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Jharkhand News: कागज़ नहीं दिखाएंगे तो झारखंडी नहीं कहलाएंगे, हेमंत सोरेन सरकार की नई डोमिसाइल पॉलिसी समझिए

Jharkhand News: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य में डोमिसाइल के लिए नई पॉलिसी के ड्राफ्ट को बुधवार को मंजूरी दे दी है। यह बिल के तौर विधानसभा में पारित कराये जाने और राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून का रूप लेगा।

Edited By: Sushmit Sinha @sushmitsinha_
Published : Sep 15, 2022 15:40 IST, Updated : Sep 15, 2022 15:40 IST
Hemant Soren
Image Source : PTI Hemant Soren

Highlights

  • कागज़ नहीं दिखाएंगे तो झारखंडी नहीं कहलाएंगे
  • हेमंत सोरेन सरकार की नई डोमिसाइल पॉलिसी समझिए
  • झारखंडी होने की शर्त है 1932 का एक कागज

Jharkhand News: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य में डोमिसाइल के लिए नई पॉलिसी के ड्राफ्ट को बुधवार को मंजूरी दे दी है। यह बिल के तौर विधानसभा में पारित कराये जाने और राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून का रूप लेगा। इस पॉलिसी में झारखंड का स्थानीय निवासी (डोमिसाइल) होने के लिए 1932 के खतियान की शर्त लगाई गई है। इस पॉलिसी पर पूरे झारखंड में बहस छिड़ी है। आइए, समझते हैं कि बहस का मुद्दा बनी इस पॉलिसी की शर्तें, मायने क्या हैं और इसके संभावित परिणाम क्या होंगे? 

झारखंडी होने की शर्त है 1932 का एक कागज

झारखंड में झारखंडी कहलाने के लिए अब वर्ष 1932 में हुए भूमि सर्वे के कागजात की जरूरत होगी। इस कागजात को खतियान कहते हैं। जो लोग इस कागजात को पेश करते हुए साबित कर पायेंगे कि इसमें उनके पूर्वजों के नाम हैं, उन्हें ही झारखंडी माना जायेगा। झारखंड का मूल निवासी यानी डोमिसाइल का प्रमाण पत्र इसी कागजात के आधार पर जारी किया जायेगा।

जिनके पास 1932 का कागज नहीं है, उनका क्या होगा?

जिन लोगों के पूर्वज 1932 या उससे पहले से झारखंड की मौजूदा भौगोलिक सीमा में रह रहे थे, लेकिन भूमिहीन होने की वजह से उनका नाम भूमि सर्वे के कागजात (खतियान) में नहीं दर्ज हुआ है, उनके झारखंडी होने की पहचान ग्राम सभाएं उनकी भाषा, रहन-सहन, व्यवहार के आधार पर करेगी। ग्राम सभा की सिफारिश पर उन्हें झारखंड के डोमिसाइल का सर्टिफिकेट जारी किया जायेगा। झारखंड की मौजूदा भौगोलिक सीमा में जो लोग 1932 के बाद आकर बसे हैं, उन्हें या उनकी संतानों को झारखंड का डोमिसाइल यानी मूल निवासी नहीं माना जायेगा। ऐसे लोग जिनका जन्म 1932 के बाद झारखंड में हुआ, पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई, जिन्होंने इसके बाद यहां जमीन खरीदी या मकान बनाये, उन्हें भी झारखंडी नहीं माना जायेगा। यानी उनका डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं बनेगा।

जिन्हें डोमिसाइल सर्टिफिकेट मिलेगा, उन्हें क्या फायदा होगा?

जिन लोगों को झारखंडी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी होगा, उन्हें राज्य सरकार की तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा। राज्य की सरकार इन पदों पर नियुक्ति के लिए जो पॉलिसी बनायेगी, उसके लिए डोमिसाइल की शर्त जरूरी तौर पर लागू की जा सकती है या इसके आधार पर प्राथमिकता दी जा सकती है।

जिन्हें डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, उनका क्या होगा?

झारखंड की भौगोलिक सीमा में वर्षों-दशकों से रह रहे जिन लोगों को 1932 का कागज न होने पर झारखंडी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, उनके लिए स्थानीय संस्थानों में दाखिले और तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की नौकरियों के लिए मौके बेहद सीमित होंगे। सरकारी योजनाओं में ठेकेदारी और कई तरह की अन्य सहूलियतों के लिए भी सरकार डोमिसाइल सर्टिफिकेट की शर्त लगा सकती है। भारत के संविधान के मूल अधिकारों के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन यापन, जमीन-मकान खरीदने, यहां बसने, व्यापार करने सहित किसी अन्य गतिविधि पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।

क्या इस पॉलिसी को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?

झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल में 2002 में भी 1932 के खतियान पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी लाई गई थी। इसे झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस वी.के. गुप्ता की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इसे असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था। इस बार भी अगर इसे कोर्ट में चुनौती दी गई तो हाईकोर्ट के 2002 के फैसले को नजीर मानकर इसे खारिज किया जा सकता है। लेकिन झारखंड सरकार के कैबिनेट में पारित प्रस्ताव के अनुसार, इस पॉलिसी का बिल विधानसभा में पारित करने के बाद केंद्र के पास भेजकर इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया जायेगा। नौवीं अनुसूची में जब कोई एक्ट शामिल हो जाता है, तो उसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। यानी केंद्र सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करती है या नहीं।

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