Highlights
- ओमर कुमार को 15 हजार दिये बनाने का ऑर्डर मिला है
- दीपों को ओमर ने एक अलग और ख़ास अंदाज़ से डिजायन किया है
- किसी फर्म से 15 हजार दीपों का पहला इतना बड़ा ऑर्डर: ओमर
Jammu Kashmir: दिवाली का त्योहार जैसे-जैसे करीब आ रहा है श्रीनगर के निशात इलाके में रहने वाले ओमर कुमार भी व्यस्त होते दिख रहे हैं। ओमार कुमार इन दिनों अपने पूरे परिवार के साथ दिवाली के दीपों को बनाने और उनको रंगो से सजाने और सवारने के काम में व्यस्त दिख रहे हैं। ओमर ने अबतक 15 हजार मिटटी के दीप बनाने के ऑर्डर में से 14 हज़ार दीप तैयार कर लिए हैं। ये अलग-अलग किस्म और अलग अलग साइज के दीप हैं। दिवाली पर इस्तेमाल होने वाले इन दीपों को ओमर ने एक अलग और ख़ास अंदाज़ से डिजायन किया है।
नौकरी न मिलने के कारण शुरू किया ये काम
ओमर कुमार कॉमर्स ग्रेजुएट स्टूडेंट रहा है। लेकिन नौकरी न मिलने के कारण इस ने अपने पिता के साथ मिटटी के बर्तन बनाने का काम शुरू किया है। ओमर का यह पहला इतना बड़ा ऑर्डर है जब उससे किसी फर्म से 15 हज़ार दीप बनाने को कहा गया है। इस ऑर्डर से न सिर्फ ओमर बल्कि उसके पिता भी बेहद खुश नज़र आ रहे है। इंडिया टीवी से बात करते हुए ओमर ने अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए कि दिवाली पर मुझे एक बुहत बड़ी सौगात मिली है। कश्मीर में पहले किसी कुमार को इतना बड़ा आर्डर नहीं मिला है। इस ऑर्डर को देख कर मैंने ये फैसला किया है की मैं दीपावली पर 200 दीप फ्री में बाटूंगा। में चाहता हूँ की दीपावली पर हर एक इस दिए को जलाए।
'दोबारा जीवित हुई ये कला'
ओमर कुमार ही नहीं बल्कि उनके भाई और पिता भी इस ऑर्डर से बेहद खुश है उनका कहना है कि यह ज़िन्दगी का पहला इतना बड़ा आर्डर है जो दीपावली पर किसी मिटटी के बर्तन बनाने वाले को मिला है। हम खुश है कि इस ऑर्डर के मिलने से हमारे रोज़गार में एक तो इज़ाफ़ा हुआ है दूसरा ये कला दोबारा जीवित हुई है। क्योंकि दीपावली पर दीपों को बनाने के इस काम से हमारी कला को एक तो नई पहचान मिली और दूसरा रोज़गार, लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि सरकार को आगे आकर इस कारोबार से जुड़े लोगो की मदद करे।
फिर से मिलेगी एक नई पहचान
दरअसल, ओमर का परिवार पिछले 40 सालो से मिटटी के बर्तन बनाने का काम कर रहे है, लेकिन पिछले साल से ओमर ने खुद को एक अलग क्षेत्र में ले जाने के लिए चमचमाते मिटटी के बर्तनों को पुनरजीवित करने का काम शुरू किया। आपको बता दें कि कभी कश्मीर में कई अन्य कला रूपों की तरह, प्रसिद्ध, चमकीले मिट्टी के बर्तन धीरे-धीरे मर रहे हैं क्योंकि घाटी में नई पीढ़ी के बहुत से लोग 'अपने हाथ गंदे' करने को तैयार नहीं हैं। लेकिन अब दीपावली पर दीपों के इस बड़े ऑर्डर से ये उमीद जाग उठी है कि दीपावली पर बनने वाले दीपों की रोशनी से कश्मीर की इस सदियों पुरानी कला को फिर से एक नई पहचान मिलेगी।