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जलियांवाला बाग नरसंहार: वो खूनी बैसाखी जब गोलियों से भून दिए गए सैकड़ों लोग

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से कुछ दूर स्थित जालियांवाला बाग़ में अंग्रेजी हुकूमत ने अपने खिलाफ तेज होती आवाज को दबाने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया था।

Written By: Sudhanshu Gaur @SudhanshuGaur24
Published : Apr 13, 2023 12:06 IST, Updated : Apr 13, 2023 12:39 IST
Punjab, Jallianbala Bagh, Amritsar, General Dyer
Image Source : FILE जलियांवाला बाग हत्याकांड

नई दिल्ली: पंजाब और सिख समुदाय में बैसाखी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन यह पर्व आज से 104 वर्ष पहले साल 1919 में हुए एक कत्लेआम का भी खौफनाक मंजर बयां करता है। आज ही के दिन पंजाब के अमृतसर में अंग्रेजी हुकूमत ने एक विरोध को दबाने के लिए सैकड़ों निहत्थे लोगों को गोलियों से भुन दिया था। इस कत्लेआम को सबसे बड़े नरसंहार के तौर पर जाना जाता है। 

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से कुछ दूर स्थित जालियांवाला बाग़ में अंग्रेजी हुकूमत ने अपने खिलाफ तेज होती आवाज को दबाने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। इस नरसंहार से एक माह पूर्व 8 मार्च को ब्रिटिश हकूमत ने भारत में रोलेट एक्ट पारित किया था। रोलेट एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार भारतीयों की आवाज दबाने की कोशिश में थी।

जलियांवाला बाग़ में क्यों इकट्ठा हुए थे लोग?

अंग्रेजी सरकार ने रोलेट एक्ट पास किया था। इसके तहत ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय को कभी भी पकड़कर बिना केस किए जेल में डाल सकती थी। इस फैसले के खिलाफ 9 अप्रैल को पंजाब के बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और किचलू ने धरना प्रदर्शन किया, जिन्हें प्रशासन ने गिरफ्तार कर कालापानी की सजा सुना दी। 10 अप्रैल को नेताओं की गिरफ्तारी का पंजाब में बड़े स्तर पर विरोध हुआ, प्रदर्शन को खत्म कराने के लिए ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लगा दिया। इस कानून के जरिए लोगों को इक्ट्ठा होने से रोका गया था।

बैसाखी के दिन लगता है मेला 

बैसाखी के दिन अमृतसर में जलियांवाला बाग़ में मेला लगता था और हजारों लोग यहां इकट्ठा होते हैं। इस दिन भी ऐसा ही हुआ था, हजारों लोग बच्चों के साथ मेला देखने पहुंचे थे। इस बीच, कुछ नेताओं ने रोलेट एक्ट और दूसरे नेताओं की गिरफ्तारी का विरोध जताने के लिए वहां एक सभा का भी आयोजन किया था। इस दौरान नेता जब अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों के खिलाफ भाषण दे रहे थे तभी अचानक से जनरल रेजीनॉल्ड डायर अपने सैनिकों के साथ बाग में घुस गए और निकास द्वार को बंद कर दिया। डायर ने घुसते ही सैनिकों को लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। हजारों लोगों का कत्लेआम शुरू हो गया और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा था। 

1500 से अधिक गोलियां चलीं 

लोग गोलियों से बचने की कोशिश करने लगे। सैनिक किसी को नहीं बख्स रहे थे। बाग़ में ताबड़तोड़ फायरिंग की जा रही थी। एक अनुमान के अनुसार उस दौरान वहां 1500 से अधिक राउंड फायर किये गए। इस गोलीबारी से बचने के लिए लोगों ने वहां मौजूद एक कुएं में छलांग लगानी शुरू कर दी। कुआं इतना गहरा था कि कोई बच न सका, देखते ही देखते कुएं में भी लाशों का ढेर लग गया।

इस हत्याकांड में कितने लोगों की जान गई, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा तो सामने नहीं आया लेकिन माना जाता है कि इस कांड में 1200 से अधिक लोगों की जान गई। कई लोग अंग्रेजों की गोलियों से तो कुछ जान लोग कुएं में कूद गए, जिससे उनकी मौत हुई। इसके साथ कुछ लोग ने भगदड़ में अपने प्राण गंवा दिए।

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