और पहली पंक्ति में बैठे अपने पिता और परिवार के अन्य बुजुर्गों के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
महाराष्ट्र के शोलापुर में यू. यू. ललित का हुआ जन्म
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित आजाद भारत के इतिहास में महज दूसरे प्रधान न्यायाधीश हैं, जो सीधे बार से सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचे। उनसे पहले न्यायमूर्ति एस़ एम़ सीकरी जनवरी 1971 में जब देश के 13वें प्रधान न्यायाधीश बने थे तो वह वकालत से सीधे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने वाले पहले न्यायाधीश थे। गर्वनमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई से कानून की पढ़ाई करने वाले न्यायमूर्ति यू. यू. ललित का परिवार पिछली एक सदी से कानून और न्यायपालिका से जुड़ा है। उनका जन्म महाराष्ट्र के शोलापुर में यू. आर. ललित के यहां नौ नवंबर 1957 को हुआ। उनके पिता बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के अतिरिक्त न्यायाधीश रहे हैं और सर्वौच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील के तौर पर वकालत भी करते रहे हैं। उनके दादा रंगनाथ ललित भी वकालत के पेशे से जुड़े थे।
एडवोकेट एम. ए. राणे के साथ वकालत शुरू की
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित के वकालत के शुरूआती दिनों की बात करें तो पढ़ाई पूरी करने के बाद जून 1983 में वह महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल में पंजीकृत हुए और उन्होंने एडवोकेट एम. ए. राणे के साथ वकालत शुरू की। वर्ष 1985 में वह दिल्ली चले आए और सीनियर एडेवोकेट प्रवीन के पारेख के साथ जुड़ गए। वर्ष 1986 से 1992 के बीच उन्होंने भारत के पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ काम किया। तीन मई 1992 को उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एडवोकेट-ऑन-रिकार्ड के रूप में पंजीकरण हासिल किया और 29 अप्रैल 2004 को उन्हें उच्चतम न्यायालय के सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया गया। 2011 में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम मामलों में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया।
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की खूबियां
उनकी नियुक्ति के समय कहा गया था कि उनकी पेशेवर समझ, कानूनी सवालों को धैर्य के साथ स्पष्ट करने का गुण और मामले को बड़े सरल अंदाज में, लेकिन पूरी दृढ़ता के साथ पेश करने का उनका हुनर उन्हें इस पद के लिए योग्य बनाता है। जुलाई 2014 में उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम ने न्यायमूर्ति यू. यू. ललित को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत करने की सिफारिश की और उन्हें 13 अगस्त 2013 को न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वकालत से सीधे उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के पद तक पहुंचने वाले वह मात्र छठे वकील हैं। न्यायाधीश के तौर पर उन्होंने ऐसे फैसले सुनाए जो उनकी कानूनी बारीकियों की समझ के साथ ही सामाजिक दायित्वों के निर्वाह की मिसाल बन गए। न्यायमूर्ति यू. यू. ललित का परिवार पिछली एक सदी से अदालत, कचहरी और वकालत के पेशे से जुड़ा है और अब आशा है कि देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में वह न्यायपालिका में जो सुधार करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें न्याय के बेहतर हित में पूरा कर पाएंगे।