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जम्मू-कश्मीर में लड़कियों ने कर दिया कमाल! सालों पुरानी परंपरा को तोड़ लिखा नया इतिहास

जम्मू कश्मीर में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाईं है। जिसका फायदा भी अब दिख रहा है। यहां लड़कियों ने सालों पुरानी परंपरा को तोड़ वाज़ा बन रही है।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: March 20, 2023 14:07 IST
Jammu kashmir- India TV Hindi
Image Source : ANI जम्मू कश्मीर में लड़कियों ने तोड़ी रूढ़िवादी परंपरा

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में महिला सशक्तिकरण भारत सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन अब तक किए गए उपायों ने काफी नाम किया है और ये तरीके सार्थक भी साबित हुए हैं, क्योंकि बहुत-सी लड़कियां घर में खाली बैठने के बजाय खुद को सशक्त बना रही हैं। ऐसे ही जम्मू-कश्मीर ग्रामीण आजीविका मिशन (JKRLM) के माध्यम से सरकारी योजना UMEED से जुड़ी लड़कियों ने समाज के सामने खुद को साबित किया है। कई बाधाओं को पार करते हुए, लड़कियां न केवल आलोचकों को मुंह तोड़ जवाब दिया, बल्कि उन्हों "पुरुष-प्रधान" नौकरियों को तरजीह देकर घाटी में रूढ़िवादिता को भी तोड़ा और हर जगह से सराहना प्राप्त की।

लड़कियां परंपरा तोड़ बनी वाज़ा

दरअसल, कश्मीर में प्रसिद्ध व्यंजन, जिसे 'वाज़वान' के नाम से जाना जाता है, इसे लोगों को विशेष रूप से विवाह, सगाई और अन्य विशेष अवसरों पर परोसा जाता है। वाज़वान तैयार करने वालों को 'वाज़ा' (बावर्ची) के नाम से जाना जाता है। बता दें कि यह काम सिर्फ पुरुष करते थे, लेकिन गांदरबल जिले की लगभग आधा दर्जन लड़कियां ने रूढ़िवादिता को तोड़कर इस पेशे में खुद को शामिल कर रही हैं और अपना नाम भी कमा रही हैं। इतना ही नहीं मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले की ये युवा लड़कियां विशेष अवसरों पर लोगों को ये प्रसिद्ध व्यंजन परोस भी रही हैं। लड़कियों में से एक इशरत इरशाद ने मीडिया को बताया, "यह लोगों के लिए कुछ नया था क्योंकि अभी तक केवल पुरुष ही वाज़वान तैयार करते थे। हमारी यात्रा की शुरुआत में, लोगों द्वारा हमारी आलोचना की गई और हमने कई बाधाओं का भी सामना किया गया। समय बीतने के साथ, परिवार साथ-साथ सब कुछ बदल गया। समाज के साथ-साथ हमारी सराहना शुरू हो गई है।" 

उसने आगे कहा, "यह सब NRML के UMEED के सहयोग से हुआ है कि उन सब ने अपने लक्ष्य को पाने के काबिल हुए हैं। हम उन लड़कियों के लिए एक उदाहरण भी बने हैं, जो अपने सपनों को साकार करने की महत्वकांक्षा रखती हैं। समय बीतने के साथ, हमें सगाई जैसे कार्यों में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है, विवाह और अन्य कार्यक्रम जहां हम मेहमानों के लिए भोजन तैयार करते हैं।"

मिल रही सराहना

बता दें कि इन लड़कियों को वर्तमान में श्रीनगर के बुलेवार्ड क्षेत्र में 11 दिनों के लिए आयोजित किए जा रहे अपने तरह के पहले सेल ऑफ़ आर्टिकल्स एंड रूरल आर्टिसन सोसाइटी (SARAS) कार्यक्रम में काफी सराहना मिल रही है। गांदरबल की लड़कियों के अलावा यहां कई ठेले हैं और हर ठेले में महिला सशक्तिकरण की एक अलग कहानी है। एक अन्य उदाहरण की बात करें तो, श्रीनगर के बाहरी इलाके की युवा लड़कियों ने भी ऐसे ही पुरुषों वाले नौकरी को प्राथमिकता देते हुए प्रसिद्ध बारबेक्यू और अन्य फास्ट-फूड आइटम बेच रही हैं।

उपयोगी साबित हुई ट्रेनिंग

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) ने लड़कियों को ट्रेनिंग दी, जो उनके लिए उपयोगी साबित हो रहा है। लड़कियों ने आगे अन्य महिलाओं से अपील की कि वे भविष्य के बारे में न सोचें, बल्कि अपने सपनों को हासिल करने के लिए जल्द से जल्द अपनी यात्रा शुरू करें। उन्होंने कहा, "असंभव कुछ भी नहीं है। हम (महिलाएं) कुछ भी कर सकती हैं, लेकिन इच्छाशक्ति होनी चाहिए। कोई भी, जो आसमान छूना चाहता है, उसे अपने घर से बाहर आना होगा और लक्ष्य हासिल करने के लिए नए सिरे से शुरुआत करनी होगी।"

1 लाख से अधिक कमा रही महिलाएं

गौरतलब है कि प्रसिद्ध डल झील के पास घाट नंबर- 8 बुलेवार्ड रोड के तट पर 11 दिवसीय मेले सरस (लेखों की बिक्री और ग्रामीण कारीगर समाज) का उद्घाटन करते हुए, मिशन निदेशक जम्मू और कश्मीर ग्रामीण आजीविका मिशन (JKRLM), इंदु कंवल चिब ने कहा था कि ऐसे कई मंच हैं जहां महिलाओं को कृषि और गैर-कृषि कौशल दोनों में कुशल बनाया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि 40,000 महिलाएं पहले से ही करोड़पति हैं क्योंकि वे एक साल में एक लाख से अधिक कमा रही हैं और उनमें से 65 प्रतिशत उद्यमी हैं।

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