जोशीमठ, जिसे बद्रीनाथ का प्रवेश द्वारा कहा जाता है। बद्रीनाथ जाने के लिए यहीं से यात्रा शुरू होती है। अब जोशीमठ बर्बादी की कगार पर खड़ा है। धीरे-धीरे इस पावन धरती की जमीन दरक रही है। घरों पर खतरे के निशान लगा दिए गए हैं। यह मकान कभी भी मिट्टी में मिल सकते हैं। यहां सैकड़ों परिवार और हजारों लोग रहते हैं, जिनके ऊपर आज आस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। अब सवाल उठता है कि आखिरकार के बसा बसाया शहर आखिर इस कगार पर पहुंचा कैसे? क्या किसी ने पहले इस ओर ध्यान नहीं दिया? अगर दिया भी तो वक्त रहते जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए गए? क्या इस बर्बादी को रोका जा सकता था? और अब सरकार क्या कदम उठा रही है?
जोशीमठ के संकट की ओर पहले तो किसी का ध्यान ही नहीं गया। फिर वहां के स्थनीय लोगों ने प्रदर्शन आदि करना शुरू किया। जिसके बाद वहां के स्थनीय समाचार पत्रों और चैनलों ने इस संकट की ओर ध्यान आकर्षित किया और उसके कुछ दिनों बाद यह दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया। अख़बारों में हेडिंग छपी कि जोशीमठ डूब रहा है या यहां जमीन दरक रही है। जोशीमठ की इस हालात के पीछे कई कारण हैं। जिनमें भूस्खलन, चरम मौसम की घटनाओं और भूवैज्ञानिक कारकों के क्षेत्र में इसका स्थान शामिल है। ऐसा नहीं है कि यह बर्बादी केवल नैचुरल है। इसकी बर्बादी के पीछे ज्यादातर इंसानी कारण हैं।
क्यों दरकी जोशीमठ की जमीन
इस इलाके में विकास और सुविधाएं पहुंचाने के नाम पर जमकर दोहर किया गया। पहाड़ों को काटा गया। इसके अलावा अनियोजित निर्माण कार्यों ने जोशीमठ की जमीन को धंसाने में योगदान दिया। तमाम जलविद्युत योजनाओं का निर्माण किया गया। जिसमें विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना सहित जोशीमठ और तपोवन के आसपास जलविद्युत योजनाएं प्रमुख हैं। इसके साथ ही कई अन्य परियोजनों के लिए खुदाई और पहाड़ों का दोहन किया गया। जानकारों का मनाना है कि यह सभी योजनाओं का भार जोशीमठ की धरती सह न सकी और दरक गई। यह दरकना ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ हो, इस एपहले भी जोशीमठ की जमीन धंसी और दरकी थी। उस वक्त भी चेतावनी जारी की गई थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और सब अपने मन मुताबिक काम करते रहे। जोशीमठ की चिंता किसी ने नहीं की और आज परिणाम सबके सामने हैं।
बारिश और बाढ़ की वजह से भी दरकी जमीन
इसके साथ ही अगस्त 2022 से उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, जोशीमठ के धंसने में भूगर्भीय कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अत्यधिक भारी बारिश और बाढ़ ने भी जोशीमठ के धंसने में योगदान दिया है। जून 2013 और फरवरी 2021 की बाढ़ की घटनाओं से भी क्षेत्र की जमीन कमजोर हुई इसका धंसने का खतरा बढ़ गया है।
बढ़ती जनसंख्या और अनियंत्रित बुनियादी ढांचे ने बर्बाद कर दिया जोशीमठ
वहीं जमीन दरकने का एक प्रमुख कारण यहां लगातार बढ़ रही मानवीय जनसंख्या भी है। यहां लगातार लोग बसते गए। इसके साथ यहां घुमने के लिए सैलानी भी बढ़ते गए। जिनके लिए सुविधाओं को बढ़ाया गया। इनके लिए अनियंत्रित बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है। इस विकास या यूं कहें की दोहन को रोकने के लिए किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। इसके साथ ही पनबिजली परियोजनाओं के लिए सुरंग बनाने में ब्लास्टिंग का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे स्थानीय भूकंप के झटके लगते हैं और चट्टानों के ऊपर मलबा हिलता है, जिससे दरारें आती हैं। इस बार हलकी-फुल्की दरारों ने बड़ा रूप ले लिया और इस बार यह बड़ा संकट बनकर सामने आया।
क्या उठाए गए बचाव के लिए कदम ?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार (7 जनवरी) को जोशीमठ में प्रभावित परिवारों के घरों का दौरा किया और उनकी सुरक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित करने का वादा किया। धामी ने कहा कि यह तय नहीं था कि निवासियों को शहर से स्थानांतरित किया जाएगा या नहीं, लेकिन कहा कि उन्हें तुरंत खाली करने की जरूरत है। इसके साथ हीजोशीमठ से अध्ययन करके लौटी विशेषज्ञ समिति ने शासन से उन भवनों को जल्द से जल्द गिराने की सिफारिश की है, जिनमें बहुत अधिक दरारें आ चुकी हैं। शासन ने ऐसे भवनों को गिराने का निर्णय ले लिया है। हालांकि, जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से पहले हर पहलू पर विचार किया जा रहा है। इससे पहले जोशीमठ और आसपास हो रहे निर्माण कर्यों समेत तमाम परियोजनाओं पर रक लगा दी गई है।