Friday, November 22, 2024
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चंद्रयान की सफलता के बाद आगे की प्लानिंग पर इसरो प्रमुख सोमनाथ का बड़ा बयान, कहा- शुक्र और सौरमंडल से बाहर के ग्रहों पर नजर

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने मंगलवार को दिल्ली में इसरो को प्लानिंग को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि चंद्र मिशन की सफलता के बाद अब शुक्र ग्रह और सौरमंडल के बाहर के ग्रहों पर इसरो की नजर है।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Updated on: September 26, 2023 23:37 IST
इसरो चीफ एस सोमनाथ- India TV Hindi
Image Source : पीटीआई इसरो चीफ एस सोमनाथ

नई दिल्ली : चंद्रयान मिशन की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ऐसे तारों के रहस्य सामने लाने की योजना बनाई है जिन पर पर्यावरण होने की बात कही जाती है या फिर जो सौरमंडल से बाहर स्थित हैं। यह जानकारी इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने मंगलवार को दी। वे भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इनसा) के तत्वावधान में एक व्याख्यान दे रहे थे। सोमनाथ ने कहा कि इसरो शुक्र ग्रह (वीनस) के अध्ययन के लिए एक मिशन भेजने और अंतरिक्ष के जलवायु तथा पृथ्वी पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए दो उपग्रह भेजने की योजना भी बना रहा है। 

उन्होंने कहा कि एक्सपोसैट या एक्स-रे पोलरीमीटर सैटेलाइट इस साल दिसंबर में प्रक्षेपण के लिए तैयार है जो समाप्त होने की प्रक्रिया से गुजर रहे तारों का अध्ययन करने के लिए है। सोमनाथ के मुताबिक, ‘‘हम एक्सोवर्ल्ड्स नामक एक उपग्रह की अवधारणा पर भी विचार कर रहे हैं जो हमारे सौरमंडल से बाहर के ग्रहों और अन्य तारों का चक्कर लगा रहे ग्रहों का अध्ययन करेगा।’’ उन्होंने कहा कि सौरमंडल के बाहर 5,000 से अधिक ज्ञात ग्रह हैं जिनमें से कम से कम 100 पर पर्यावरण होने की बात मानी जाती है। सोमनाथ ने कहा कि मंगल पर एक अंतरिक्षयान उतारने की योजना अवधारणा के स्तर पर है। 

95 प्रतिशत कलपुर्जे घरेलू स्रोत से मिलते हैं

देश में रॉकेट के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले लगभग 95 फीसदी कलपुर्जे घरेलू स्रोत से प्राप्त किए जाते हैं। इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के 82वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि कि इसरो को पूरे अंतरिक्ष क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है और रॉकेट एवं उपग्रह विकास तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोगों सहित सभी तकनीकी कार्य घरेलू स्तर पर ही किए जाते हैं। सोमनाथ ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के रॉकेट में इस्तेमाल की जाने वाली लगभग 95 प्रतिशत सामग्री, उपकरण और प्रणालियां घरेलू स्रोत से प्राप्त होती हैं, केवल पांच फीसदी विदेश से मंगवाई जाती हैं, जिनमें मुख्य रूप से उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक घटक शामिल हैं। 

उन्होंने कहा, "यह उपलब्धि राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, रक्षा प्रयोगशालाओं और सीएसआईआर प्रयोगशालाओं सहित विभिन्न भारतीय प्रयोगशालाओं के साथ सहयोग का परिणाम है, जो सामग्री के स्वदेशीकरण, प्रौद्योगिकी क्षमताओं और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करती हैं।" सोमनाथ ने इलेक्ट्रॉनिक सामग्री के स्वदेशीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला, जिसमें भारत में निर्मित रॉकेट और मुख्य कंप्यूटर चिप के लिए प्रोसेसर जैसे महत्वपूर्ण घटकों का डिजाइन एवं निर्माण शामिल है। उन्होंने कहा, "इसके अलावा, इसरो ने देश के भीतर इलेक्ट्रोमैकेनिकल एक्चुएटर्स, डीसी बिजली आपूर्ति प्रणाली, बैटरी सिस्टम और सौर सेल जैसे आवश्यक घटक भी विकसित किए हैं। 

12 युवा वैज्ञानिकों को शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार

सीएसआईआर के स्थापना दिवस पर 12 युवा वैज्ञानिकों को शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इनमें सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी, कोलकाता के इम्यूनोलॉजिस्ट दीप्यमन गांगुली; सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ के माइक्रोबायोलॉजिस्ट अश्विनी कुमार; हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग डायग्नोस्टिक्स के जीवविज्ञानी मदिका सुब्बा रेड्डी; भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के अक्कट्टू टी बीजू; और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के देबब्रत मैती शामिल हैं। गांगुली को जहां चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सम्मानित किया गया है, वहीं कुमार और रेड्डी को जैविक विज्ञान में उनके योगदान के लिए पुरस्कार मिला है। कार्यक्रम में प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय सूद ने कहा कि पुरस्कारों को वास्तव में राष्ट्रीय बनाने और चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए इन्हें तर्कसंगत बनाया गया है। (इनपुट-भाषा)

 

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